68 साल की भारतीय मूल की दादी मां ने तैराकी सीखने के लिए ट्रेनिंग ली, गूगल, वीडियो देखे; संदेश यही कि खुद को हार मानने का विकल्प न दें

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हम अक्सर चर्चा करते हैं कि उम्र सिर्फ एक नंबर है, इच्छाशक्ति मजबूत हो तो किसी भी उम्र में कोई भी काम किया जा सकता है। ऐसी ही प्रेरक कहानी है सैन फ्रांसिस्को में रहने वाली भारतीय मूल की विजया श्रीवास्तव की। उन्होंने 68 साल की उम्र में पहली बार स्विमिंग सीखी। विजया इससे पहले अपना वक्त नाती के साथ घूमकर या फिर लाइब्रेरी में जाकर बिताती थीं। उन्हें कभी इसकी जरूरत भी नहीं थी। पर इस उम्र में उन्होंने स्विमिंग का प्रशिक्षण लिया। और इसके बाद उनकी जिंदगी पूरी तरह बदल गई, पढ़िए ये कैसे हुआ, उन्हीं के शब्दों में…

कभी भी परिस्थिति से भागने की कोशिश न करें, मजबूत मानसिक तैयारी रखें, ‌विफलता का डर दूर होगा: विजया

‘मैं भारत में पली-बढ़ी, कभी भी स्विमिंग पूल, या नदी-तालाबों में तैरने की जरूरत महसूस नहीं हुई। इसलिए कभी इस बारे में सोचा भी नहीं। अमेरिका आने पर जब सेहत खराब रहने लगी तो इलाज चला। एक बार डॉक्टर ने मुझे कहा कि दवाई अपनी जगह है, अगर आप स्विमिंग करेंगी तो सेहत में काफी सुधार होगा। तो मैंने डॉक्टर से पूछा कि इस उम्र में तैराकी सीखना ठीक होगा।

डॉक्टर का कहना था बिल्कुल आपको पेशेवर प्रशिक्षण से मदद मिलेगी। मैंने और मेरी पड़ोसन ने हाई स्कूल में ट्रेनिंग देने वाली ट्रेनर से इस बारे में चर्चा की, तो वो तैयार हो गई। हालांकि इससे पहले उसने किसी बुजुर्ग को तैरना नहीं सिखाया था। उसने हमें हफ्ते में तीन दिन ट्रेनिंग देनी शुरू की। पर मैं इस बीच में भी पूल जाने लगी थी। सुबह जल्दी तैयार होकर पहुंच जाती। ठीक से सो नहीं पाती, बिस्तर पर भी स्विमिंग के स्टेप्स दोहराती रहती थी। पति कहते, क्या कर रही हो, यह पूल नहीं है।

ट्रेनिंग शुरू होने के बाद मैंने गूगल पर इसके बारे में खोजबीन शुरू की। यू-ट्यूब पर भी स्विमिंग के वीडियो देखा करती थी, पर उन्हें देखकर भ्रम होता था। बाद में मेरी बेटी ने मुझे टोटल इमर्शन स्वीमिंग वीडियो के बारे में बताया, इसमें एक शख्स तैराकी की बारीकियों के बारे में बताता है, इससे काफी मदद मिली। काफी दिनों तक कम गहरे पानी में ही तैरती। पर ट्रेनर ने कहा कि आपको दूसरे छोर पर भी जाना चाहिए। हिम्मत नहीं हो रही थी, उसने भरोसा दिलाया कि डूबने नहीं देगी।

आखिरकार मैंने कर दिखाया। पड़ोसी काफी दिनों से मेरे संघर्ष को देख रहे थे, उन्होंने भी तालियां बजाकर हौसला बढ़ाया। मेरे बच्चों, भाई-भतीजों को मुझ पर गर्व हुआ। क्योंकि इस उम्र में कोई ऐसा जोखिम नहीं लेता। उम्र के ढलान पर पहुंच रहे सभी लोगों को मेरा कहना है कि कभी खुद को हार मानने का विकल्प न दें। मैंने कभी भी परिस्थिति से भागने की कोशिश नहीं की। अगर मानसिक मजबूती के साथ कुछ करने के लिए तैयार हैं तो विफलता की गुंजाइश नहीं रह जाती। -विजया

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