मजबूर बैगा और पलायन का दर्द

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बालाघाट जिले के लिए पलायन पुरानी और बड़ी समस्या है। शासन-प्रशासन पलायन रोकने और जिले में ग्रामीणों को रोजगार दिलाने के भरसक प्रयास के दावे करता है, लेकिन मजबूर बैगाओं के पास पलायन का दर्द सहने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है। आज भी जिले से बड़ी संख्या में लोग दूसरे राज्य पलायन कर रहे हैं। वजह- जिले में रोजगार की कमी और परिवार के गुजर-बसर की जिम्मेदारी। मंगलवार को ऐसे ही कुछ परिवारों के 35 बैगाओं का समूह रोजगार के लिए तेलंगाना जाने बालाघाट रेलवे स्टेशन पहुंचा।

पूछने पर पता चला कि बैगा समुदाय के ये लोग मुक्की समनापुर के निवासी हैं, जो तेलंगाना के खम्मम जिले के लिप्पेवाड़ा गांव जाने के लिए निकले हैंं। इस दल में महिला, पुरुष, बुजुर्ग और छोटे बच्चे भी हैं। बैगाओं ने बताया कि वह लिप्पेवाड़ा में मिर्ची तोडऩे जा रहे हैं। बीते ४ साल से समनापुर के दर्जनों परिवार के लोग इसी तरह रोजगार की तलाश में पलायन कर रहे हैं। जिले में रोजगार की उपलब्ध पर सवाल पूछने पर बैगाओं ने बताया कि यहां रोजगार नहीं मिलता, इसलिए बाहर जाना पड़ता है। पंच-सरपंच से गांव में तालाब खुदाई, मेढ़ बंधान जैसे कार्यक्रमों में रोजगार दिलाने कहते हैं तो सूची में उनका नाम नहीं आने का कारण बताकर रोजगार देने से इंकार कर दिया जाता है।
सुंदर सिंह, निवासी ग्राम समनापुर

आपको बता दें कि पलायन रोकने के लिए शासन स्तर पर ग्रामीणों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मनरेगा योजना के तहत विभिन्न कार्यक्रम संचालित किए जा रहे हैं, लेकिन कई परिवारों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। बैगाओं का कहना है कि उनके परिवार में पांच से छह लोग हैं, लेकिन गांव में काम सिर्फ एक व्यक्ति को मिलता है। मजदूरी इतनी नहीं मिलती जिससे परिवार को गुजर-बसर हो सके, इसलिए वह हर साल तेलंगाना जाते हैं ताकि कुछ पैसे कमा सकें। कई बार सूची में नाम नहीं आने से काम से वंचित होना पड़ता है। तेलंगाना जा रहे बैगाओं ने बताया कि वह करीब तीन महीने वहां रहेंगे और मिर्ची तोडऩे का काम करेंगे। जो मजदूर दिनभर में जितनी ज्यादा मिर्ची तोड़ेगा, उसे उतना ज्यादा पैसा मिलता है, लेकिन उन्हें जिले में ही रोजगार मिले तो वह मीलों दूर तकलीफ उठाने नहीं जाएंगे।
फुलझर, निवासी ग्राम समनापुर
चैन सिंह, निवासी ग्राम समनापुर

विभागीय जानकारी के अनुसार, जिले में सरकारी कार्यक्रमों के तहत काम करने पर एक ग्रामीण खेती से प्रतिदिन औसतन 220 से 225 रुपए मुनाफा कमाता है। वहीं, महाराष्ट्र, तेलंगाना, हैदराबाद में काम करके वह एक दिन में औसतन 500 रुपए रोजी कमाता है। इसलिए जिले से पलायन रोके नहीं रुक रहा है। वहीं, इस संबंध में जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी विवेक कुमार ने दूरभाष पर चर्चा के दौरान बताया कि जिले के बैहर, बिरसा, परसवाड़ा में रबी सीजन की फसल नहीं ली जाती है। मनरेगा के तहत जिलेभर में कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जिसमें पात्र हितग्राहियों को रोजगार भी मिल रहा है। रबी सीजन की फसल नहीं लगाने के कारण ग्रामीण पैसे कमाने दूसरे राज्य जाते हैं। पलायन रोकने प्रयास किए जा रहे हैं। पात्र हितग्राहियों को हर हाल में रोजगार उपलब्ध कराया जा रहा है।

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