रेलवे बोर्ड ने भी हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन कर दिया है। रानी कमलापति के नाम से नया कोड आरकेएमपी भी जारी कर दिया है। रेलवे के दस्तावेजों में यह स्टेशन का संक्षिप्त (शार्ट नेम) नाम होता है। भारतीय रेल सम्मेलन दिल्ली के महासचिव एवं संचालक वैगन अजय कुमार नौलखा ने शनिवार दोपहर को नाम बदलने की अधिसूचना जारी की है। जैसे ही अधिसूचना मिली रेलवे ने स्टेशन परिसर में रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के नाम के नए बोर्ड लगाने शुरू कर दिए थे। देर शाम तक प्लेटफार्म, नए भवन और परिसर में लगे 50 फीसद पुराने नाम के बोर्ड को हटाकर नए नाम के बोर्ड लगा दिए गए थे। प्रत्येक प्लेटफार्म के दोनों छोर पर लगी नाम पट्टिका को भी बदलने की कार्रवाई शुरू कर दी है। स्टेशन का नया नाम आरक्षण प्रणाली में भी जोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा 15 नवंबर को स्टेशन का लोकार्पण किया जाना है। उसके पूर्व स्टेशन का नाम बदल दिया गया है। रेलवे बोर्ड के वरिष्ठ अधिकारियों का कहना है कि रानी कमलापति स्टेशन नाम से ही टिकट बनेंगे। राज्य सरकार के परिवहन विभाग ने शनिवार केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा था। केंद्र सरकार ने शाम तक सहमति दे दी थी। जिसके बाद रेलवे बोर्ड ने अंतिम अधिसूचना जारी कर दी है। शनिवार देर रात तक स्टेशन का नाम आरक्षण प्रणाली में हबीबगंज ही था, जिसका कोड एचबीजे है। स्टेशन का संक्षिप्त नाम रेलवे के ट्रेन इंक्वायरी सिस्टम में ट्रेनों की लोकेशन पता करने, टिकट बुक कराने के लिए अहम होता है। रेलवे के टिकट काउंटरों पर स्टेशनों का पूरा नाम लिखने की बजाए संक्षिप्त नामों का ही उपयोग किया जाता है।
यह भी रिकार्ड- सबसे कम समय में पूरी की स्टेशन का नाम बदलने की प्रक्रिया
रेलवे बोर्ड के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अब तक के इतिहास में सबसे कम समय में किसी भी रेलवे स्टेशन के नाम बदलने की प्रक्रिया पूरी की गई है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है। शुक्रवार को राज्य सरकार ने हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन रखने का प्रस्ताव भेजा, उसी दिन गृह मंत्रालय से सहमति दे दी। दूसरे दिन शनिवार दोपहर से पहले रेलवे बोर्ड ने अंतिम सहमति दी और भारतीय रेल सम्मेलन दिल्ली ने अधिसूचना जारी कर दी। यह केंद्र व राज्य सरकार के बीच बेहतर तालमेल को दर्शाता है।
रानी कमलापति के नाम पर इसलिए पड़ा हबीबगंज स्टेशन का नाम
16वीं सदी में भोपाल गौंड शासकों के अधीन था। गौंड राजा सूरज सिंह शाह के पुत्र निजाम शाह का विवाह रानी कमलापति से हुआ था। जब निजाम शाह की मौत हो गई तो रानी कमलापति ने अपने पूरे शासनकाल में बहादुरी के साथ आक्रमणकारियों का समाना किया था और भोपाल समेत आसपास के इलाकों को आक्रमणकारियों से बचाया था, रानी के पुत्र ने तो आक्रमणकारियों से लड़ते हुए शाहदत दी थी। पति की मौत के बाद रानी कमलापति का जीवन साहस भरा रहा जो, प्रेरणा देने वाला है। कमलापति के इन्हीं त्याग के कारण गौंड रानी व उनके परिवार की स्मृतियों को सजोने के लिए स्टेशन का नाम उनके नाम पर किया है।