10 साल में बदले समीकरण, दांव पर लगी क्षेत्रीय दलों के नेताओं की सियासत

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लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां शुरू हो चुकी है। इस बार बेशक सभी की निगाहें सत्ताधारी भाजपा और विपक्षी गठबंधन की अगुवाई करने वाली कमजोर कांग्रेस पर लगी है, लेकिन इस बार के लोकसभा चुनाव में कई बड़े क्षेत्रीय दलों के नेताओं का भविष्य भी दांव पर लगा हुआ है। अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, चंद्रबाबू नायडू व चंद्रशेखर राव से लेकर ममता बनर्जी, शरद पवार और उद्धव ठाकरे जैसे कई क्षेत्रीय दलों के दिग्गज नेता हैं, जिनका राजनीतिक भविष्य इस बार के लोकसभा चुनाव में तय हो जाएगा।

10 साल में बदल गए समीकरण

देश में बीते 10 साल में केंद्र में भाजपा शासन के दौरान सियासी समीकरण तेजी से बदले हैं। बंगाल में ममता बनर्जी की बढ़ी चुनौती इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है। 2019 में लोकसभा की 18 सीटें जीतने के बाद 2021 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 75 सीटें जीतकर प्रमुख विपक्षी दल का दर्जा प्राप्त कर लिया। इसके बाद से ही ममता बनर्जी और भाजपा में टकराव बढ़ गया है। संदेशखाली की ताजा घटना पर दोनों के टकराव है और 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों दल आर-पार की लड़ाई लड़ रहे हैं।

हेमंत सोरेन व तेजस्वी को चुनौती

कुछ ऐसा ही हाल झारखंड का है। यहां ईडी द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जेल से फिलहाल बाहर आना मुश्किल लग रहा है। तेजस्वी यादव के लिए बिहार में लोकसभा चुनाव चिंता के सबब बने हुए हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राजद को एक भी सीट नहीं मिली थी।

अखिलेश यादव नहीं दिखा सके कमाल

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी विपक्ष की धुरी है। अखिलेश यादव पिछले 2 लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कोई कमाल नहीं दिखा पाए हैं। 2012 में मुख्यमंत्री बनने के बाद अखिलेश ने सपा के नेतृत्व की बागडोर भी अपने हाथों में ली तथा 2014 और 2019 में नेतृत्व उनका ही था, लेकिन इसके बावजूद समाजवादी पार्टी बीते दो लोकसभा चुनाव में 5 सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर पाई है। लगातार दो विधानसभा चुनाव भी हार गई है।

महाराष्ट्र में सत्ता के पार्टी भी चली गई

महाराष्ट्र में दो बड़े नेताओं NCP के पवार गुट के प्रमुख शरद पवार व शिवसेना यूबीटी के प्रमुख उद्धव ठाकरे की छवि तो गहरा धक्का लगा है। इन दोनों ही नेताओं के हाथों से सत्ता जाने के साथ-साथ पार्टी भी चली गई है। शरद पवार इस लोकसभा चुनाव में खुद का अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। बागी भतीजे अजीत पवार न केवल भाजपा के साथ जाकर डिप्टी सीएम बन गए, वहीं एनसीपी पर भी कब्जा कर लिया है। कुछ ऐसा ही हाल उद्धव ठाकरे का है। उद्धव गुट के बागी एकनाथ शिंदे को भाजपा ने मुख्यमंत्री बना दिया और शिवसेना के चुनाव चिन्ह तीर-धनुष के साथ-साथ शिवसेना पर भी कब्जा कर लिया।

दक्षिण में भाजपा को रोकने की चुनौती

तमिलनाडु में जयललिता के निधन के बाद सियासत में काफी बदलाव आया है। अन्नाद्रमुक अंदरूनी कलह से जूझ रही है। इस लोकसभा चुनाव में भी यदि पार्टी का हाल बीते लोकसभा चुनाव जैसा ही हुआ तो फिर पूर्व मुख्यमंत्री पलानीस्वामी और पूर्व सीएम पन्नीरसेल्वम की राजनीतिक भविष्य दांव पर होगा।

कुछ इसी तरह तेलंगाना में 4 महीने पहले तक सत्ता के शहंशाह रहे BRS प्रमुख के.चंद्रशेखर राव को कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव में चित कर दिया। लोकसभा चुनाव में अब BRS बिखरी हुई दिखाई दे रही है। भाजपा की आक्रामक रणनीति के साथ मुकाबला करना चंद्रशेखर राव के लिए बड़ी चुनौती है। वहीं आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी और चंद्रबाबू नायडू दोनों के लिए यह चुनाव दोहरी कसौटी है, क्योंकि वहां विधानसभा चुनाव भी साथ में होने वाले हैं।

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