7 पहाड़ियों के बीच विराजमान हैं मां शीतला:यहां डकैत, पुलिस झुकाते हैं सिर, पहाड़ी पर मन्नत मांग कर बनाते हैं पत्थर के मकान

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ग्वालियर शहर से 20 किलोमीटर दूर घने जंगल में सातऊ गांव की सात पहाड़ियों के बीच विराजमान मां शीतला की कहानी बड़ी ही अद्भुत है। लोग बताते हैं घना जंगल होने के कारण यहां मंदिर के आसपास शेर अक्सर मिल जाया करते थे, लेकिन कभी भक्तों पर हमला नहीं किया। असल में 1669 विक्रम संवत (सन् 1726 ई) में मां शीतला भिंड के गोहद खरौआ गांव के जंगल से भक्त और इस मंदिर की पूजा अर्चना करने वाले पहले महंत गजाधर बाबा के साथ कन्या रूप में ग्वालियर के सातऊ के जंगल में आ बसी थीं। जहां आकर माता विलुप्त हुईं वहां उनका आज विशाल मंदिर है। कभी यहां पत्थर के सात टुकड़े हुआ करते थे।

कहते हैं जंगल में होने के कारण इन्हें डकैतों की देवी भी कहा जाता है। यहां डकैत घंटा चढ़ाने आते थे। मां शीतला के दरबार में डकैत और पुलिस सभी सिर झुकाते थे। यहां हर मनोकामना पूरी होती है, लेकिन सबसे अजीब परम्परा यहां झूला झुलाने से सूनी गोद भरना और पहाड़ी पर पत्थरों से प्रतीकात्मक मकान बनाने से अपने घर का सपना मां पूरा करती है। अभी मंदिर का प्रबंधन गजाधर बाबा की छटवीं पीढ़ी महंत कमलसिंह भगत संभाल रहे हैं।

कैसे भिंड से ग्वालियर के सातऊ गांव की पहाड़ी पहुंची मां शीतला

जब दैनिक भास्कर की टीम सातऊ गांव पहुंची तो मां शीतला के यहां विराजमान होने की पैराणिक कथा का पता लगा। महंत कमलसिंह भगत जी बताते हैं कि माता के सबसे पहले भक्त उनके परदादा गजाधर बाबा थे। वह सातऊ गांव से होकर रोज गायों को लेकर भिंड के गोहद स्थित खरौआ के जंगल में जाते थे। यहां जंगल में प्राचीन मंदिर पर रोज गाय के ताजा दूध से मां का अभिषेक करते थे। गजाधर की भक्ति से प्रसन्न होकर सन् 1669 विक्रम संवत में मां ने उन्हें कन्या रूप में दर्शन दिए और साथ चलने के लिए कहा।

गजाधर ने माता से कहा कि उनके पास कोई साधन नहीं है, वह उन्हें अपने साथ कैसे ले जा पाएगा। तब माता ने कहा कि वह जब उनका ध्यान करेंगे और वह प्रकट हो जाएंगी। गजाधर ने सातऊ गांव पहुंचकर माता का आवाहन किया तो देवी प्रकट हो गईं और गजाधर से कहा कि जहां में विलुप्त हो जाऊं वहां मंदिर बनवा देना। इसके बाद कन्या रूप में मां सातऊ के जंगल में जाकर विलुप्त हो गईं। जहां माता विलुप्त हुईं, वहां पांच पत्थर मिले थे। इसके बाद इन पत्थर को समेटकर मां का स्वरूप दिया गया। तभी से जंगल में पहाड़ी पर मां शीतला विराजमान हैं।

80 और 90 के दशक में डकैत चढ़ाते थे घंटा

ग्वालियर का ये प्राचीन देवी माता मंदिर कभी डकैतों की आस्था का बड़ा केंद्र रहा है। इस मंदिर में डकैत पुलिस को चुनौती देकर घंटे चढ़ाया करते थे। डकैत मां से अपने जीवन के अभय वरदान की मन्नत मांगते थे तो दूसरी ओर पुलिस भी इन डकैतों के अंत करने के लिए शीतला मां की शरण में जाया करती थी। भले ही ग्वालियर-चंबल अंचल में डकैतों का खात्मा हो गया हो लेकिन एक समय में इनका अच्छा खासा आतंक था। 80 से 90 के दशक तक कई दुर्दांत डकैत पुलिस के लिए चुनौती बनते रहे थे।

ग्वालियर चंबल अंचल की भौगोलिक स्थिति यहां के बीहड़ और घने जंगलों में डकैतों की तूती बोला करती थी, लेकिन डकैत देवी मां के बड़े भक्त थे। डकैत सातऊ शीतला माता पर माथा टेकने जरूर आया करते थे। इनमें कुख्यात डकैत मोहर सिंह, मलखान सिंह, डाकू माधौसिंह और दयाराम-रामबाबू गडरिया गैंग भी शामिल हैं, जिनके नाम से ही लोग कांप जाते थे। यह डकैत मनोकामना पूरी होने पर यहां घंटा चढ़ाते थे।

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