शतरंज की जटिल और पेचिदगी भरी दुनिया में दिव्या देशमुख सनसनी बनकर उभरी हैं, जिन्होंने चेस ओलंपियाड में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय महिला टीम के लिए अहम योगदान दिया। 9 दिसंबर, 2005 को महाराष्ट्र के नागपुर में जन्मीं दिव्या की कहानी सिर्फ शतरंज की बिसात पर महारत हासिल करने की नहीं बल्कि चुनौतियों और रूढ़ियों को तोड़ने की है।
18 साल की दिव्या देशमुख अद्वितीय दृढ़ संकल्प के साथ शतरंज की बिसात पर अपने मोहरे बढ़ाती हैं। 9 दिसंबर 2005 को महाराष्ट्र की उपराजधानी नागपुर में पैदा हुईं दिव्या के परिवार में डॉक्टर्स की भरमार है। पांच साल की उम्र में पहली बार पिता के साथ शतरंज खेलने वाली दिव्या ने कब इस खेल को बतौर करियर चुन लिया, उन्हें भी पता नहीं लगा।
दिव्या की शतरंज यात्रा किसी सुनहरे सपने से कम नहीं रही है। सिर्फ सात साल की उम्र में अपना पहला राष्ट्रीय पुरस्कार जीतना और एशियाई स्कूल शतरंज चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल करना उनकी अहम शुरुआती उपलब्धियों में से एक है। ये युवा ऐतिहासिक FIDE ऑनलाइन शतरंज ओलंपियाड 2020 की विजेता टीम का हिस्सा थी और 2021में भारत की 21वीं महिला ग्रैंडमास्टर बन गईं।
एशियन यूथ शतरंज चैंपियनशिप, कॉमनवेल्थ गेम्स, टाटा स्टील इंडिया शतरंज चैंपियनशिप के महिला रैपिड वर्ग में जीत के साथ दिव्या देशमुख भारत की उभरती सनसनी बन चुकीं हैं। दिव्या की शतरंज की कुशलता उनकी FIDE रेटिंग्स में झलकती है: मानक-2483, रैपिड-2401, और ब्लिट्ज-2353। दिव्या की वर्ल्ड रैंकिंग 1055 है और वह लगातार सफलता की सीढ़ियां चढ़ रही हैं।