पाकिस्‍तान- चीन आए साथ, ऑपरेशन सिंदूर पर रूस ने क्‍यों साधी चुप्‍पी? क्या भारत के लिए दोस्त से ‘किनारा’ करने का वक्त आया?

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मॉस्को/नई दिल्ली: भारत के घरों में सालों से ये कहानी सुनाई जाती रही है कि 1971 में पाकिस्तान के खिलाफ लड़ाई में रूस ने कैसे हमारी मदद की थी। भारतीय जनमानस के मन में रूस की दोस्ती इतनी गहराई से बसी है कि ये लोक कथाओं का हिस्सा बन चुका है। भारत के लोग हर हाल में रूस पर भरोसा करते हैं, जबकि शायद ही कोई भारतीय होगा, जो अमेरिका पर आंख मूंदकर भरोसा करने की सलाह देगा। वह भी तब जब अमेरिका ने पिछले कुछ सालों में टेक्नोलॉजी और डिफेंस सेक्टर में भारत की जबरदस्त मदद की है। लेकिन पाकिस्तान के साथ मौजूदा संघर्ष में रूस की चुप्पी खल रही है। लिहाजा सवाल ये उठ रहे हैं कि क्या बदले जियो-पॉलिटिकल हालातों में अब भारत को रूस से उस तरह की मदद की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए, जैसी उम्मीद हम पहले लगाकर रखते रहे हैं?

पाकिस्तान के संघर्ष के बाद एक सवाल जो बार बार उठ रहे हैं, वो ये कि आखिर रूस कहां खड़ा है? क्या दशकों से भारत का आजमाया हुआ दोस्त अब तटस्थ बन गया है? क्या चीन के खिलाफ संभावित संघर्ष के दौरान रूस इसी तरह से चुप रहेगा, जबकि भारत को उस वक्त सबसे ज्यादा मदद की जरूरत होगी? जबकि हकीकत ये है कि भारत के पास आज भी अपने 60 से 70 प्रतिशत हथियार रूसी हैं। पाकिस्तानी मिसाइलों को आसमान में ही उड़ाने वाले एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम भी रूसी है और रूस, एस-500 एयर डिफेंस सिस्टम के साथ साथ एसयू-57 जैसे पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमान भी भारत को ऑफर कर रहा है।

चीन और रूस अब एक खेमे में…
भारत जब पाकिस्तान के साथ संघर्ष में उलझा था उस वक्त चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग मॉस्को में रूस के विक्ट्री डे परेड में मौजूद थे। वो बतौर मुख्य अतिथि मॉस्को पहुंचे थे। 2013 में राष्ट्रपति बनने वाले शी जिनपिंग की ये 11वीं बार रूस की यात्रा थी। चीन खुद को अमेरिका के साथ चौतरफा उलझा हुआ देख रहा है और उसे एक शक्तिशाली पार्टनर की जरूरत है, जो रूस के अलावा कोई और हो नहीं सकता। चीन की नजर ताइवान पर है और डोनाल्ड ट्रंप का प्रशासन ताइवान को लेकर उतनी दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है, जैसा पूर्ववर्ती बाइडेन प्रशासन ने दिखाया था। शी जिनपिंग और व्लादिमीर पुतिन के बीच पिछले दिनों अलग अलग बैठकों के बाद जारी कम से कम तीन घोषणापत्रों में अमेरिका के संबंध में खतरा जताया गया है। दोनों का तर्क है कि अमेरिका, एशिया में नाटो का विस्तार करना चाहता है और दोनों ने इस बात पर जोर दिया है कि रणनीतिक जोखिमों को तत्काल खत्म करने की जरूरत है।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत और पाकिस्तान संघर्ष के दौरान चुप्पी को इसी चश्मे से देखने की जरूरत है। इंटरनेशनल रिलेशन और इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशन के फैकल्टी डॉ. मनन द्विवेदी भी यही कह रहे हैं। उन्होंने NBT से बात करते हुए कहा कि ‘पाकिस्तान को लेकर भारत को रूस से उम्मीद कम नहीं करनी चाहिए, क्योंकि अभी भी भारत ने रूसी हथियारों को ही पाकिस्तान के खिलाफ इस्तेमाल किया है। लेकिन चीन का प्रभाव अब रूस पर है।’ भारत ने रूस से एस-400 एयर डिफेंस सिस्टम, Su-30MKI, MiG-29, T-90 टैंक, और न्यूक्लियर सबमरीन जैसे अत्याधुनिक प्लेटफॉर्म खरीदे हैं। भारत और रूस के बीच के संबंध रणनीतिक ही नहीं, बल्कि भावनात्मक रहे हैं। लेकिन यूक्रेन युद्ध के बाद के हालात ने दुनिया में बहुत कुछ बदल दिया है।

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