जनपद पंचायत वारासिवनी अंतर्गत ग्राम पंचायत साँईधाम झालीवाड़ा मैं प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी 11 दिवसीय श्री साँई मंदिर वार्षिकोत्सव 22 दिसंबर से प्रारंभ किया गया है। यह कार्यक्रम श्री साँई मंदिर ट्रस्ट एवं समस्त ग्रामवासी के तत्वाधान में आयोजित कर परंपरा अनुसार साँईधाम झालीवाड़ा में श्री शिरडी साँई बाबा के प्राण प्रतिष्ठा का 14वां वार्षिक उत्सव कार्यक्रम का हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। जिसका 22 दिसंबर को विशेष पूजा अर्चना कर शोभायात्रा निकालकर प्रारंभ किया गया वहीं 23 दिसंबर से कथा का प्रारंभ किया गया है। जिसमें इस वर्ष स्कंद पुराण पाठ का आयोजन किया गया है जिसका वचन व्यास आसन से वृंदावन से पधारी बाल विदुषी देवीका दीक्षित के मुखारविंद से किया जा रहा है वहीं प्रतिदिन रात्रि में भक्तमाला लीला का नाट्य मंचन जीवंत झांकियां के साथ मथुरा वृंदावन के सुप्रसिद्ध कलाकार एवं पंडित राधा वल्लभ के सानिध्य में किया जा रहा है। जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण सहित क्षेत्रवासी उपस्थित होकर धर्म लाभ अर्जित कर रहे हैं।
साँईधाम झालीवाड़ा में बह रही ज्ञान की गंगा
साँईधाम झालीवाड़ा में प्रतिवर्ष अनुसार इस वर्ष भी कथा का आयोजन किया गया है परंतु इस बार स्कंद पुराण कथा का आयोजन किया गया है। जिसमें वृंदावन से पधारी बाल विदुषी देवीका दीक्षित के द्वारा 23 दिसंबर से प्रतिदिन दोपहर 12 से श्याम 5 बजे तक संगीतमय कथा का वचन किया जा रहा है। जिनके द्वारा 24 दिसंबर को समुद्र मंथन का वर्णन सुनाते हुए कहा गया कि भगवान(विष्णु) के आदेशानुसार इन्द्र देव ने समुद्र ममन्थन से अमृत निकलने की बात बलि को बताया। असुरराज बलि ने देवराज इन्द्र से समझौता कर लिया और समुद्र मंथन के लिये तैयार हो गये। मन्दराचल पर्वत को मथनी तथा वासुकी नाग को नेती बनाया गया। वासुकी के नेत्र से राजपुरोहित का उद्भव हुआ। स्वयं भगवान श्री विष्णु कच्छप अवतार लेकर मन्दराचल पर्वत को अपने पीठ पर रखकर उसका आधार बन गये। भगवान नारायण(विष्णु) ने असुर रूप से असुरों में और देवता रूप से देवताओं में शक्ति का संचार किया। वासुकीनाग(मथनी) को भी गहन निद्रा दे कर उसके कष्ट को हर लिया। देवता वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने लगे। इस पर उल्टी बुद्धि वाले दैत्य, राक्षस, दानवादि ने सोचा कि वासुकी नाग को मुख की ओर से पकड़ने में अवश्य कुछ न कुछ लाभ होगा। उन्होंने देवताओं से कहा कि हम किसी से शक्ति में कम नहीं हैं, हम मुँह की ओर का स्थान लेंगे।(मथने के लिए) तब देवताओं ने वासुकी नाग के पूँछ की ओर का स्थान ले लिया। समुद्र मन्थन आरम्भ हुआ और भगवान कच्छप के एक लाख योजन चौड़ी पीठ पर मन्दराचल पर्वत घूमने लगा। समुद्र मंथन से सबसे पहले जल का हलाहल विष निकला। उस विष की ज्वाला से सभी देवता तथा असुर जलने लगे और उनकी कान्ति फीकी पड़ने लगी। इस पर सभी ने मिलकर भगवान शंकर की प्रार्थना की उनकी प्रार्थना पर महादेव जी उस विष को हथेली पर रख कर उसे पी गये किन्तु उसे कण्ठ से नीचे नहीं उतरने दिया उस कालकूट विष के प्रभाव से शिव जी का कण्ठ नीला पड़ गया। इसीलिये महादेव जी को नीलकण्ठ कहते हैं। उनकी हथेली से थोड़ा सा विष पृथ्वी पर टपक गया था जिसे नाग , बिच्छू आदि विषैले जन्तुओं ने ग्रहण कर लिया।
समुद्र मंथन के अंत मे अमृत निकाला
विष को शंकर भगवान के द्वारा पान कर लेने के पश्चात् फिर से समुद्र मंथन प्रारम्भ हुआ। दूसरा रत्न कामधेनु गाय निकली जिसे ऋषियों ने रख लिया। फिर उच्चैःश्रवा घोड़ा निकला जिसे असुरराज बलि ने रख लिया। उसके बाद ऐरावत हाथी निकला जिसे देवराज इन्द्र ने अपना वाहन बना लिया। ऐरावत के पश्चात् कौस्तुभमणि समुद्र से निकली उसे विष्णु भगवान ने रख लिया। फिर कल्पवृक्ष निकला और रम्भा नामक अप्सरा निकली इन दोनों को देवलोक में रख लिया गया। आगे फिर समु्द्र को मथने से महलक्ष्मी जी निकलीं। महालक्ष्मी जी ने स्वयं ही भगवान विष्णु को वर लिया। उसके बाद कन्या के रूप में वारुणी प्रकट हई जिसे असुरों ने ग्रहण किया। फिर एक के पश्चात एक चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष तथा शंख निकले और अन्त में धन्वन्तरि वैद्य अमृत का घट लेकर प्रकट हुये। इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को आत्म मंथन करना चाहिए क्योंकि इससे व्यक्ति के मन की बहुत सारी चीज बाहर आ जाती है और अंत में शांत मन हो जाता है जो सुख की अनुभूति देता है इसलिए आत्म मंथन बहुत जरूरी है।
भक्तमाल लीला का रात्रि में हो रहा मंचन
इस 11 दिवसीय श्री साई मंदिर वार्षिक उत्सव में इस वर्ष भी प्रतिवर्ष की भांति रात्रि मंचन कार्यक्रम का आयोजन किया गया है जिसमें इस वर्ष भक्तमाल लीला का मंचन किया जा रहा है। जो मथुरा वृंदावन के सुप्रसिद्ध कलाकार एवं पंडित राधा वल्लभ के शांति में जीवंत झांकियां की अनुपम श्रृंखला के साथ करवाया जा रहा है। जिसमें विभिन्न पात्र के द्वारा बाल लीला व अन्य लीलाओं का प्रदर्शन किया जा रहा है जिसके माध्यम से लोग भगवान एवं भक्ति की लीला को समझ पा रहे हैं। जहां पर बड़ी संख्या में लोग रात्रि में उपस्थित होकर 8:00 बजे से प्रारंभ होने वाली भक्तमाल लीला का देर रात तक आनंद ले रहे हैं।
समिति सदस्य अनिल देशमुख ने पद्मेश से चर्चा में बताया कि श्री साँई मंदिर वार्षिक उत्सव का यह 14 वर्ष हर्षोल्लाह के साथ आयोजित किया गया है इसमें परंपरा अनुसार प्रतिवर्ष अलग अलग कथा व लीला का आयोजन किया जाता है जिसमें इस वर्ष स्कंद पुराण एवं रात्रि में भक्तमाल लीला आयोजित की जा रही है। जिसमें क्षेत्र सहित आसपास के लोग बड़ी संख्या में उपस्थित होकर धर्म लाभ अर्जित कर रहे हैं। यह आयोजन करने का उद्देश्य रहता है कि आज से 14 वर्ष पूर्व हमारे द्वारा शिर्डी के साइन बाबा की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी जिसका वार्षिक उत्सव के रूप में प्रतिवर्ष आनंद उत्सव आयोजित किया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति धर्म से जुड़ रहे। वही कथा पुराण एवं लीला आयोजित करने के पीछे यही उद्देश्य है कि लोग सीखें की किस प्रकार से उन्हें अपना व्यवहार रखता है परिवार में किस प्रकार रहना है और मुख्य बात की धर्म से जुड़े रहना यही रहता है।