…वो तीन मौके और फिर कभी प्रधानमंत्री नहीं बन पाए प्रणब मुखर्जी, जिंदगीभर रही कसक

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आज ही के दिन चार साल पहले देश के पूर्व राष्ट्रपति, पूर्व वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी हम सबको छोड़कर चले गए थे। एक लंबा राजनीतिक जीवन जिसमें उन्होंने काफी शोहरत और नाम कमाया। एक वक्त पर पूर्व पीएम इंदिरा गांधी के नंबर 2 कहलाने वाले प्रणब दा के रिश्ते कुछेक मौकों पर छोड़कर सबसे मधुर ही रहे। प्रणब मुखर्जी को देश की राजनीति में सब मिला, लेकिन एक कसक हमेशा रही जो उनके इस संसार से विदा लेने के साथ सदा के लिए अधूरी रह गई। वह कसक थी देश का प्रधानमंत्री बनना। ऐसा भी नहीं था कि प्रणब दा को इतने सालों में मौके नहीं मिले, लेकिन शायद नियति ही कुछ और चाहती थी। आज हम उन तीन मौकों का जिक्र करेंगे, अगर वह भुना लिए जाते तो शायद प्रणब मुखर्जी भी देश के प्रधानमंत्रियों की लिस्ट में शुमार होते।

पहला मौका: इंदिरा गांधी की हत्या और प्रणब दा थे विकल्प

साल 1984, अक्टूबर का वो महीना कांग्रेस पार्टी, गांधी परिवार और खुद प्रणब कभी उसे याद नहीं करना चाहेंगे। देश की पूर्व पीएम इंदिरा गांधी की उन्हीं के दो अंगरक्षकों सतवंत सिंह और बेअंत सिंह ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। आग की तरह फैली इस खबर का पता कोलकाता में बैठे प्रणब मुखर्जी को भी लगा। अपनी पुस्तक ‘द टर्बुलेंट इयर्स: 1980-1996’ में, प्रणब मुखर्जी ने दिल्ली की अपनी यात्रा के बारे में बताया है। उन्होंने पुस्तक के बहाने से बताया कि कोलकाता से उड़ान भरने के बाद राजीव गांधी कॉकपिट में गए और वापसी की घोषणा की। उन्होंने इंदिरा गांधी की बात करते हुए कहा कि वह अब नहीं रहीं। उस वक्त पीएम कैंडिडेट का स्थान खाली हो गया। समझ नहीं आ रहा था किसे मौका दिया जाए। उस वक्त वरिष्ठता की सूची में प्रणब मुखर्जी थे और वहीं पीएम के लिए स्वाभाविक दावेदार थे।

प्रणब मुखर्जी ने पुस्तक में लिखा है कि मैंने प्रधानमंत्री नेहरू और बाद में शास्त्री के समय के उदाहरणों का हवाला दिया, जब वे कार्यालय में थे (क्रमशः 27 मई 1964 और 11 जनवरी 1966)। दोनों उदाहरणों को बाद उस वक्त गुलजारी लाल नंदा, को सबसे वरिष्ठ मानते हुए एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया था। यह दृष्टिकोण उस समय के राजनीतिक पर्यवेक्षकों की सामान्य समझ के अनुरूप था। यह ऐसा समय नहीं था जब कांग्रेस में गांधी परिवार ने पार्टी या पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार में निर्विवाद नेतृत्व का दावा हासिल कर लिया था।

कई लोग इस बात से सहमत थे कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री पद के लिए प्रणब मुखर्जी स्वाभाविक विकल्प थे। हालांकि, उनके लिए, उनकी स्पष्ट महत्वाकांक्षा ने राजीव गांधी के साथ उनके संबंधों को खराब कर दिया, जिन्होंने उन्हें पहले कैबिनेट से और फिर पार्टी से हटा दिया। प्रणब मुखर्जी ने अपनी पुस्तक में इस दावे को खारिज कर दिया। उनके अनुसार, कोलकाता-दिल्ली उड़ान के दौरान नेताओं में बलराम जाखड़, घनी खान चौधरी, श्यामलाल यादव, उमा शंकर दीक्षित, शीला दीक्षित और खुद ने प्रणब दा ने यात्रा के दौरान ही तय कर लिया था कि राजीव गांधी अगले प्रधानमंत्री होंगे।

उन्होंने अपनी किताब में लिखा कि मैं राजीव को विमान के पीछे ले गया और उनसे प्रधानमंत्री पद संभालने का अनुरोध किया। उनका मुझसे तुरंत सवाल था, ‘क्या आपको लगता है कि मैं यह पद संभाल सकता हूं?’ ‘हाँ,’ मैंने उनसे कहा, ‘हम सभी आपकी मदद करने के लिए हैं। आपको सभी का समर्थन मिलेगा।’ हालांकि, दिल्ली में उतरने के बाद और राष्ट्रपति ज्ञानी जौल सिंह द्वारा राजीव गांधी को शपथ दिलाने से पहले, कुछ बदल गया। राजीव गांधी ने प्रणब मुखर्जी को कांग्रेस के समीकरण से बाहर कर दिया। प्रणब मुखर्जी और राजीव गांधी दोनों ने बाद में इसे असत्य के आधार पर पनपी गलतफहमी को जिम्मेदार ठहराया।

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