सोने-चांदी के आभूषणों से होता है संस्कारधानी की जेठानी-देवरानी का श्रंगार

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संस्कारधानी का दुर्गोत्सव कोलकाता व मैसूर की तर्ज पर समूचे देश में चर्चित रहता आया है। यहां सुनरहाई व नुनहाई की मातारानी जेठानी व देवरानी के रूप में चर्चित रहती हैं। दशहरा चल समारोह में इन्हीं की अगुवाई होती है। श्रीरामलीला समिति गोविंदगंज के बाद इनकी झांकी निकलती है। सुनरहाई की माता रानी को नगर सेठानी की गरिमा प्राप्त है।

वे सोने-चांदी से सजी-धजी रहती हैं। प्रतिवर्ष सोने की मात्रा बढ़ती चली जाती है। सुनरहाई व नुनहाई की देवी प्रतिमा का निर्माण कुशल मूर्तिकारों द्वारा बुंदेलखंडी व गोंडवाना की संस्कृति की झलक को मूर्ति में स्थान दिया जाता है। इसलिए ये प्रतिमाएं जब स्थापित होती हैं, तो देखने लायक होती हैं। शारदेय नवरात्र में सुनरहाई व नुनहाई की देवी प्रतिमा को लाने व स्थापित करने से लेकर पूजन तक सभी विधियां अनूठी होती हैैं। विधि-विधान का पूर्ण पालन किया जाता है। 1886 में पहली बार सुनरहाई की प्रतिमा सुनरहाई में कुंए के पास स्थापित की गई थी। शुरुआत में माता रानी को माटी के जेवर पहनाए जाते थे। आगे चलकर सोने-चांदी के आभूषण व हीरा जडित घड़ी पहनाई जाने लगी। इसीलिए सुरक्षा का पहरा भी सख्त रहता है।

सोने के मुकुट, कंगन, बाजूबंद, करधनी, हार, बाला, नथ, चांदी के तोड़ल, छत्र, हीरा जड़ित घड़ी सहित अनेक बुंदेली आभूषण हैं। इनका मूल्य करीब एक करोड़ रुपए हैं। इन्हें रखने के लिए बैंक में एक लॉकर है। नवरात्रि के बाद सभी आभूषणों को लॉकर में रख दिया जाता है। 1991 के बाद से ज्यादा आभूषण चढ़ोत्तरी में आए। अब मातारानी के पूरे आभूषण सोने और चांदी के हैं। प्रतिमा का स्वरूप नहीं बदला गया। आज भी बुंदेली स्वरूप में ही प्रतिमा का निर्माण कराया जाता है।

शहर के नुनहाई क्षेत्र में स्थापित होने वाली मातारानी की प्रतिमा के आभूषण हर वर्ष बढ़ते जा रहे हैं। नवरात्र के दिनों में समिति को लाखों रुपए के आभूषण चढ़ावा में प्राप्त होते हैं। इसे व्यवस्थित रखने बैंक में लाकर है। यही नहीं बैंक में मातारानी की फिक्स डिपाजिट पालिसी भी है। नुनहाई में 1868 की शारदीय नवरात्र से मातारानी की प्रतिमा स्थापना की परम्परा चली आ रही है। वैसे तो यहां माता को सोना-चांदी के जेवरात शुरुआत से ही पहनाए जा रहे हैं। 1972 में माता को 15 किलो चांदी का छत्र चढ़ाया गया था। इसके बाद से अब तक माता के आभूषण करीब 1.5 करोड़ के हो गए हैं। जिसे सुरक्षित रखने समीति ने बैंक में बड़ा लॉकर ले रखा है।

लाकर के किराए की पूर्ति के लिए बैंक में 50 हजार की एफडी कराई गई है। माता के श्रृंगार में कोई भी आभूषण आर्टिफीशियल नहीं हैं। माथे की बेंदी से लेकर पायल तक सोना से बनी हुईं है। माता की सवारी शेर के आभूषण भी सोना-चांदी के हैं। आभूषण के छोटे बड़े कई सेट हैं। बुंदेली आभूषणों से सजती हैं शेरावाली। प्रतिवर्ष माता का स्वरूप बुंदेली रहता है इसलिए अधिकांश आभूषण भी बुंदेली पहनावा के हैं। हाथ के लिए गजरा, बंगरी, दो-दानी, ककना, बाजूबंद, संतान सप्तमी की सोने की चूड़ियां। पैर के लिए तोड़ल, पेजना, पायजेब, पायलें। शेर के आभूषण में पायलें, हार, कान के कुंडल, मुकुट और छत्र शामिल हैं। इसके अलावा मातारानी के सोने-चांदी के छत्र, चांदी की तलवारें, त्रिशूल, चांदी का चक्र, सोने की सीतारामी व मंगलसूत्र ज्वेलरी में शामिल है।

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