भारतीय जीवन मूल्यों का लगातार क्षरण हो रहा है। बच्चे बड़ों का मान-सम्मान करना भूल रहे हैं। गरीमा और मर्यादा जैसे शब्दों से नई पीढ़ी का कोई लेना देना नहीं। ऐसे में नई पीढ़ी के ज्ञान को परिमार्जित कर उन्हें भारतीय संस्कृति एवं संस्कारों से परिचय कराना नितांत आवश्यक है। यह बात मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डा. विकास दवे ने संस्था मालवी जाजम के तत्वावधान में अायोजित पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में व्यक्त किए।अानलाइन हुए पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में मालवी रचनाकार माया बधेका की पुस्तक ‘सोलह संस्कार’ का विमोचन किया गया। समारोह में विक्रम विश्वविद्यालय के कुलानुशासक प्रो. शैलेन्द्र शर्मा ने कहा कि संस्कारों का महत्व केवल व्यक्ति या परिवार के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण समाज, राष्ट्र और विश्व के जन जीवन के लिए है। जीवन को उत्तरोत्तर बेहतर बनाने में इनकी भूमिका है। संस्कारवान व्यक्ति उसी तरह बन जाता है जैसे किसी धातु को घिसने-मांजने से उसमें चमक आ जाती है।
मालवी कवि नरहरि पटेल ने कहा कि हम हमारे मूल सांस्कृतिक जीवन को भूल गए हैं। हमारे यहां सारे संस्कार त्योहारों और पारिवारिक आयोजनों से जुड़े होते थे जो हमको एक सच्चे इंसान के रूप में बने रहने के लिए स्मरण कराते थे। कृतिकार माया बधेका ने कहा कि भावी पीढ़ी, बच्चों और युवाओं को संस्कृति से परिचय कराने, उनका जीवन सफल बनाने तथा मालवी बोली को बचाने के उद्देश्य से यह पुस्तक लिखी गई है। कृति के संपादक मुकेश इंदौरी ने कहा कि संस्कार सनातन धर्म की जड़ है।
भारतीय संस्कारों के कारण ही दुनिया में राष्ट्र की अलग पहचान है। इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार हरेराम वाजपेयी, डा. योगेन्द्रनाथ शुक्ल, अरविंद ओझा, रविन्द्र पहलवान, महेश सोनी, अनिल ओझा, पवन जैन, शिवकांता भदौरिया, डा. पद्मा सिंह, ज्योती जैन, सुषमा दुबे, डा. मीनु पाण्डेय, व्रजेन्द्र नागर, डा. शशि निगम, सरला मेहता भी उपसि्थत थीं।