आर माधवन की फिल्म “रॉकेट्रीः द नांबी इफेक्ट” इसरो के मेधावी वैज्ञानिक नांबी नारायणन की जिंदगी पर आधारित सच्ची कहानी है जिसे आर माधवन ने पर्दे पर अपने अभिनय से इस फिल्म में जान डाल दी है। माधवन ने किरदार को जीवंत कर दिया है, यह उनके जीवन की सर्वश्रेष्ठ फिल्म होगी। अभिनय के साथ-साथ इस फिल्म में पहली बार आर माधवन ने लेखन, निर्देशन और निर्माण जैसी विविध भूमिकाएं एक साथ निभाई है। इसके अलावा शाहरुख खान इस फिल्म में शुरुआत से लेकर अंत तक सूत्रधार के रूप में मौजूद हैं और कैमियो में भी अपना प्रभाव छोड़ते नजर आ रहे हैं।
उसके बाद नांबी नारायणन की पत्नी(मीना) के रूप में सिमरन ने शानदार भूमिका निभाई है और फिल्म में नांबी नारायणन के हर दुख-सुख में उनका साथ देती और नांबी नारायणन के साथ हुए अपमान और अन्याय के कारण उनकी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है। उन सभी जटिल भूमिका को बड़े ही मार्मिक रूप से प्रस्तुत किया है जिसे देखकर हम स्तंभ और निशब्द हो जाते हैं। इसके अलावा उन्नी के रुप में सैम मोहन, साराभाई के रूप में रजित कपूर, कलाम के रूप में गुलशन ग्रोवर सभी ने अपने किरदार के साथ न्याय किया है फिल्म के सभी किरदारों ने अपना बेस्ट दिया है यह कहने में कोई हर्ज नहीं होगा।
रॉकेट्री फिल्म की कहानी की बात करें तो, फिल्म के फर्स्ट हाफ में इसरो के वैज्ञानिक- नांबी नारायणनकी उपलब्धियों और स्पेस विज्ञान में उनके योगदान को दिखाया है। जिसमें इसरो में काम करने से लेकर प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में स्कॉलरशिप पाना, देश सर्वोपरि कि सोच रखने वाले वैज्ञानिक जिन्होंने नासा जैसे बड़े संस्थान के जॉब ऑफर को ठुकरा कर इसरो में रहकर देश के लिए काम करना, 400 पाउंड के स्पेस उपकरण भारत के लिए फ्री में लाना, फ्रांस में अपने 52 सहयोगियों के साथ तकनीक सीखकर उनसे बेहतर रॉकेट इंजन बनाना और अमेरिका के विरोध के बावजूद रूस से क्रायोजेनिक इंजन के पार्ट लाना आदि शामिल है।javascript:false
इसमें सिरसा रे का कैमरा भारत, अमेरिका, रूस, स्कॉटलैंड, फ्रांस की खूबसूरती और स्पेस इंजन की भव्यता को दर्शाने में सफल रहे हैं परंतु पहले भाग में ज्यादातर शूटिंग विदेश में हुई है इसलिए वार्तालाप को अंग्रेजी में ही रखा गया है जिसके कारण दर्शकों को थोड़ी असुविधा हो सकती है और उन्हें सबटाइटल पर निर्भर रहना पड़ सकता है साथ ही साथ वैज्ञानिक और तकनीकी शब्दावली का इस्तेमाल भी इस हिस्से को ज्यादा जटिल बनाता है जिससे दर्शक बोर हो सकते हैं। फिल्म में हिंदी सबटाइटल देने की आवश्यकता थी जो एक कमी इसमें बताई जा सकती है क्योंकि पहला भाग अंग्रेजीमय हो गया है। इसके अलावा बाकी सभी चीजें इसमें काफी अच्छी हैं।
खैर, हम फिल्म के दूसरे हिस्से की बात करें तो ये हिस्सा काफी शानदार और जबरदस्त है। जिसमें नांबी नारायणन को रॉकेट साइंस तकनीक बेचने के झूठे आरोप में गिरफ्तार किया जाता है। कहानी वहां से लेकर उनके अन्याय के खिलाफ जंग और जीत की कहानी है। इस भाग में अनेक मार्मिक सीन है जिसके एक सीन में, जेल से छूटकर जब नांबी नारायणन घर आते है तब उनकी पत्नी की मानसिक स्थिति बिल्कुल खराब हो चुकी होती है और वह किसी से बात नहीं करती और नांबी नारायणन को देखते ही चिल्लाने लगती है फिर डर कर भाग जाती हैं। यह सब सोचने मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते है।
यह दर्द शब्दों में बयान करना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। वहीं दूसरे सीन में, जब नांबी नारायणन अपनी बीमार पत्नी को डॉक्टर के यहां से लेकर आ रहे होते हैं तभी बारिश होने लगती है और कोई उनको लिफ्ट नहीं देता है और एक ऑटो वाला रुकता है और वह उनको धक्के मार कर नीचे गिरा देता है जो बिल्कुल दिल दहलाने वाला हिस्सा है और इस सीन में आप बिना रोए रह नहीं सकते। उनकी बेबसी साफ झलकती है। समाज का उनके साथ ऐसा व्यवहार देखकर आप दंग रह जाएंगे।
उसी तरह कुछ एक सीन ऐसे हैं जहां आप सोचने पर मजबूर हो जाएंगे कि इस देश में ऐसा भी हो सकता है जहां एक महान वैज्ञानिक के साथ इस प्रकार के अमानवीय अत्याचार हुए हैं। उन्हें बर्बरता के साथ मारा-पीटा जाता है और प्रशासन हर हथकंडे अपनाता है ताकि वे गुनाह कबूल कर ले जो उन्होंने किया ही नहीं। जोकि तत्कालीन केरल सरकार और पुलिस पर कई सवाल खड़े करते हैं कि पॉवर का किस प्रकार दुरुपयोग कर एक वरिष्ठ वैज्ञानिक की जिंदगी और उसके परिवार का जीना हराम कर दिया, तो आप सोच सकते है कि गलत हाथ में पॉवर होने से एक आम इंसान की क्या हालत हो सकती है।
बहरहाल, उनके साथ काम करने वाले सहयोगियों ने भी उनका बिल्कुल साथ नहीं दिया। इसके साथ ही उन्हे 50 दिनों तक जेल की यात्राएं झेलनी पड़ी और उनकी फैमिली को कई सालों तक अपमान का घूंट पीकर जीना पड़ा। अंत में, एक शादी के समारोह में उन्हें पता चलता है कि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया है और वह अन्याय के खिलाफ न्याय की जंग में जीत जाते हैं और इस प्रकार इस फिल्म का अंत होता है।
पद्म भूषण से सम्मानित नांबी नारायणन देश के ऐसे वैज्ञानिक थे जब सभी वैज्ञानिक सॉलिड्स पर काम कर रहे थे तो नांबी नारायणन देश के लिए लिक्विड फ्यूल रॉकेट्री में काम करना शुरू कर दिया था। सभी बाधाओं के बावजूद उन्होंने रॉकेट इंजन बनाया जिसके चलते भारत अपने सैटेलाइट लॉन्च करने के लिए दूसरे देशों का मोहताज नहीं रहा। नांबी नारायणन ने उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाने वाला रॉकेट विकसित करते हैं, जिसका नाम है- VI AS। इसके सफल परीक्षण के बाद नंबी इसके नाम में अपने गुरु के नाम का K जोड़ देते हैं जो उनके गुरु के प्रति श्रद्धा को दर्शाता है। रॉकेट का नाम बन जाती है -विकास।
यह विकास रॉकेट आज भी इसरो से भेजे जाने वाले उपग्रहों को अंतरिक्ष में ले जाता है। इस तरह, इस फिल्म में देश के महान वैज्ञानिक के साथ हुए अन्याय के खिलाफ उनकी लड़ाई, वे किस तरह इस सिस्टम से अकेले जूझते हैं और अपनी बेगुनाही साबित करते हैं, दिखाया गया है। इन सभी मार्मिक घटनाओं को फिल्म में बेहद सादगी से पेश किया गया है। उनकी पत्नी मीरा के रोल में सिमरन ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। अंत में यह कहने में बिल्कुल दो राय नहीं है कि आर माधवन का निर्देशन जबरदस्त रहा। फिल्म के डायलॉग दमदार थे। गाने भी कहानी के अनुरूप थे। इस फिल्म को एक बार थिएटर में देखना तो बनता है और इसे मैं 5 में से 4 अंक दूंगी।