जो बाइडेन के राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार अमेरिकी-चीनी सेना में हुई बात, जानिए इसके मायने

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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के नेतृत्व में पहली बार अमेरिकी सुरक्षा एजेंसी पेंटागन ने चीनी सेना के साथ बातचीत की है। एक अमेरिकी अधिकारी ने शुक्रवार को इसकी जानकारी दी। बाइडेन ने दोनों देशों के बीच जोखिम प्रबंधन पर ध्यान देने के लिए जनवरी में यह पद संभाला था। संयुक्त राज्य अमेरिका ने सालों से चीन को अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति के केंद्र में रखा है और बाइडेन ने बीजिंग के साथ रिश्ते को इस सदी की “सबसे बड़ी भू-राजनीतिक परीक्षा” बताया है।

चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच संबंध तेजी से तनावपूर्ण हो गए हैं, दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ताइवान और चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड से लेकर दक्षिण चीन सागर में अपनी सैन्य गतिविधि तक हर चीज पर टकरा रही हैं।

पिछले साल हुई थी बातचीत

तनाव और गरमागरम बयानबाजी के बावजूद, अमेरिकी सैन्य अधिकारियों ने लंबे समय से अपने चीनी समकक्षों के साथ संचार की खुली लाइनों की मांग की है ताकि वो किसी भी दुर्घटना से निपटने में सक्षम हो सकें। चीन के उप रक्षा सहायक सचिव माइकल चेज़ ने पिछले सप्ताह चीनी मेजर जनरल हुआंग ज़ुएपिंग, पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ऑफिस फॉर इंटरनेशनल मिलिट्री कोऑपरेशन के उप निदेशक के साथ बात की थी। अधिकारी ने कहा कि चेस ने “संकट और जोखिम के प्रबंधन” पर ध्यान केंद्रित किया।

चीन के साथ संघर्ष नहीं चाहता अमेरिका

अधिकारियों के अनुसार अमेरिकी रक्षा सचिव, लॉयड ऑस्टिन ने अभी तक अपने चीनी समकक्ष के साथ बात नहीं की है, क्योंकि इस बात पर बहस चल रही थी कि कौन सा चीनी अधिकारी ऑस्टिन का समकक्ष था। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस ने गुरुवार को कहा कि संयुक्त राज्य अमेरिका प्रतिस्पर्धा का स्वागत करता है और बीजिंग के साथ संघर्ष नहीं चाहता है, लेकिन दक्षिण चीन सागर में समुद्री विवाद जैसे मुद्दों पर बात करेगा।

ये है विवाद की वजह

चीन, वियतनाम, ब्रुनेई, मलेशिया, फिलीपींस और ताइवान दक्षिण चीन सागर के कुछ हिस्सों पर अपना दावा करता है, जो महत्वपूर्ण शिपिंग लेन से पार किया जाता है और इसमें गैस क्षेत्र और मछली पकड़ने के मैदान शामिल हैं। शिनजियांग और हांगकांग में कथित मानवाधिकारों के हनन को लेकर बाइडेन ने चीन पर प्रतिबंध लगा दिए हैं। राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प के उलट बाइडेन ने व्यापक रूप से सहयोगियों और भागीदारों को रैली करने की मांग की है। व्हाइट हाउस का कहना है कि इससे चीन की बढ़ती आर्थिक और विदेशी नीतियों का मुकाबला करने में मदद मिलेगी।

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