एमपी हाईकोर्ट में लगी याचिका, कोरोना से होने वाली मौतें छिपाने की कही बात

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़े छिपाने के खिलाफ जनहित याचिका दायर की गई है। न्यायमूर्ति शील नागू और जस्टिस जीएस अहलूवालिया की युगलपीठ ने इस याचिका को मूल याचिका के साथ लिंक करने का निर्देश दिया है। याचिका की अगली सुनवाई 10 जून को निर्धारित की गई है। बालाघाट जिला कांग्रेस के उपाध्यक्ष शेषराम लोचनलाल राहंगडाले की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि राज्य सरकार द्वारा कोरोना से होने वाली मौतों के आंकड़े को छिपाया जा रहा है। याचिका में कहा गया है कि कोरोना से कई गुना अधिक मौत हो रही है, लेकिन राज्य सरकार मौतें कम बता रही है। याचिका में कोरोना से मृत लोगों के स्वजनों को चार लाख रुपये मुआवजा देने की भी मांग की गई है।

अधिवक्ता गोपाल सिंह बघेल ने कहा कि भारत सरकार ने 13 मार्च, 2020 को कोरोना को महामारी घोषित करते हुए कोरोना से मृत लोगों के स्वजनों को चार लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश जारी किया था, लेकिन दूसरे दिन ही इस आदेश को वापस ले लिया गया। याचिका में कोरोना पॉजिटिव लोगों के नाम भी सार्वजनिक करने की मांग की गई है, ताकि लोग उनसे दूर रह सके। प्रांरभिक सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने याचिका को मूल याचिका के साथ लिंक करने का निर्देश दिया है।

हाई कोर्ट ने कलेक्टर पर 20 हजार का जुर्माना लगाते हुए निरस्त किया जिला बदर का आदेश : मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने जिलाबदर का एक आदेश कलेक्टर जबलपुर पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाते हुए निरस्त कर दिया। न्यायमूर्ति जीएस अहलूवालिया की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जिला दंडाधिकारी ने अपने विवेक का उपयोग किए बिना जिला बदर का आदेश जारी किया है। लिहाजा, जुर्माने लगाते हुए जिला बदर का अनुचित आदेश निरस्त किया जाता है। जुर्माने की राशि हाईकोर्ट की रजिस्ट्री में जमा करनी होगी। याचिकाकर्ता यह राशि हासिल कर सकता है।

ककरतला डुमना निवासी रज्जन यादव की ओर से दायर याचिका में कहा गया कि उसके खिलाफ जिला दंडाधिकारी ने 28 जुलाई, 2020 को जिलाबदर की कार्रवाई की थी। इस आदेश के खिलाफ संभागायुक्त के समक्ष अपील प्रस्तुत की गई। संभागायुक्त ने 11 अक्टूबर,2020 को अपील खारिज कर दी। याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता के खिलाफ वर्ष 2017, 2018 और 2019 में एक भी अपराध दर्ज नहीं किया गया। वर्ष 2020 में एक अपराध दर्ज किया गया था, जो संगीन अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। मामले की सुनवाई के बाद एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि जिला दंडाधिकारी ने विवेक का उपयोग किए बिना जिलाबदर का आदेश जारी किया है।अपीलीय अधिकारी को यांत्रिकता पूर्वक नहीं बल्कि प्रकरण की सूक्षम जांच के बाद निर्णय करना चाहिए।

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