Bhopal news: दुर्घटना की वजह से सेना में जाने का सपना टूटा तो खुदकुशी की सोचने लगा, फ‍िर निकल पड़ा दूसरों को हौसला देने के सफर पर

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यह हैं झारखंड रांची के 23 साल के युवा रोनित रंजन। साल 2015 में इनका चयन एनडीए में हो गया था। सेना में जाने के लिए 2017 में प्रशिक्षण ले रहे थे। अचानक सड़क हादसे में इनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई। इसके साथ ही सेना में जाने का सपना टूट गया। इससे अवसाद में आकर खुदकुशी करने की सोचने लगे। एक बार तय भी कर लिया, लेकिन फ‍िर मन में विचार आया कि खुदकुशी की तो माता-पिता जीते-जी मर जाएंगे। लोग कहेंगे कि जिंदगी ने जरा सी करवट क्या ली, हार मानकर मरने चला गया। रोनित ने यह सोचकर आत्महत्या का विचार त्याग दिया। एक साल आराम करने के बाद उठे और नई शुरुआत की। अब रोनित रंजन एक लाइफ कोच बनकर कन्याकुमारी से लेह तक पैदल यात्रा पर निकले हैं। वह मानसिक स्वास्थ्य को लेकर लोगों को जागरूक कर रहे हैं। दो दिन भोपाल में हैं और स्कूल, कॉलेज के छात्र-छात्राओं व अन्य लोगों से मिलकर अवसाद से उबरकर जीवन जीने व हार न मानने की कला सिखा रहे हैं…

यात्रा की कहानी, रोनित की जुबानी

रोनित ने बताया कि हर दिन कई लोग किसी न किसी बात को लेकर हार मानकर जिंदगी से नाता तोड़ लेते हैं। मैंने बारीकी से अध्ययन किया, जिसमें पाया कई लोग जीवन से हार मानकर खुदकुशी कर लेते हैं। ऐसे में देशभर में स्कूली शिक्षा में मानसिक स्वास्थ्य का पाठ्यक्रम जोड़ना जरूरी है। इसी को लेकर कन्याकुमारी से 16 नवंबर से पैदल यात्रा शुरू की। मार्च तक दिल्ली तक 3000 किलोमीटर की पैदल यात्रा पूरी कर लूंगा। दिल्ली से लेह तक 1000 किलोमीटर की पैदल यात्रा मई से शुरू करूंगा। पैदल यात्रा बहुत कठिन है। दिन में पैदल चलता हूं। बीच-बीच में जिले, तहसील, गांवों में रुककर अवसाद, मानसिक तनाव से उबारने के लिए लोगों से संवाद करता हूं। दिल्ली तक पहुंचने पर एक लाख लोगों के हस्ताक्षर पूरे हो जाएंगे तो केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल को ज्ञापन देकर मांग करूंगा कि मानसिक स्वास्थ्य को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।

दो दिन भोपाल के छात्र-छात्राओं व युवाओं से संवाद करेंगे

रोनित रंजन के पिता झारखंड कर्मचारी चयन आयोग में अवर सचिव हैं। माता शोभा कुमारी गृहिणी हैं। बहन रेवती एमबीए कर रही हैं। रंजन दो दिन भोपाल में रुके हैं। भोपाल में स्कूल, कॉलेज के विद्यार्थियों व अन्य लोगों से संवाद कर रहे हैं। अब तक पैदल यात्रा के दौरान तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र व मप्र के 50 से अधिक स्कूलों में मानसिक स्वास्थ्य जागरूकता के लिए छात्र-छात्राओं से संवाद कर चुके हैं। 100 से अधिक अधिकारियों व समाजसेवियों से मिल चुके हैं।

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