वोट चोरी करने वालो को ,घेऊन जा.. री… नारबोदइस बार नगर की नारबोद में दिखी राजनीतिक झलक

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बालाघाट(पदमेश न्यूज़)। चुनाव आयोग और भारतीय जनता पार्टी मिलकर देश मे वोटो की चोरी कर रहे हैं। जो जनता के अधिकार छीनकर अपनी सरकार बना रहे हैं।ऐसा आरोप लगाते हुए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के प्रमुख पदाधिकारी, लोकसभा सदस्य एंव विपक्षी नेता राहुल गांधी ने वोट चोर गद्दी छोड़ का नारा दिया है।वही इस नारे को आबाद कर,पूरे देश मे एक अभियान छेड़ दिया है।जिसकी झलक समय समय पर पूरे देश में देखने को मिल रही है।अब इसी अभियान का असर रविवार को बालाघाट नगर में आयोजित नारबोद पर्व पर भी देखने को मिला है। जहा के स्थानीय लोगो ने नारबोद पर्व पर एक पुतले का निर्माण कर उसपर वोट चोर, गद्दी छोड़ के नारे लिखे, जिसमे अब जनता जाग चुकी है का उल्लेख कर, पुतले को ढोल नगाड़ों के साथ नगर का भृमण कराया गया।जिसके उपरांत शहर की सीमा से बाहर लेकर उस पुतले का दहन किया गया।इस पूरे कार्यक्रम के दौरान लोगो को, वोट चोरी करने वालो को ,घेऊन जा.. री… नारबोद की नारे लगाते हुए देखा गया।तो वही इस आयोजन में को देखने वालों लोगो ने भी सरकार और चुनाव पर साधे गए इस अनोखे तंज और नारबोद प्रदर्शन का जमकर लुत्फ उठाया।इस तरह नगर में आयोजित नारबोद का पर्व का समापन किया गया।

असुर शक्ति पर विजय के रूप में मनाया जाता नारबोद पर्व
आपको बताए कि बालाघाट नगर में प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी बूढ़ी शिव मंदिर के पास से पूतना नामक रक्षसी का पुतला निकाला गया था।जिसपर सरकार और चुनाव आयोग पर तंज कसते हुए वोट चोरी करने वालो को घेऊन जा.. री.. नारबोद कहते हुए उस पुतले को विभिन्न मार्गो का भ्रमण करते हुए नगर की सीमा के बाहर ले जाकर उसका दहन किया गया।मान्यता के अनुसार इस पर्व को असुर शक्ति पर विजय के रूप में मनाया जाता है और पूतना के पुतले को ही नारबोद कहा जाता है।

जिले भर में हर्षोल्लास के साथ मनाया गया नारबोद पर्व
प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा को जीवित रखते हुए रविवार को जिला मुख्यालय सहित अन्य ग्रामीण अंचलों में नारबोद पर्व पूर्ण विधि-विधान व हर्षोल्लास के साथ मनाया गया।जहा ग्रामीण अंचलों के साथ साथ नगरी क्षेत्र में भी इस पर्व की धूम नजर आई।वही ग्रामीण क्षेत्रो में लोग इस पर्व को लेकर काफी उत्साहित दिखे। जहां पूर्ण विधि-विधान से वर्षों से चली आ रही परंपरा के अनुसार नारबोद का यह पर्व मनाया गया और अल सुबह से ही ग्रामीण क्षेत्रों में घेऊन जा.री..नारबोद के स्वर गूंजते रहे। जहां नगर में मारबत के पुतले पर वोट चोरी करने वालो को, तो ग्रामीणों ने मारबत के पुतले पर, खाँसी खोखला घेऊन जा रही नारबोद लिखकर गांव की सीमा के बाहर जाकर पुतला का दहन किया ।वहीं कई किसानों ने अपनी फसलों को कीट बीमारी आदि से बचाने के लिए गड़ाडी नामक पौधे की टहनियां फसलों में गड़ा कर अच्छी फसल होने की कामना की। वहीं कई ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में देश सहित घर की सुख समृद्धि व शांति के लिए लोगों ने पूतना नामक पुतले को गाँव के बाहर ले जाकर उसका दहन कर नदी और तालाबों में मिट्टी के दियो का विसर्जन किया।

बीमारी आफत बला को अपने साथ ले जाने के गूंजते रहे स्वर
नारबोद पर्व पर लोगों को, खासी खोखला व मौसमी बीमारियो को ले जा..री.. नारबोद के स्वर के साथ पुतना के पुतले को गाँव के बाहर करते देखा गया। इस दौरान आफत बलाओ को भी अपने साथ ले जाने के नारे गूंजते नजर आए ।आपको बताएं कि पोला पर्व के ठीक दूसरे दिन नारबोद का यह पर्व मनाया जाता है।प्राचीन मान्यता के अनुसार बारिश के इस मौसम में मौसमी बीमारियों तथा महामारी का डेरा जम जाता है मौसमी बीमारियों और महामारी से गांव को बचाने के लिए लोग एक पुतला बनाकर उसे गांव से बाहर ले जाकर जला देते हैं। वही बीमारियों को साथ ले जाने का उद्घोष करते हैं।

नदी और तालाबों में किया मिट्टी के दीए का विसर्जन
नारबोद के अवसर पर लोगों ने मिट्टी के दिए बनाकर उनका परंपरा के अनुसार नदी नालों व अन्य जलाशयों में विसर्जन किया और इस दौरान खासी खोखला सहित अन्य बीमारी को अपने साथ ले जाने की प्रार्थना की।आपको बताए कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कृष्ण जन्माष्टमी के पांचवे दिन गोकुल में बाबा नंद के घर बालक कृष्ण को उसके मामा कंस द्वारा भेजी गई पूतना राक्षसी मारने आती है। जिसका वध बालक कृष्ण के हाथों होता है।वर्षों से चली आ रही यही परंपरा आज भी निभाई जा रही है जहां इसी परंपरा के अनुसार पूतना का दहन कर मरबाद का पर्व मनाया जाता है।

वर्षों से चली आ रही परंपरा का किया गया निर्वाह-
नारबोद पर्व पर तैयार किए गए अनोखे पुतले और वोट चोर, गाड़ी छोड़ के स्लोगन को लेकर की गई चर्चा के दौरान स्थानीय निवासी अधिवक्ता वाय. आर बिसेन और युवक कपिल ने संयुक्त रूप से बताया कि यह वर्षों पुरानी एक परंपरा है। जब बूढ़ी क्षेत्र एक गांव था, लोगों को बीमारियों के बारे में जानकारी नहीं थी उस समय तरह-तरह की बीमारियां होती थी। इसीलिए करीब 70- 80 वर्ष पूर्व क्षेत्र के बड़े बुजुर्ग लोगों द्वारा इस तरह पुतले का निर्माण कर नारबोद का पर्व मनाया जाता था।जहां घर के क्लेश को बाहर निकालने और घर की सुख शांति के लिए मारबत का पुतला बनाकर उसे गांव के बाहर ले जाकर विसर्जित करते हैं या फिर जला देते हैं। वर्षों से चली आ रही यहां परंपरा अब भी कायम है और लोग पूरे उत्साह के साथ इस पर्व को मनाते हैं। हालांकि नारबोद पुतले पर लिखे गए स्लोगन को लेकर उन्होंने खुलकर कोई बयान नहीं दिया। लेकिन उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि यह बात पूरे देश में चल रही है की वोट चोरी करके सत्ता हासिल की जा रही है।जिसका संदेश भी स्थानीय लोग दे रहे हैं।

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