नदी-तालाब के किनारे बेकार पूजन सामग्री से बना रहे हर्बल साबुन धूप

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 जबलपुर नईदुनिया । पूजन के बाद उस बची सामग्री का विनिष्टीकरण करना एक समस्या होता है। नदी-तालाब के किनारों पर तो ये सामग्री जब तब सड़े गले हाल में दिख जाएगी। क्या हो यदि इस कचरे से नदी-तालाब के घाट मुक्त हो जाएं। कचरे को गंदगी में फेंकने की बजाए उससे साबुन, धूप बना दी जाए। इससे सफाई भी और कमाई भी हो। ऐसा ही कुछ किया रानी दुर्गावती यूनिवर्सिटी के बायोडिजाइन इनोवेशन सेंटर ने। जहां कचरे की तरह पड़ी पूजन सामग्री को उपयोगी बना दिया। इससे नर्मदा के घाट से कचरा कम हो रहा है वहीं आमदनी के लिए नया रास्ता खुल गया। डीआइसी को अब बड़े स्तर पर उत्पादन के लिए किसी कंपनी से आफर मिलने का इंतजार है।

दस रुपये में बन रही साबुन : डिजाइन इनोवेशन सेंटर के निदेशक प्रो.एसएस संधु ने बताया कि सेंटर के डा.सुनील,मृदुल शाक्य और स्कालर सुरभि सिंह ने इस उत्पाद को तैयार किया है। अभी एक साबुन के निर्माण में करीब 10 रुपये खर्च आ रहा है। उत्पादन बड़े स्तर पर होने पर लागत भी आधे से कम होगी। प्रो.संधु के मुताबिक स्टार्टअप के तहत इच्छुक लोग सेंटर से जुड़कर रोजगार का जरिया बना सकते हैं।

चढ़ावे से बनाई सामग्री : मृदुल शाक्य ने बताया कि पूजन में चढ़ाए जाने वाले फूल, हल्दी, रोली, नारियल, नींबू, नीम, मुलतानी मिट्टी से अलग-अलग फ्लेबर की हर्बल साबुन का निर्माण किया गया है। इसमें नारियल हवन सामग्री के साथ अधजला छोड़ दिया जाता है उसे निश्चित तापमान में चारकोल में बदलकर साबुन बनाया गया है। इसी तरह हल्दी, फूल, मुलतानी मिट्टी, नीम, नींबू का इस्तेमाल भी हर्बल साबुन बनाने में किया गया। नर्मदा के घाट किनारे काफी तादात में ये किनारे पर पड़े मिलते हैं। जहां से जरूरत के हिसाब से ये चढ़ावे को हम उठाकर लाते हैं। इसकी प्रोसेसिंग करने के बाद साबुन और धूप का निर्माण किया जाता है। साबुन पूरी तरह से हर्बल है इसके किसी तरह से त्वचा को कोई नुकसान भी नहीं होता है। सेंटर में बने उत्पाद को करीब 50 से ज्यादा लोगों को उपयोग करने दिया गया जहां सभी का फीडबेक सकारात्मक मिला। मृदुल के मुताबिक तालाब, नदी के अलावा मंदिरों में भी पर्याप्त मात्रा में ये चढ़ावा मिलता है। नदियों में इसे पानी में छोड़ दिया जाता है जिससे प्रदूषण होता है। जबकि फूल मालाओं के जरिए धूपबत्ती का निर्माण होता है। जो पूरी तरह से प्राकृतिक है।

नदी स्वच्छ रहे : प्रो.एसएस संधु ने कहा कि पर्यावरण को स्वच्छ रखना हमारी प्राथमिकता है। कोरोना के वक्त लाकडाउन में नदियां स्वच्छ हो गई थीं। लोग पूजन सामग्री भी कम ही छोड़ते थे लेकिन लाकडाउन हटते ही स्थिति फिर पुरानी जैसी हो गई। उस बीच सेंटर के सदस्य नर्मदा के ग्वारीघाट पर गए जहां प्रदूषण देखकर इसे स्वच्छ करने का उपाय खोजा। उन्होंने कहा कि हर दिन जबलपुर के नर्मदा के ग्वारीघाट, जिलहरी घाट में अकेले 50 से 100 किलो तक पूजन सामग्री निकलती है।

आगे ये प्रयास : धूप और हर्बल साबुन का उत्पादन स्टार्ट-अप के तहत करवाने के लिए प्रस्ताव यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ से राज्य शासन को भेजा जा रहा है। जहां से यदि इसे मंजूरी मिलती है तो संस्थान उद्योग लगाने के लिए इच्छुक लोगों के साथ मिलकर इसका उत्पादन करेगी।

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