शांति का लबादा ओढ़े बंगाल हिंसा का जिम्मेदार ISF का सच क्या? TMC, कांग्रेस और लेफ्ट से कैसे रहे हैं संबंध

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नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल की राजनीति हमेशा से विविधताओं, ध्रुवीकरण और हिंसक टकरावों के लिए जानी जाती रही है। लेफ्ट फ्रंट की दशकों लंबी सत्ता, ममता बनर्जी की उग्र सियासी शैली वाली टीएमसी सरकार और बीजेपी जैसी पार्टी के बढ़ते प्रभाव के बीच ही उभरी है इंडियन सेक्युलर फ्रंट (ISF) जैसी पार्टी, जो खुद के धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करती रही है,लेकिन वक्फ कानून के विरोध के नाम पर इसके समर्थकों ने जिस तरह से बंगाल हिंसा को हवा दी, उससे इसका धर्मनिरपेक्षता वाला चोला पूरी तरह से उतर चुका है।

ISF: बात शांति की, सच्चाई हिंसा

सोमवार को कोलकाता और दक्षिण 24 परगना जिले के भांगड़ इलाके में जो हिंसा फैलाई गई, उसने ISF के ‘शांतिपूर्ण विरोध’ के दावों को कटघरे में खड़ा कर दिया है। वक्फ एक्ट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के नाम पर ISF समर्थक पुलिस से भिड़ गए। इनके समर्थकों ने न केवल पुलिस बैरिकेड तोड़े, बल्कि पुलिस की गाड़ियों को भी आग के हवाले कर दिया गया, जिसमें मोटरसाइकिलें और जेल वैन शामिल थी।

शोनपुर मार्केट इलाके में सीसीटीवी कैमरों को भी नुकसान पहुंचाया गया, ताकि उपद्रवियों की पहचान छिपाई जा सके, जिसके चलते रैपिड एक्शन फोर्स (RAF) को तैनात करना पड़ा। जब इन प्रदर्शनकारियों को कोलकाता की रैली में जाने से रोका गया, तो हालात बेकाबू ही हो गए। पुलिस पर जमकर पत्थरबाजी की गई, जिसमें कई पुलिसकर्मी जख्मी हो गए। ISF एमएलए नौसाद सिद्दीकी ने इन घटनाओं को सत्ताधारी टीएमसी की ‘साजिश’ बताया और भविष्य में भी छह महीने तक ‘शांतिपूर्ण’ विरोध जारी रखने की बात कहकर एक तरह से पुलिस-प्रशासन और ममता सरकार को सीधी चुनौती दे दी।

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