नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) को लेकर केंद्र सरकार ने कोर्ट से सीएए के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज करने की मांग की। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने हलफनामे में कोर्ट को बताया कि साल 2019 में पेश किया गया नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) किसी भी भारतीय नागरिक के कानूनी, लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है।
केंद्र सरकार ने शीर्ष अदालत से कहा है कि किसी भी देश के नागरिकों द्वारा भारत की नागरिकता प्राप्त करने की मौजूदा व्यवस्था सीएए से अछूती बनी हुई है और वैध दस्तावेजों और वीजा के आधार पर कानूनी प्रवासन सहित दुनिया के सभी देशों से इजाजत है। सरकार ने याचिकाकर्ताओं पर भी सवाल उठाया है। केंद्र ने याचिकाकर्ताओं पर सवाल उठाते हुए हलफनामे में कहा कि इमिग्रेशन पॉलिसी, नागरिकता और अप्रवासियों को देश से बाहर करने से संबंधित मामले संसद के अधिकार क्षेत्र में आते हैं और जनहित याचिकाओं के माध्यम से इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है।
सरकार ने हलफनामे में कहा है कि नागरिकता संशोधन अधिनियम की धारा 2 (1) (बी) में एक नया प्रावधान जोड़ा गया है। उसी के अनुसार, अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई समुदायों से संबंधित व्यक्ति, और जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत छूट दी गई है। इनको विदेशी अधिनियम, 1946, के तहत ‘अवैध प्रवासी’ नहीं माना जाएगा और, ऐसे व्यक्ति 1955 के अधिनियम के तहत नागरिकता के लिए आवेदन करने के पात्र होंगे।
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट सीएए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं सहित करीब 240 जनहित याचिकाओं की सुनवाई करेगा। प्रधान न्यायाधीश उदय उमेश ललित, न्यायमूर्ति एस। रवींद्र भट और न्यायमूर्ति बेला एम। त्रिवेदी की पीठ के समक्ष केवल सीएए के मुद्दे पर 31 अक्टूबर को 232 याचिकाएं सुनवाई के लिए सूचीबद्ध है, जिनमें ज्यादातर जनहित याचिकाएं हैं।