वन अपराध से जुडे मामलों में भेदभाव से कर्मचारी नाराज

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प्रदेश में वन अपराध से जुड मामले में राज्य सरकार की ओर से भेदभाव पूर्ण कार्यवाही करने से कर्मचारी नाराज है। कर्मचारियों का कहना है कि विदिशा के लटेरी क्षेत्र में वनरक्षक की गोली से आदिवासी चैन सिंह की मौत हुई, तो सरकार ने उसके स्वजनों को 25 लाख रुपये एवं नौकरी देने का ऐलान कर दिया। इतना ही नहीं,वनरक्षक के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज कर लिया। वहीं शिकार और लकड़ी चोरी के मामलों में आरोपितों की गोली से मरने वाले वनरक्षकों के स्वजनों की सरकार ने सुध नहीं ली। 16 साल में ऐसे करीब 52 मामले सामने आए हैं। जिनमें आरोपितों की गोली से मरने वाले वन कर्मचारियों के स्वजनों को न तो अतिरिक्त आर्थिक मदद दी गई और न ही शहीद का दर्जा। उधर, गुना जिले में शिकारियों ने पुलिस पर गोली चलाई, तो अधिकतर आरोपितों का एन्काउंटर कर दिया गया। इस दोहरे रवैये पर वनकर्मियों ने आपत्ति ली है। वे कहते हैं कि रात-दिन जंगल में गश्त कर लकड़ी चोरी-शिकार की गतिविधियां रोकते हैं। 10 से 12 वर्ग किमी की बीट संभालते हैं। ऐसे में सरकार को कर्मचारियों का पक्ष लेना चाहिए या आरोपितों का। लटेरी की घटना में ऐसा कर सरकार ने कर्मचारियों का भरोसा खो दिया है। वे कहते हैं कि लकड़ी चोरी के 10 मामलों में आरोपित से सरकार को सहानुभूति है और रात-दिन जान जोखिम में डालकर जंगल एवं वन्यप्राणियों की सुरक्षा करने वाले वनरक्षकों से नहीं है। बता दें कि लटेरी की घटना के बाद वनकर्मियों ने प्रदेशभर में अभियान चलाकर बंदूकें मालखाने में जमा कराई हैं। वहीं घटना की न्यायिक जांच पूरी होने तक गोली चलाने वाले वनकर्मी निर्मल अहिरवार के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगाने की मांग की है। इसके लिए हस्ताक्षर अभियान चलाया जा रहा है। ‘मप्र कर्मचारी मंच के अध्यक्ष अशोक पाण्डेय कहते हैं कि जंगल और वन्यप्राणियों या संपदा की सुरक्षा करते हुए मृत्यु को प्राप्त करने वाले वन कर्मचारियों को बलिदानी का दर्जा दिया जाना चाहिए। मप्र कर्मचारी मंच ने स्पष्ट कर दिया है कि वनकर्मी को जब तक बंदूक चलाने के अधिकार नहीं मिलेंगे, तब तक बंदूकें वापस नहीं लेंगे।

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