बीते साल बाढ़ में ग्वालियर-चंबल संभाग के सात उच्च स्तरीय पुल पानी में डूब गए थे और इनके स्लैब बह गए थे। इससे सरकार को आर्थिक नुकसान तो हुआ ही यातायात भी काफी समय तक बाधित रहा। जांच में कोई इंजीनियर दोषी नहीं पाया गया पर डिजाइन में कमी बताई गई। इस तरह के कुछ और प्रकरण सामने आ चुके हैं। इसे देखते हुए अब सरकार ने उच्च स्तरीय पुल निर्माण की व्यवस्था में बदलाव किया है। अब बड़े पुल इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन पद्धति पर बनवाए जाएंगे। इसमें ठेकेदार ही पुल की डिजाइन बनाएंगे। यदि इसमें परिवर्तन होता है और लागत बढ़ती है तो उसका भार निर्माण एजेंसी को ही उठाना होगा।
जांच रिपोर्ट के मुताबिक श्योपुर बड़ोदा मार्ग पर सीप नदी पर बने उच्च स्तरीय पुल की लंबाई 105 मीटर से बढ़ाकर 125 मीटर कर दी गई। ऊचाई जल संसाधन विभाग के पुल से साढ़े तीन मीटर कम रही गई, जिसका कोई औचित्य नहीं था। इससे पुल डूब गया और क्षतिग्रस्त हो गया।
इसी तरह अन्य पुलों के निर्माण में भी कमी सामने आई। इसे देखते हुए लोक निर्माण विभाग ने अब केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय सड़क निधि के कामों में अपनाई जा रही इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन पद्धति पर उच्च स्तरीय पुलों का निर्माण कराने का निर्णय लिया है। इसमें पुल की डिजाइन विभाग की जगह ठेकेदार तैयार करेंगे। हालांकि, इसका अनुमोदन विभाग द्वारा किया जाएगा। निर्माण के बाद गारंटी की अवधि दस साल की रहेगी। यह अभी पांच साल रहती है।
विभाग के प्रमुख अभियंता नरेन्द्र कुमार का कहना है कि अभी विभाग डिजाइन तैयार करके निविदा बुलाता है। कई निर्माण एजेंसी स्थल निरीक्षण के बाद डिजाइन में बदलाव भी कराती है। इससे निर्माण लागत के साथ कार्य पूर्ण होने की अवधि भी बढ़ जाती है। इन सब बातों को देखते हुए विभागीय मंत्री गोपाल भार्गव की अध्यक्षता में हुई बैठक में उच्च स्तरीय पुलों का निर्माण इंजीनियरिंग प्रोक्योरमेंट एंड कंस्ट्रक्शन पद्धति से कराने का निर्णय लिया गया है। इससे डिजाइन तय होने के बाद निर्माण की संपूर्ण जिम्मेदारी ठेकेदार की होगी। गारंटी की अवधि भी दस साल की रहेगी। इससे लाभ यह होगा कि एक बार लागत तय हो जाने के बाद उसमें वृद्धि होती है तो उसका भार सरकार पर नहीं आएगा। साथ ही पुल को किसी भी प्रकार की क्षति पहुंचने पर निर्माण एजेंसी की जिम्मेदारी तय होगी।