‘दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र शासन संशोधन विधेयक पर चर्चा की शुरूआत करते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने केंद्र सरकार की मंशा पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के जरिए केंद्र सरकार दिल्ली में ‘सुपर सीएम’ बनाने की कोशिश कर रही है। यह दिल्ली के लोगों पर सीधा हमला और संघवाद का उल्लंघन है। सिंघवी ने कहा कि यह सरकार किसी न किसी तरह दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना चाहती है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के निर्वाचित मुख्यमंत्री की भूमिका को कम कर दिया गया है। इस बिल के बाद दिल्ली में उपराज्यपाल और केंद्रीय गृह मंत्रालय की भूमिका अहम हो जाएगी और मुख्यमंत्री के पास कोई शक्ति नहीं होगी। सिंघवी ने इस विधेयक को संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ बताया और कहा कि यह संघवाद, विकेंद्रीकरण की मूल भावना के भी विपरीत है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र पिछले दरवाजे से दिल्ली सरकार के अधिकारों को छीनने की कोशिश कर रही है।
आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा ने विधेयक को सदन में अब तक प्रस्तुत किया गया सबसे अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक और अवैध कानून बताया। सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले का जिक्र करते हुए राघव ने इस बात पर जोर दिया कि 11 मई 2023 को सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने फैसला दिया था कि एनसीटी दिल्ली सरकार में मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली निर्वाचित मंत्रिपरिषद के प्रति जवाबदेह है। यह जवाबदेही सरकार के लोकतांत्रिक और जवाबदेह स्वरूप के लिए आवश्यक है। उन्होंने कहा कि यह विधेयक अध्यादेश बनाने की शक्तियों का दुरुपयोग है। साथ ही यह सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को सीधी चुनौती, संघवाद का क्षरण और जवाबदेही की ट्रिपल श्रृंखला को खत्म करता है। उन्होंने तर्क दिया कि विधेयक एक निर्वाचित सरकार से उसके अधिकार छीन लेता है और इसे एलजी के अधीन नौकरशाहों के हाथों में सौंपता है। राघव ने कहा कि पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने 2003 में दिल्ली राज्य विधेयक भी पेश किया था। घोषणा पत्र और विधेयक की प्रतियां प्रदर्शित करते हुए उन्होंने 1977 से 2015 तक दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने को लेकर बीजेपी की प्रतिबद्धता पर प्रकाश डाला।
आरजेडी के सांसद मनोज कुमार झा ने केंद्र सरकार से पूछा कि वह इतनी सारी सत्ता लेकर क्या करेगी? इतने राज्यों में सरकार है, केंद्र में सरकार है, उसेक बावजूद भी किसी निर्वाचित सरकार को लेकर ये कार्यप्रणाली समझ से परे है। उन्होंने कहा कि निरपेक्ष रहने की बात की जाती है लेकिन जब चूहे की पूंछ पर हाथी का पांव पड़ जाए तो चूहे से निरपेक्षता की उम्मीद कैसे की जा सकती है? उन्होंने कहा कि हम इंडियन मुजाहिद्दीन नहीं हैं, हम ईस्ट इंडिया कंपनी नहीं हैं। हम भारत के समान एक महासागर हैं। यदि नौकरशाही मंत्रियों के प्रति जवाबदेह नहीं होगी तो क्या अराजकता नहीं फैल जाएगी? इस तरह के बिल लाकर दिल्ली की जनता के हितों के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। भारत राष्ट्र समिति सदस्य के केशव राव ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि सरकार ने अध्यादेश लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के अंतिम कार्य दिवस का समय चुना। उन्होंने कहा कि इस विधेयक के माध्यम से देश एक नये दौर में प्रवेश कर रहा है जिसमें नौकरशाही हावी हो जाएगी। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के विकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा कि संविधान में यह परिकल्पना नहीं की गई है कि राज्यपाल सत्ता का केंद्र होगा बल्कि उसे चुनी गई सरकार की सलाह पर काम करना होता है। जनता दल (यू) के अनिल प्रसाद हेगड़े ने कहा कि इस विधेयक के प्रावधानों से दो अधिकारी दिल्ली की सरकार के चुने हुए अधिकारों को छीन लेंगे। उन्होंने इस विधेयक को अलोकतांत्रिक करार दिया। केरल कांग्रेस (एम) सदस्य जोस के मणि ने दावा किया कि इस विधेयक को राजनीतिक मकसद से लाया गया है और इससे संसदीय लोकतंत्र को नकारा जा रहा है। सवाल उठाते हुए कहा कि क्या बीजेपी दिल्ली में सत्ता में होती तो क्या बीजेपी की केंद्र सरकार इस बिल को लेकर आती?










































