सागर जिले के एरण में पुरातात्विक महत्व के बारे में उत्‍खनन की अनुमति, यह है लक्ष्‍य

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गुप्त काल के प्रसिद्ध शासक समुद्रगुप्त के पसंदीदा एरिकिण शहर (वर्तमान में एरण) के पुरातात्विक महत्व के बारे में और अधिक जानकारी के लिए उत्खनन किया जाएगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) की नागपुर टीम को इसकी अनुमति मिल गई है। एरण सागर जिले की बीना तहसील में है। जनवरी महीने में एएसआइ की टीम यहां खोदाई शुरू करेगी। समुद्रगुप्त अपनी राजधानी पाटलीपुत्र से अकसर यहां समय व्यतीत करने आया करते थे। बताया जाता है कि यहां उनकी एक रानी भी रहा करती थी। आज भी यहां कई मंदिर और पाषाण स्तंभ गौरवशाली अतीत को दर्शाते हैं।

इसी साल जुलाई महीने में सागर के कलेक्टर दीपक सिंह ने पुरातत्व विभाग की टीम के साथ एरण व नजदीकी मढ़बामोरा गांव का दौरा किया था। तब पुरातत्व विभाग की टीम ने मलबे के नीचे इतिहास की कई कड़ियों और रहस्यों के दबे होने की संभावना जताई थी। कलेक्टर ने रुचि दिखाई और एरण में पुरातात्विक महत्व की चीजों की जानकारी के लिए उत्खनन का प्रस्ताव तैयार कर भेजने के लिए कहा। पुरातत्व विभाग के संरक्षण सहायक राहुल तिवारी और उनकी टीम ने एरण के ऐतिहासिक महत्व के गहन अध्ययन के संबंध में प्रस्ताव तैयार किया और स्वीकृति के लिए भेजा। एएसआइ ने इस प्रस्ताव को स्वीकृति दे दी है। उत्खनन का कार्य एएसआइ की नागपुर टीम करेगी।

राहुल तिवारी बताते हैं कि समुद्रगुप्त के एरण अभिलेख में लिखा हुआ है कि वे एरिकिण में स्वभोग (सैर-सपाटे, मनोरंजन) के लिए आते रहते थे। संभावना है कि समुद्रगुप्त का वही नगर यहां मलबे में दबा हुआ है। खोदाई के दौरान उसके रहस्य सामने आ सकते हैं। प्रागैतिहासिक काल से लेकर गुप्त काल, मराठा काल का इस स्थान को लेकर जो इतिहास अभिलेखों में दर्ज है उसकी कड़ियां भी इससे जुड़ पाएंगी।

यह है एरण का इतिहास

महाभारत काल में भीम ने हस्तिनापुर से प्रस्थान कर चेदि पर अधिकार किया था। उस वक्त सागर जिले का संपूर्ण भू-भाग चेदि जनपद में सम्मिलित था।

– बौद्ध काल में व्यापारिक मार्ग एरण से होता हुआ विदिशा, उज्जैन की ओर जाता था।

– मौर्य काल में राजा धर्मपाल और राजा इंद्रगुप्त ने एरण पर शासन किया। यहां से धर्मपाल के सिक्के और इंद्रगुप्त की प्रशासकीय मुद्रा प्राप्त हुई हैं।

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