श्वानों को लेकर बना अधिनियम ठंडे बस्‍ते में, एक साल बाद भी पालन नहीं, आम नागरिक भुगत रहे सजा

0

प्रदेश में श्वानों की समस्या को नियंत्रित करने और पालतू एवं बेसहारा मवेशियों के नियोजन के लिए मप्र नगर पालिका (रजिस्ट्रेशन एवं आवारा पशुओं का नियंत्रण) नियम 2023 बनाया गया है। इसके तहत कई प्रावधान किए गए हैं। इस अधिनियम का 24 फरवरी 2023 यानी करीब एक वर्ष पहले राजपत्र में प्रकाशन भी हो चुका है, लेकिन इसके पालन की कोई व्यवस्था अब तक नहीं की गई।

इस अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है कि नगर निगम को यहां-वहां घूमते पाए जाने वाले श्वानों को पकड़कर कांजी हाउस में रखने का अधिकार है। इतना ही नहीं श्वानों को घर में पालने के लिए भी लाइसेंस जारी करने की बात कही गई है, लेकिन दिक्कत यह है कि यह अधिनियम अब तक कागजों से बाहर ही नहीं निकला। इसका क्रियान्वयन नहीं होने की सजा आम नागरिक भुगत रहे हैं।

शहर में एनिमल बर्थ कंट्रोल (एबीसी) सेंटरों को लेकर भी बहुत काम नहीं हुआ है। अधिनियम के प्रावधानों के मुताबिक नगर निगम सीमा में बगैर रजिस्ट्रेशन कोई व्यक्ति श्वान या अन्य कोई पालतू पशु का पालन नहीं किया जा सकता। नगर निगम सीमा में पालतु पशु के लाए जाने के अधिकतम तीन दिन में स्थानीय निकाय में उनका रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है। बगैर रजिस्ट्रेशन पशु पालने वाले व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज कराने का प्रावधान भी है।

अधिनियम में ऐसे प्रत्येक पशु को जिसका पालन किया जा रहा है एक रजिस्ट्रेशन नंबर भी जारी किया जाता है। आश्चर्य की बात यह है कि इस अधिनियम को मुंह चिढ़ाते हुए अब तक रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया ही शुरू नहीं हुई है। नगर निगम के पास अब तक रजिस्टर्ड श्वानों की कोई संख्या ही उपलब्ध नहीं है।

शहर में नहीं है श्वान शेल्टर होम

अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है कि स्थानीय निकाय को शहर में श्वानों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए आवारा (यहां-वहां घूमने वाले) श्वानों को पकड़कर उन्हें श्वान शेल्टर होम में रखना है, लेकिन दिक्कत यह है कि शहर में अब तक एक भी श्वान शेल्टर होम नहीं है।

पूर्व में इंदौर नगर निगम श्वानों को पकड़कर देवगुराडिया स्थित ट्रेंचिंग ग्राउंड और अन्यत्र छोड़ देता था, लेकिन वर्तमान में यह व्यवस्था भी बंद पड़ी है। इसकी वजह है कि ट्रेंचिंग ग्राउंड में अब पहले की तरह कचरे के ढेर नहीं रहे। वहां पहुंचने वाले कचरे का शत-प्रतिशत सेग्रिगेशन किया जाने लगा है। नगर निगम के बजट में भी श्वानों की संख्या को नियंत्रित करने के लिए कोई प्रावधान नहीं किए गए हैं।

श्वानों की संख्या नियंत्रित करने और श्वानों पर नियंत्रण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका लंबित है। इसमें कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रखा है। इसके जल्द ही जारी होने की संभावना है।

कई पेंच हैं अधिनियम में

बेसहारा पशुओं को नियंत्रित करने के लिए जिस अधिनियम का राजपत्र में प्रकाशन है उसमें कई तकनीकी खामियां भी नजर आ रही हैं। इसमें यह तो कहा है कि सड़क पर घूमते पाए जाने वाले आवारा पशुओं को पकड़कर नगर निगम को कांजी हाउस में रखना है। अगर पशु का स्वामी तय समय सीमा में पशु को वापस लेने नहीं आता है तो निगम को अधिकार है कि वह पशु की नीलामी कर दे।

महापौर पुष्यमित्र भार्गव से सीधी बात

सवाल- मप्र आवारा पशु नियंत्रण अधिनियम का प्रकाशन राजपत्र में 24 फरवरी 2023 को हो चुका है, क्या वजह है कि इसे लागू नहीं किया गया?

जवाब– इस मामले में रिव्यू याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। मैं खुद उस याचिका में पक्षकार बनने के लिए आवेदन दूंगा ताकि श्वानों की समस्या को नियंत्रित किया जा सके।

सवाल- श्वानों की संख्या नियंत्रित करने के लिए नगर निगम सिर्फ बधियाकरण पर निर्भर है। आंकडे बता रहे हैं कि वर्ष 2014 में बधियाकरण शुरू होने के बाद से श्वानों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी हो रही है।

जवाब- नगर निगम सीमा में 29 गांव शामिल होने के बाद श्वानों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। हम इनकी संख्या को नियंत्रित करने के लिए लगातार काम कर रहे हैं।

सवाल- श्वानों की संख्या नियंत्रित करने के लिए क्या रणनीति में कोई बदलाव करेंगे?

जवाब- हम सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं। उसके हिसाब से रणनीति तय करेंगे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here