सदी के अंत तक 30% से अधिक स्थानीय बोलियां खत्म होंगी, इससे औषधीय पौधों का ज्ञान खतरे में

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दुनिया में औषधीय पौधों पर तेजी से गायब होने का खतरा मंडरा रहा है, इससे कई सदियों पुराने उपचारों का ज्ञान खतरे में है। क्योंकि, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में स्थानीय बोलियां खत्म हो जाएंगी। इस वजह से कई ऐसे औषधीय पौधे हैं जिनकी जानकारी दोबारा कभी नहीं मिल सकेगी।

यह जानकारी ज्यूरिख विश्वविद्यालय के शोध में सामने आई है। शोध के लिए टीम ने भाषाई और जैविक विविधता के आधार पर उत्तरी अमेरिका, उत्तर-पश्चिम अमेजोनिया और न्यू गिनी में 230 स्थानीय बोलियों से जुड़े 12,000 औषधीय पौधों का अध्ययन किया।

उन्होंने पाया कि उत्तरी अमेरिका में 73% औषधीय ज्ञान केवल एक भाषा में उत्तर-पश्चिम अमेजोनिया में 91%, और न्यू गिनी में 84% ज्ञान एक ही भाषा में पाया जाता है। डॉ. रॉड्रिगो कहते हैं, ‘बोलियों के खत्म होने से औषधीय पौधों का पारंपरिक ज्ञान तो खत्म होगा ही साथ ही पूरा तंत्र भी इससे प्रभावित होगा। क्योंकि हम उनके संरक्षण के लिए कुछ खास नहीं कर पाएंगे।

’बोलियों में प्रकृति में मिलने वाले औषधीय पौधों का बड़ी मात्रा में ज्ञान होता है। ऐसे में स्थानीय बोली के खत्म होने से किस पौधे को क्या कहते हैं और उसकी विशेषता क्या है यह बताने वाला ही कोई नहीं मिलेगा। यूएन के अनुसार दुनिया में 7,400 भाषाओं में से 30% से अधिक के सदी के अंत तक गायब होने की आशंका है।

2022-32 स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय दशक

वर्तमान में बोली जाने वाली 1,900 से अधिक स्थानीय बोलियों के 10,000 से कम वक्ता हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 2022-32 को स्वदेशी भाषाओं का अंतर्राष्ट्रीय दशक घोषित किया है। केंट यूनिवर्सिटी के मानवविज्ञानी और संरक्षणवादी डॉ. जोनाथन लोह कहते हैं कि स्थानीय बोलियों में अज्ञात दवाओं का मूल्यवान ज्ञान हो सकता है। देशी बोली एक बार खो गई तो फिर कभी वापस नहीं मिलती।

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