रिटायर्ड RTO ने LLB में टॉप कर जीता गोल्ड मेडल, राज्यपाल के हाथ से लिया मेडल

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शुक्रवार को ग्वालियर के जीवाजी विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह था। युवा विद्यार्थी मेडल और Ph.D. की उपाधि लेकर काफी खुश नजर आ रहे थे, लेकिन इन सभी के बीच एक 62 साल के बुजुर्ग पर सभी की नजर थी और हो भी क्यों न, इस बुजुर्ग ने शहर के सभी युवाओं को पछाड़कर LLB में सबसे ज्यादा नंबर लाकर LAW का गोल्ड मेडल जो जीता था। अब जान लेते हैं कि यह बुजुर्ग कौन थे। यह हैं रिटायर्ड RTO (क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी) सूर्यकांत त्रिपाठी, साल 2016 में VRS (स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति) लेने के बाद इन्होंने LLB की पढ़ाई शुरू की।

जुनून ऐसा कि अच्छे से अच्छे युवा फेल हो जाएं। यह उनका जुनून ही है कि वह अपने नाती-पोतों की उम्र के हजारों युवाओं को पीछे छोड़कर लॉ की पढ़ाई में गोल्ड मेडल जीते हैं। राज्यपाल मंगूभाई पटेल से उम्र में कुछ कम सूर्यकांत त्रिपाठी जब गोल्ड मेडल लेने पहुंचे तो सभी की नजर उन पर थी।

VRS लेकर शुरू की पढ़ाई
ग्वालियर निवासी सूर्यकांत त्रिपाठी (62) ने 1980 में MSC की थी। तब वह 21 साल के थे। इसी साल वह एयरफोर्स में सिलेक्ट हुए, लेकिन कुछ महीने बाद ही उन्होंने लोक सेवक बनने परीक्षा दी और उनका चयन हो गया। वह RTO बने। साल 2016 में जब वह 57 साल के थे। तब उन्हें लगा कि उन्होंने पूरी जिंदगी काम में ही लगा दी है, जबकि वह बचपन से ही पढ़ाई करना चाहते थे। तभी उन्होंने तय किया कि वह सेवा से स्वैच्छिक सेवानिवृति लेंगे।

इसके बाद उन्होंने VRS ले लिया। अगले साल उन्होंने महात्मा गांधी लॉ कॉलेज से LLB में एडमिशन ले लिया। उनके क्लास में जाने पर सभी आश्चर्य चकित होकर देखते थे, लेकिन उन पर तो पढ़ाई का जुनून था। साल 2018-19 के सत्र में वह सभी को पछाड़ते हुए 70 फीसदी से भी ज्यादा अंकों के साथ ग्वालियर में LLB में टॉप किए और गोल्ड मेडल जीत लिया।

पत्नी पढ़ी-लिखीं नहीं हैं, लेकिन हमेशा दिया साथ
सूर्यकांत के परिवार में पत्नी विजया त्रिपाठी, बेटे मनीष और अजय हैं। पत्नी बिल्कुल भी पढ़ी नहीं हैं, लेकिन पढ़ाई में हमेशा सूर्यकांत को बढ़ावा दिया। दोनों बेटे इंजीनियर हैं। बड़ा बेटा मनीष पुणे में एक मल्टी नेशनल कंपनी में हैं और छोटा बेटा अभी लंदन में हैं। दो बच्चे हैं। वह सेटल हैं, इसलिए भी सूर्यकांत ने पढ़ाई को अपने बुढापे की लाठी बना लिया।

बेसहारों की मदद करने के लिए LLB की
गोल्ड मेडल जीतने के बाद सूर्यकांत ने दैनिक भास्कर को बताया कि वह लॉ इसलिए करना चाहते थे कि जिससे वह आगे चलकर गरीब और बेसहारा लोगों की कानूनी रूप से मदद कर सकें। गोल्ड मेडल जीतने के बाद उनके मन में पढ़ाई करने के लिए और इच्छा जागृत हुई है। वह आगे भी पढ़ाई जारी रखेंगे।

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