शहर का नहीं ‘हमदर्द’ कोई…?

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उमेश बागरेचा

बालाघाट (पद्मेश न्यूज)। इस शहर का कोई मां-बाप नहीं है। माननीय (जनप्रतिनिधि) अपने में ही मस्त है, उन्हे ना तो शहर और ना ही जनता के हितों से सरोकार है। वोट मांगते वक्त ये ही माननीय जनता को अनेक सब्जबाग दिखातें हैं, लेकिन सत्ता हासिल होने के बाद पलटकर देखते भी नहीं कि जनता किस हाल में है। जनता को पूरी तरह सम्मानीय (प्रशासन) के भरोसे छोड़ दिया गया है, वे जनता को जैसा नाच नचाना चाहते हैं नचा रहे हैं। जवाबदेह माननीय आंखे बंद किए बैठे हैं । आज शहर में जहां देखो वहां अव्यवस्था का नजारा है। सम्मानीय शायद बालाघाट से अब जाने का इंतजार कर रहे हैं। इन्होंने बड़े जोर-शोर से बालाघाट को व्यवस्थित करने का भार उठाया था। शहर की व्यवस्था तो नहीं सुधरी हां मगर कुछ चंद लोगों के माली हालात जरूर सुधर गए हैं। इनमें कर्मचारी, अधिकारी, नेता, सप्लायर , ठेकेदार के अलावा आप की सोच जहां तक जा रही हंै वेे भी शामिल है।
पिछले दो ढाई वर्षों के दौरान आए दिन शहर में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलता रहा । बावजूद इसके आज भी अतिक्रमण जस का तस है, बल्कि बढ़ा ही है, घटा नहीं। पर हां एक दो जगह ऐसी है जहां गरीबों के टपरे हटाकर सफेदपोशों को देकर वाह वाही लूट ली गई ।
एक तरफ सत्ताधीश बालाघाट को ग्रीन सिटी बनाने का संकल्प लेते हुए फोटो खिंचवा रहे हैं तब उन्हें क्या यह दिखाई नहीं दिया कि पिछले दो वर्षो में शहर के कितने हरे-भरे बड़े पेड़ जो पचासों वर्ष पुराने थे को पहले दवा डालकर सुखाकर और फिर कितनी निर्दयता से कांटकर फेंक दिया गया, माननीयों को क्या कोई दर्द हुआ – नहीं हुआ? तो फिर ग्रीन सिटी का नाटक क्यों ? हमारे माननीय की कथनी और करनी में कितना अंतर है समझ लेना, ये जब भीड़ में जनता के बीच होते हैं तब कहेंगें कि ऑक्सीजन के लिए वृक्षों की सुरक्षा करना हम सब की जिम्मेदारी है, तब क्या इन्हें शहर में सम्मानीय द्वारा कटवाये गये पेड़ दिखाई नहीं दिए। शहर के अनेक गार्डन (बगीचे) व्यवसायिक हित के लिए उजाड़ दिए गए (समाप्त कर दिए) । बस स्टैण्ड का मुलना गार्डन सहित और भी कुछ गार्डन इसका उदाहरण है। आज इन गार्डनों में असामाजिक तत्वों का डेरा हो गया है।
इसी तरह स्वच्छ सिटी का संकल्प, कैसे पूरा होगा ? जहां देखो वहां कूड़ा कचरा बिखरा पड़ा है। नालियां गंदगी से भरी पड़ी, सड़ांध मार रही है। वार्डों की गंदगी के नजारे आए दिन अखबारों की सुर्खियां बनते हैं। लेकिन ना तो माननीयों को और ना सम्मानियों को ये सब दिखाई देता है ।
शहर की नल-जल योजना जिसमें शासन के ४५ करोड़ खर्च हो गए, क्या हुआ इस योजना का? सरकारी भ्रष्ट तंत्र के चलते इसका लाभ अभी तक शहर को नहीं मिल पाया है । निम्न एवं घटिया स्तर का कार्य होना इसके लिए जवाबदेह है। शहर का ड्रेनेज सिस्टम चरमराया हुआ है । बड़े – बड़े नाले अतिक्रमण के कारण सिकुडक़र छोटी नाली में तब्दील हो गए हैं,जिसके कारण नालियों का गंदा पानी सडक़ों से होकर लोगों के घरों में पहुंच रहा है। नालों एवं नालियों का घटिया निर्माण भी इसके लिए जवाबदेह है।
लाखों करोड़ों की लागत से बनी शहर की सडक़ें भी भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था का प्रमाण है जो बनने के चंद दिनों बाद ही उखडक़र गड्ढों में तब्दील हो गई ।
शहर में रोड के दोनों किनारों पर लगभग 45 लाख का बिल बनाकर थर्मोप्लास्ट की सफेद पीली पट्टी डाली गई थी, जो 3 माह में ही उखड़ गई। तब इस बेहूदा और घटिया कार्य के खर्च की जवाबदेही किसी की तो होना चाहिए। इसी तरह पेवर ब्लॉक लगाने में भी नगर पालिका को आर्थिक बोझ वहन करना पड़ा है। जो स्थान लोक निर्माण विभाग के दायरे में आते हैं वहां नपा की ओर से पेवर ब्लॉक लगा दिए गए है। पी डब्लू डी की रोड पर नपा के पैसे से सीमेंट रोड़ बनाई जा रही है ।
हनुमान चौक एवं काली पुतली चौक में यातायात नियंत्रण के लिए सिग्नल लाइट्स लगाने में लगभग 15 लाख रुपया खर्च हुआ जो पानी में बह गया। यह सिग्नल लाइट 1 दिन भी सही ढंग से नहीं चली और चंद रोज में ही दम तोडक़र बंद हो गई। घटिया किस्म की सिग्नल लाइट की व्यवस्था में नपा के पैसों की बरबादी का जवाबदेह कौन दोषी ठेकेदार या कमीशनबाज अधिकारी या सफेदपोश या ये तीनों?
शहर का अधिकांश हिस्सा पिछले कई माह से रात्रि में अंधकार में डूबा रहता है जो ना माननीय को और ना सम्मानियों को दिखाई दे रहा है। स्ट्रीट लाइट के लिए लाखों की राशि से खरीदी गई लाइट्स कहां है। इतनी जल्दी -जल्दी लाखों की लाइट्स कैसे खराब हो रही है । क्या घटिया क्वालिटी का सामान खरीदा गया है।
ये सब बातें आखिर किस ओर इशारा करती है । क्या ये मान लेना चाहिए कि शहर में क्या हो रहा है उससे माननीय को मतलब नहीं है । शहर एवं शहर की जनता को सम्मानीय के हवाले कर दिया गया है कि वे जैसा चाहे शहर को वैसा गढ़ देवें, हो सकता है इसमें माननीय की सहमति हो?

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