बिहार में एनडीए के तीन नेताओं का इन दिनों राजनीतिक वनवास चल रहा है। केंद्रीय मंत्री रह चुके राष्ट्रीय लोक जनशक्ति पार्टी के नेता पशुपति कुमार पारस हार-थक कर एनडीए में रह तो गए, लेकिन उन्हें लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला। नीतीश से बगावत कर पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह भाजपा का हिस्सा बन गए थे, पर उन्हें भी लोकसभा चुनाव में टिकट नहीं मिल पाया। तीसरे नेता हैं उपेंद्र कुशवाहा, जिन्होंने जेडीयू से अलग होकर अपनी अलग पार्टी राष्ट्रीय लोक मोर्चा का गठन किया। उन्हें एनडीए ने काराकाट सीट से लोकसभा का उम्मीदवार बनाया भी, पर वे चुनाव हार गए। हालांकि तीनों नेताओं ने एनडीए के प्रति अपनी निष्ठा नहीं छोड़ी है। इसका सुफल भी इनमें एक को मिल गया है। उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए समर्थित राज्यसभा उम्मीदवार बनाने की घोषणा भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष सम्राट चौधरी ने कर दी है। उपेंद्र कुशवाहा ने भी इसकी पुष्टि की है।
उपेंद्र कुशवाहा ने उम्मीदवारी की पुष्टि की
राष्ट्रीय लोक मोर्चा (आरएलएम) के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म X पर लिखा है- ‘राज्यसभा की सदस्यता के लिए एनडीए की ओर से मेरी उम्मीदवारी की घोषणा के लिए बिहार की आम जनता एवं राष्ट्रीय लोक मोर्चा सहित एनडीए के सभी घटक दलों के कर्मठ कार्यकर्ताओं, जिन्होंने विपरीत परिस्थिति में भी मेरे प्रति अपना स्नेह बनाए रखा, भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी, बिहार के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार जी, श्री अमित शाह जी, श्री जेपी नड्डा साहब, श्री चिराग पासवान जी, श्री जीतन राम मांझी जी, श्री सम्राट चौधरी जी सहित एनडीए के अन्य नेताओं व कार्यकर्ताओं का ह्रदय से आभार।’
सम्राट चौधरी ने की उम्मीदवारी की घोषणा
हालांकि राजनीतिक विश्लेषक इस बात से आश्चर्यचकित हैं कि बिहार में खाली हुई दो राज्यसभा सीटों के लिए होने वाले चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए प्रत्याशी बनाए जाने की घोषणा सम्राट चौधरी ने क्यों की? आमतौर पर भाजपा के सारे फैसले राष्ट्रीय नेतृत्व करता है। इस तरह की घोषणाएं भी केंद्रीय स्तर से ही होती हैं। जहां तक बिहार का सवाल है तो फिलवक्त नीतीश कुमार बिहार में एनडीए का बड़ा चेहरा हैं। नीतीश अगर इसकी घोषणा करते तो संशय की कोई गुंजाइश नहीं थी। जिस सम्राट चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष बने रहने पर संदेह किया जाने लगा है या भाजपा के वरिष्ठ नेता अश्विनी चौबे उन्हें आयातित नेता बता चुके हैं, वैसे में इतनी महत्वपूर्ण घोषणा सम्राट चौधरी को क्यों करनी पड़ी।
काराकाट में पवन की वजह से हारे कुशवाहा
दरअसल लोकसभा चुनाव परिणामों की समीक्षा के दौरान यह बात चर्चा में आई थी कि काराकाट से उपेंद्र कुशवाहा इसलिए हार गए कि सम्राट चौधरी ने खुल कर उनकी मदद नहीं की। दूसरी चर्चा यह भी हुई कि भाजपा के साथ रहे पवन सिंह को किसी रणनीति के तहत काराकाट में उतारा गया। इससे राजपूत वोटों का विभाजन हो गया। पवन के भाजपा से निष्कासन में भी विलंब किया गया। इससे मतदाताओं में कनफ्यूजन पैदा हुआ। इंडिया ब्लाक से कुशवाहा बिरादरी के ही सीपीआई (एमएल) के राजाराम सिंह ने दो के झगड़े में बाजी मार ली। उपेंद्र कुशवाहा तीसरे नंबर पर चले गए। पवन सिंह ने अगर वोट नहीं काटे होते तो उपेंद्र कुशवाहा की जीत में किसी को शक नहीं था। इसका खामियाजा एनडीए को इस रूप में भोगना पड़ा कि शाहाबाद अंचल की पांच सीटें गंवानी पड़ीं। प्रतिशोध में शाहाबाद अंचल के कुशवाहा वोटरों ने एनडीए के दूसरे उम्मीदवारों का साथ नहीं दिया। भाजपा ने इस कलंक को मिटाने के लिए ही शायद सम्राट चौधरी को इसकी घोषणा की जिम्मेवारी दी हो।
आरसीपी और पारस का ‘वनवास’ कब खत्म होगा?
अगर सम्राट चौधरी के दावे में दम है तो उपेंद्र कुशवाहा का राजनीतिक वनवास अब खत्म हो जाएगा। पर, अब भी दो लोग बचे हुए हैं, जिन्हें अपने भाग्य का ताला खुलने का इंतजार है। इनमें एक हैं चिराग पासवान के चाचा पशुपति कुमार पारस। पारस ने चिराग को धोखा देकर केंद्र में मंत्री पद हासिल कर लिया था। बाद में वे एनडीए में अपने चार सीटिंग सांसदों के लिए टिकट मांगने लगे। एनडीए ने जब उनकी बात अनसुनी कर दी तो उन्होंने इंडिया ब्लाक में भी जाने के लिए हाथ-पांव मारे। बात नहीं बनी तो थक-हार कर उन्होंने एनडीए में ही बने रहना बेहतर समझा। हालांकि चुनाव के दौरान एनडीए ने उन्हें कोई जिम्मेवारी नहीं दी। पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह को लोकसभा चुनाव में किसी ने नहीं पूछा। उन्हें भी अपने पुनर्वास का इंतजार है। क्योंकि जब जदयू 2022 में बीजेपी से अलग हुई थी उसने इसका पूरा ठीकरा आरसीपी सिंह पर ही फोड़ा था। इसके बाद आरसीपी भी जदयू से नाता टूटने के बाद बीजेपी खेमे का हिस्सा बन गए थे। तब से लेकर अब तक वो बीजेपी के लिए वफादार तो हैं लेकिन इसका इनाम उन्हें अब तक नहीं मिला।