साइक्लोन मैंडूस ​​​​​​​MP में कराएगा बारिश:इंदौर, भोपाल समेत 13 शहरों में ज्यादा असर होगा

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बंगाल में एक्टिव साइक्लोन मैंडूस तमिलनाडु में तबाही मचाने के बाद दक्षिण आंध्र प्रदेश की तरफ बढ़ गया है। मौसम विभाग के मुताबिक, शुक्रवार देर रात साइक्लोन मामल्लपुरम तट से टकराने के बाद कमजोर पड़ गया। मैंडूस अगर दिशा बदलकर विशाखापट्‌टनम तट से टकराता है तो इसका सीधा असर मध्यप्रदेश में भी पड़ेगा। यहां तेज हवाओं के साथ भारी बारिश होगी। दिन का पारा 15 डिग्री सेल्सियस से भी नीचे चला जाएगा। पूरा प्रदेश शीतलहर की चपेट में आ जाएगा।

भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (आइसर) भोपाल के रिसर्च एसोसिएट डॉ. गौरव तिवारी ने दैनिक भास्कर को बताया कि मैंडूस का सेंटर चेन्नई होने से मध्यप्रदेश को राहत है। मैंडूस के असर से मध्यप्रदेश में 12 दिसंबर से मौसम में बदलाव होने लगेगा। अभी की स्थिति में इसका सबसे ज्यादा असर इंदौर में दिखाई दे रहा है।

चक्रवात के कारण मध्यप्रदेश में अगला एक सप्ताह मौसम के लिहाज से उथल-पुथल भरा रहेगा। पहले तो तापमान में बढ़त होगी, लेकिन फिर बादल, बारिश की वजह से तापमान में गिरावट दर्ज की जाएगी।

तीन दिन तक यहां ज्यादा असर
प्रदेश में 12 दिसंबर से हल्की बारिश हो सकती है। तीन दिन तक मैंडूस का सबसे ज्यादा असर इंदौर, खंडवा, इटारसी, बड़वानी, भोपाल, आगर-मालवा, सागर, रीवा, छतरपुर, छिंदवाड़ा, बैतूल, जबलपुर और शहडोल में रहेगा। हालांकि, इससे सबसे ज्यादा महाराष्ट्र, केरल और कर्नाटक में प्रभाव रहेगा।

सबसे ज्यादा नुकसान भारत में
सामान्यतयः बंगाल की खाड़ी अपेक्षाकृत अधिक गर्म होती है। इसके चलते हर साल इसमें औसतन 3 से 5 चक्रवात बनते हैं, जबकि अरब सागर में 1 से 2 चक्रवात उठते हैं। इस प्रकार हर साल दुनिया में 8 से 9% चक्रवात सिर्फ उत्तरी हिंद महासागर में ही बनते हैं। सर्वाधिक आबादी घनत्व होने के कारण सबसे ज्यादा जान-माल का नुकसान भारत के तटीय राज्यों के अलावा श्रीलंका, बांग्लादेश, वियतनाम देशों में भी होता है।

उत्तरी हिंद महासागर में साल के 2 सीजन में ये चक्रवात पैदा होते हैं। पहला- प्री-मानसून सीजन, जो अप्रैल से मई तक रहता है। दूसरा- पोस्ट-मानसून सीजन, जिसकी अवधि अक्टूबर से दिसंबर तक होती है। समुद्री चक्रवातों के बनने की प्रमुख शर्तों में सबसे जरूरी शर्त है कि समुद्री जल की ऊपरी लगभग 50 से अधिक मीटर की परत का 26.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म होना।

तूफान मैंडूस का नाम UAE ने दिया
चक्रवाती तूफान मैंडूस का नाम संयुक्त अरब अमीरात (UAE) ने दिया है। अरबी भाषा में इसका अर्थ है- खजाना। इस साल मानसून के बाद बंगाल की खाड़ी में यह दूसरा तूफान है। इससे पहले अक्टूबर में बांग्लादेश के तट पर सितरांग तूफान आया था।

27 साल में चक्रवातों की संख्या दोगुनी
डॉ. गौरव ने बताया, साल 1990 से 2017 तक चक्रवात के डाटा की स्टडी की। इसमें पाया है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से लगातार गर्म होते जा रहे उत्तरी हिंद महासागर में उष्ण कटबंधीय चक्रवातों (ट्रॉपिकल साइक्लोन्स) की तीव्रता में वृद्धि होती जा रही है। हालांकि, यह भी आशंका है कि उनकी औसत वार्षिक संख्या में कुछ कमी आ सकती है। करीब 27 साल के दौरान बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में 2.5 और 1.18 की वार्षिक औसत से क्रमश: 70 और 33 चक्रवातों का उद्भव हुआ।

तापमान बढ़ने से तीव्रता बढ़ी
इन दोनों समुद्रों के जल के तापमान में भी क्रमश: 0.15 और 0.16 डिग्री सेल्सियस की बढ़त हुई है। आने वाले सालों में अरब सागर में और अधिक तीव्रता वाले चक्रवात बनेंगे, जबकि बंगाल की खाड़ी में बनने वाले चक्रवातों की तीव्रता में कुछ गिरावट देखने को मिल सकती है।

अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन और इंडियन ओशियन डायपोल का असर
अल नीनो सदर्न ऑसिलेशन (ENSO) और इंडियन ओशियन डायपोल (IOD) का असर उत्तरी हिंद महासागर के चक्रवातों पर भी पड़ता है। 1990 से 2017 के मध्य एनसो के लॉ-नीना फेज में अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के औसत एसीआई में क्रमशः 25.1% और 5.6% की वृद्धि देखने को मिली है। निगेटिव आईओडी के वर्षों में अरब सागर में औसत एसीआई में 29.4% की वृद्धि, जबकि बंगाल की खाड़ी में 65.9% की गिरावट पाई गई है।

अब अरब सागर ज्यादा गर्म होने लगा
मध्यप्रदेश में बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का मौसम पर प्रभाव पड़ता है। बंगाल की खाड़ी का सागर गर्म (औसतन तापमान 26 डिग्री सेल्सियस) और अरब सागर ठंडा ( औसतन तापमान 22 से 25 डिग्री सेल्सियस) कहा जाता है, लेकिन अब अरब सागर की पानी की सतह का तापमान 0.7 से 0.8 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है। समुद्र में चक्रवात 26 डिग्री सेल्सियस पर बनती हैं। अरब सागर में चक्रवात पहले भी बनते रहे हैं, लेकिन अब तक इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि यह मानसून में पहली बार मुंबई से होते गए। अभी तक यह गुजरात को हिट करते थे, लेकिन मुंबई और केरल में पहली बार इनकी एंट्री हुई।

1970 के बाद से तेजी से तापमान में बढ़ोतरी
मौसम वैज्ञानिक प्रोफेसर पंकज कुमार ने बताया कि मौसम में बदलाव होना सामान्य है, लेकिन जलवायु में परिवर्तन होना ग्लोबल वॉर्मिंग का साफ संदेश है। यही चिंता की बात है। अभी तक सबसे ज्यादा गर्मी, सबसे ज्यादा बारिश और सबसे कम तापमान सामान्य तौर पर सामान्य के आसपास रहते थे, लेकिन 1970 के बाद इनमें तेजी से बढ़ोतरी हुई है। यह स्ट्रीम स्तर पर यह घटनाएं ज्यादा बढ़ गई हैं।

उदाहरण के तौर पर पहले बादल फटने (एक घंटे में एक ही जगह पर 4 इंच बारिश) की घटनाएं साल में एक बार होती थीं। यह भी हिमालय के क्षेत्रों में होती थीं, लेकिन अब यह शहरी क्षेत्रों में ज्यादा बढ़ गई हैं। यही नहीं, एक मानसून सीजन में यह 3 से चार बार होने लगी हैं।

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