CJI चंद्रचूड़ ने की जीन थेरेपी की वाकलत, कहा-दुर्लभ बीमारियों के बारे में जागरुक करने की जरूरत

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भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को आनुवंशिक विकारों को ठीक करने में मदद करने वाली जीन थेरेपी को जरूरी बताया। सीजेआई ने कहा कि समाज में हमें दुर्लभ बीमारियों के बारे में जागरुक करने की जरूरत है। आनुवंशिक विकारों को लेकर हम शांत नहीं रह सकते। मुख्य न्यायाधीश ने लगभग हजारों माता-पिता की बात की, जो अपने बच्चों को एक बेहतर भविष्य प्रदान करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। कानूनी पेशे में सीजेआई को 40 से अधिक वर्षों के अनुभव है, जिनमें से 24 हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में थे। इस दौरान, आनुवंशिक विकार से पीड़ित अपनी गोद ली गई लड़कियों के साथ एक दशक लंबे भावनात्मक लगाव के साथ डी वाई चंद्रचूड़ ने लोगों के सामने अपनी बात रखी।

बेंगलुरु में ‘जीन थेरेपी और प्रेसिजन मेडिसिन सम्मेलन’ में उद्घाटन भाषण देते हुए, मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि दुर्लभ बीमारियों का इलाज करने की खोज व्यर्थ है यदि इन उपचारों तक पहुंच एक चुनौती बनी रहती है, विशेषकर प्रमुख शहरी केंद्रों के बाहर। उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य प्रणाली के बाहर के कारक जैसे वर्ग, जाति, लिंग और क्षेत्रीय स्थान अक्सर किसी व्यक्ति की स्वास्थ्य स्थिति निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि आवश्यक उपचारों तक पहुंच जीवन के अधिकार के तहत गारंटीकृत स्वास्थ्य के अधिकार का हिस्सा है।”

‘भारत में जीन थैरेपी का उपचार सबके बस की बात नहीं’
सीजेआई चंद्रचूड़ ने आगे कहा कि जीन थेरेपी तक सार्वभौमिक पहुंच(Universal Access) में बाधा डालने का मूल कारण इसकी अत्यधिक लागत है। पश्चिम में जीन थेरेपी प्रति उपचार 7 से 30 करोड़ रुपये के बीच है, जो भारत में अधिकांश लोगों के लिए अफोर्डेबल नहीं है। नतीजतन, कई परिवार इस महत्वपूर्ण उपचार तक पहुंचने के लिए क्राउडफंडिंग का सहारा लेते हैं। ऐसे उपचारों के लिए 50 लाख रुपये तक बीमा कवर प्रदान करने के लिए सरकार के प्रयासों की सराहना करते हुए, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि स्थिति का प्रभावी समाधान केवल हमारी रोगी आबादी के लिए तैयार की गई स्वदेशी तकनीकों के विकास के माध्यम से ही किया जा सकता है।

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