चुनावी साल में भाजपा लाड़ली बहना योजना से आधी आबादी को साधने के जतन कर रही है, लेकिन सत्ता बरकरार रखने के लिए प्रदेश की उन 82 सीटों को लेकर चिंताएं कम नहीं हो रहीं, जो एससी-एसटी (अनुसूचित जाति-जनजाति) के लिए आरक्षित हैं। पिछले विधानसभा चुनावों के आंकड़े संकेत कर रहे हैं कि अनुसूचित जाति और जनजाति की नजदीकी या नाराजगी ने समय-समय पर कांग्रेस और भाजपा को सत्ता का स्वाद चखाया, तो इससे दूर भी किया है। प्रदेश की 230 सीटों की विधानसभा में अनुसूचित जाति की 35 और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं। इंदौर में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में सर्वाधिक चिंता इसी वर्ग की बेरूखी पर थी।
आंकड़ों पर नजर डालें तो स्पष्ट होता है कि इन दोनों वर्गों के लिए आरक्षित सीटों में से 60 पर काबिज भाजपा वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में उतरी, लेकिन मतदान के बाद स्पष्ट हुआ कि अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग ने उससे मुंह मोड़ लिया और नतीजतन सत्ता हाथ से फिसल गई। ऐसे में भाजपा कोई जोखिम नहीं लेना चाहती, बल्कि आदिवासी वर्ग के कल्याणकारी कार्यक्रमों और योजनाओं के माध्यम से उनमें पैठ मजबूत कर रही है।