बालाघाट(पदमेश न्यूज)
वर्षों से चली आ रही परंपरा और संस्कृति का निर्वहन करते हुए प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी नगर मुख्यालय में निवासरत बंगाली परिवार ने दीपावली पर्व पर संस्कृति और परंपरा अनुसार मां काली की भव्य मनोहारी प्रतिमा उत्साह और खुशी के साथ विराजित की।वही बंगाली समाज ने 1 नवंबर को दीपावली का पर्व मनाया और इसी रात मां काली की प्रतिमा की स्थापना कर विधि विधान के साथ पुजा अर्चना की।बताया जा रहा है कि इस पूजा को लेकर बंगाली समाज में तरह-तरह की मान्यताएं हैं इसी मान्यता को लेकर मुख्यालय में निवासरत बंगाली परिवार प्रतिवर्ष दीपावली पर मां काली की प्रतिमा की स्थापना करते है और पूरी रात उसकी पूजा अर्चना करते है। दीपावली की रात मां की प्रतिमा स्थापना कर 12 बजे के बाद मां की पूरी रात विधिविधान से पूजा अर्चना की गई। जिसमें बड़ी संख्या में बंगाली परिवार के लोेग उपस्थित रहे।
शक्ति की पूजा कर मांगी गई मन्नते
बताया जा रहा है कि पश्चिम बंगाल में इस पवित्र पूजा को शक्तिपूजा भी कहते हैं। मां काली के सामने अखंड दीपक जलता रहता है. जो लोग शत्रु, मुकद्दमों और धन के अभाव से पीड़ित हैं, और जीवन में शांति चाहते हैं, वे भी इस दिन पूरी रात जाग कर मां काली का जाप करते हैं। काली पूजा के लिए मां काली की नई मूर्ति की स्थापना की जाती है और कोई विद्वान पंडित शुद्ध मंत्रों और विधि-विधानों से उनकी पूजा करवाते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के तहत की गई पूजा अर्चना
बताया गया कि जहां दीपावली पर पूरे देश में लोग मां लक्ष्मी और प्रथम आराध्य भगवान गणेश का पूजन करते है, वही बंगाल में दीपावली के दिन मां काली की पूजा की जाती है। बंगाली परंपरा में दिवाली को कालीपूजा भी कहा जाता है। मां काली की पूजा को लेकर धार्मिक मान्यता अनुसार रोचक कथा है। मान्यता है कि मां काली इसी दिन 64 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं और उन्होंने रक्त बीज सहित कई असुरों का संहार किया था।माना जाता है कि आधी रात को मां काली की विधिवत पूजा करने पर मनुष्य के जीवन के संकट, दुख और पीड़ायें समाप्त हो जाती हैं, शत्रुओं का नाश हो जाता है और जीवन में सुख-समृद्धि आने लगती है। ऐसा कहा जाता है कि एक समय चंड-मुंड और शुंभ-निशुंभ आदि दैत्यों का अत्याचार बहुत बढ़ गया था। उन्होंने इंद्रलोक तक पर अधिकार करने के लिए देवताओं से लड़ाई शुरू कर दी। सभी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे और उनसे दैत्य रक्षा की प्रार्थना की। भगवान शिव ने माता पार्वती, जो जगज्जननी के रूप में पूजी जाती हैं, के एक रूप अंबा को प्रकट किया। माता अंबा ने इन राक्षसों का वध करने के लिए मां काली का भयानक रूप धारण किया और अत्याचार करने वाले सभी दैत्यों का वध कर दिया और उन्होंने संसार के सभी जीवों को आशीर्वाद दिया, इसीलिए कार्तिक अमावस्या को सर्वदुखहारिणी, सदा रक्षा करने वाली, सुखदात्री जगन्माता काली की विधिवत पूजा का विधान बना।
नगर में 61 वर्षो से चली आ रही परंपरा
आपको बताए कि अपनी संस्कृति और परंपरा का निर्वहन करते हुए मुख्यालय में निवासरत बंगाली समाज पिछले 61 वर्षो से जिले में काली पूजा करता चला आ रहा है। जिले में मां दुर्गा पूजा के बाद बंगाली समाज द्वारा मां काली की स्थापना कर चार दिनों तक विधिविधान से पूजा अर्चना की जाती है। दीपावली की रात बंगाली समाज द्वारा प्रतिवर्षानुसार इस वर्ष भी मां काली की विधि-विधान से प्रतिमा स्थापना कर उसकी पूरी रात पूजा अर्चना की। नगर में पीजी महाविद्यालय के समीप स्कूल के खुले प्रांगण में मां काली की प्रतिमा स्थापित की गई। जहां आगामी तीन दिनों तक मां की पूजा अर्चना की जायेगी और 4 नवंबर को मां की प्रतिमा का विसर्जन किया जायेगा।
4 नवंबर को होंगा विसर्जन-चक्रवती
प्रतिमा स्थापना को लेकर की गई चर्चा के दौरान बंगाली समाज समिति उपाध्यक्ष मनोज चक्रवती ने बताया कि मुख्यालय में निवासरत बंगाली परिवार विगत 61 वर्षो से अपनी संस्कृति और परंपरा का निर्वहन करते हुए साल में दो बार मां दुर्गा पूजा और दीपावली पर होने वाली मां काली की पूजा करता आ रहा है। दीपावली पर बंगाल में वृहद रूप से मां की प्रतिमा स्थापना की जाती है और उसका पूजन किया जाता है। उन्होंने बताया कि जहां सभी हिन्दु परिवार दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा करता है वहीं बंगाली परिवार मां काली की पूजा करता है, जबकि मां लक्ष्मी की पूजा बंगाली परिवार द्वारा शरद पूर्णिमा पर की जाती है। उन्होंने बताया कि तीन दिनों तक मां की आराधना और उपासना की जायेगी और चौथे दिन मां की प्रतिमा का विसर्जन किया जायेगा।