जिले में टीबी की बीमारी के खिलाफ जारी जंग लोगों में जागरुकता की कमी के चलते कमजोर साबित हो रही है। साल 2021 और इस साल 8 दिसंबर तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो दोनों साल मिले मरीजों में मामूली कमी हुई है। वहीं, दूसरी तरफ केंद्र व राज्य सरकार द्वारा टीबी के रोकथाम को लेकर कई योजनाएं और कार्यक्रम आयोजित कर रही है, लेकिन जिले में पिछले साल की तुलना में सिर्फ 86 मरीज की कमी आई है। इसका बड़ा कारण है जिले के रिमोट एरिया यानी बैहर, परसवाड़ा, लांजी, खैरलांजी, बिरसा जैसे इलाकों के ग्रामीणों में टीबी को लेकर जागरुकता की कमी और इस बीमारी को लेकर गलतफहमी। आज भी लोग दो सप्ताह से अधिक समय की खांसी को सामान्य मानकर इलाज कराते हैं। टीबी की पहचान होने के बाद भी चिकित्सक के पास जाने के बजाय अपने स्तर पर इलाज करते हैं। छुआछूत की बीमारी समझकर लोग इस बीमारी पर खुलकर बातचीत नहीं करते। इसके अलावा किसी व्यक्ति को खांसी होने पर उसे मौसमी बीमारी समझकर गांव के झोलाछाप डॉक्टरों से इलाज कराते हैं। हालांकि, विभागीय तौर पर जिले में टीबी के ग्राफ को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए इन दिनों जिले के सभी ब्लॉकों में जागरुकता कार्यक्रम के साथ हेल्थ कैंप आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें संदिग्ध मरीजों की जांच कर उनका पंजीयन कर इलाज करा रहे हैं।
फॉलोअप न होने से हुई मौत
विभागीय तौर पर मिली जानकारी के अनुसार, हाल ही में बैहर क्षेत्र में टीबी के दो मरीजों की मौत की पुष्टि विभाग ने की है। इसके पीछे की वजह है मरीज का समय पर फॉलोअप न हो पाना। बताया गया कि दोनों मरीजों का इलाज लांजी अस्पताल में हो रहा था। टीबी के बजाय लंबे समय तक सामान्य बीमारी समझकर इलाज कराने से टीबी का संक्रमण बढ़ता गया और दो मरीज की मौत हो गई।
ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा फोकसः डॉ़ सोनकर
जिला क्षय अधिकारी डॉ. प्रियांश सोनकर ने चर्चा के दौरान बताया कि विभाग का फोकस जिले के रिमोट एरिया में है। ऐसे स्थानों में आज भी लोग इस बीमारी को छिपाते हैं। इसे सामान्य सर्दी-खांसी मानकर इलाज कराते हैं, जिससे टीबी की मरीजों की पहचान नहीं हो पाती। इन इलाकों में स्वास्थ्य केंद्रों के अमले के साथ आशा कार्यकर्ताओं की मदद से सुदूर इलाकों में स्वास्थ्य षिविर आयोजित किए जा रहे हैं, जिसमें स्वास्थ्य अमला ग्रामीणों को टीबी के लक्षण, इससे रोकथाम और टीबी के मरीजों को केंद्र सरकार द्वारा दी जाने वाली योजना के बारे में बता रहे हैं। ऐसे मरीजों को चिन्हित कर इनका शासन की मंषानुरूप इलाज किया जा रहा है।
पिछले साल मिले थे 2710 मरीज
साल 2021 में जिले के 10 ट्यूबरकुलोसिस यूनिट यानी ब्लॉक में टीबी के 2710 मरीज मिले थे। चूंकि, जिला अस्पताल बालाघाट और सिविल अस्पताल वारासिवनी बड़े अस्पताल हैं, इसलिए यहां इन तहसीलों के आसपास मरीज टीबी का इलाज कराने पहुंचते हैं और यहां चिन्हित मरीजों की संख्या भी ज्यादा रहती है। लेकिन बालाघाट और वारासिवनी के अलावा अन्य ब्लॉकों पर नजर डालें तो पिछले साल लालबर्रा में सबसे अधिक 243 टीबी के मरीज मिले थे। इसके बाद खैरलांजी में 204, परसवाड़ा में 212, बैहर में 196, बिरसा में 186 मरीजों की पहचान टीबी मरीज के रूप में हुई थी।
इस साल 2624 की हुई पहचान
वहीं, बात करें इस साल 8 दिसंबर तक के आंकड़ों की तो अब तक टीबी के कुल 2624 मरीज की पहचान हुई है। ये पिछले साल की तुलना में सिर्फ 86 मरीज कम है। इसमें बालाघाट और वारासिवनी अस्पताल को छोड़कर सबसे अधिक मरीज 202 लालबर्रा में, खैरलांजी में 178, बिरसा में 154, बैहर में 151 मरीज मिले हैं।
टीबी के लक्षण और रोकथाम
जिला क्षय अधिकारी डॉ. प्रियांश सोनकर ने बताया कि दो सप्ताह से अधिक समय से लगातार खांसी आना, असामान्य रूप से वजन कम होना, भूख न लगना, पसीना आना, छाती में दर्द होना ये टीबी के सामान्य लक्षण हैं। अगर मरीज में ये लक्षण दिखते हैं तो उसकी स्क्रीनिंग की जाती हैं और स्टूफन लेकर उसकी जांच की जाती है। अगर जांच में मरीज पॉजिटिव पाया जाता है, तो मरीज का रजिस्ट्रेशन किया जाता है। इसके अलावा उसका उपचार किया जाता है, जिसे डॉट कहा जाता है। डॉ. सोनकर ने बताया कि विभाग द्वारा टेक्नोलॉजी की मदद से टीबी के मरीजों को खोज रहे हैं। इसके अलावा गांवों में जागरुकता कार्यक्रम, नुक्कड़ नाटक, शिविर के जरिए लोगों को टीबी के लक्षण और रोकथाम के बारे में बताया जा रहा है।
मरीज को मिलती है प्रोत्साहन राशि
जानकारी के अनुसार, टीबी के मरीज की पहचान होने पर उसे केंद्र सरकार की निश्चय पोषण योजना के तहत छह माह के लिए 3 हजार रुपए की राषि प्रोत्साहन राशि के रूप में दी जाती है। प्रति माह 500 रुपए उपलब्ध कराने वाली इस योजना की शुरुआत साल 2018 में की गई थी। हालांकि, ग्रामीण इलाकों में इस योजना को लेकर जागरुकता की कमी है, जिसे लेकर विभागीय प्रयास किए जा रहे हैं।










































