शहर के मंच पर होलकर शासकों ने रोपा था रंगमंच का पौधा

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World Theater Day Indore News। रंगकर्म यूं तो अनादिकाल से चला आ रहा है और शहर में इसका पौधा होलकर शासकों ने लगाया। उन्होंने रंगकर्म को न केवल शौकिया बल्कि व्यावसायिक रूप से भी निमंत्रण, आश्रय और सम्मान दिया। शहर में तब से अब तक न केवल मराठी बल्कि हिंदी नाटकों की परंपरा अपने पैर जमाए हुए हैं।

अतीत को सहेजे दस्तावेजों में इस बात का साफ जिक्र है कि पांच नवंबर 1843 में जब सांगली में विष्णुदास भावे ने मराठी नाटक ‘सीता स्वयंवर” मंचित किया तो वहां के महाराजा अप्पा साहेब पटवर्धन ने उसे राजाश्रय दिया। इस परंपरा का प्रभाव यह हुआ कि इंदौर के शासक तुकोजीराव द्वितीय ने 1874 में नरहरी बाबा सरड़े को शहर में आमंत्रित किया और लगातार आठ दिनों तक जूना राजवाड़ा में दशहरा कचहरी के समक्ष अस्थायी मंच बनाकर पौराणिक कथाओं के अंशों को लिए नाटक का मंचन हुआ। इसका सारा खर्च राजाश्रय से हुआ था। यही नहीं तुकोजीराव द्वितीय ने इस नाटक के लिए न केवल जरी वस्त्र बल्कि अलंकार भी भेंट किए।

इतिहास के मंच पर डल चुके पर्दे के पीछे ऐसी ही कई असल कहानियां, किरदार और संवाद हैं जिनसे आज हम आपको रूबरू करा रहे हैं। वरिष्ठ रंगकर्मी और इतिहासकार स्व. गणेश मतकर के संग्रह के अनुसार उनके बेटे गणेश मतकर ने बताया कि 1874 में इंग्लिश मदरसा के हेडमास्टर नीलकंठ जनार्दन कीर्तने ने शेक्सपियर के नाटक टेम्पेस्ट का मराठी अनुवाद किया। यह पहला मौका था जब शहर में अंग्रेजी के नाटक का मराठी में अनुवाद हुआ। होलकर शासनकाल में रंगमंच को खूब प्रतिसाद मिला। 1880 में शिवाजीराव होलकर ने मुंबई के ग्रेट ग्रैंड बादशाही थियेटर में शाकुंतल नाटक देखा तो उसके मंचन के लिए अण्णासाहेब किर्लोस्कर को इंदौर आमंत्रित किया और यह शहर का प्रोफेशनल पहला शो था जो पहले दिन दहशरा कचहरी के सामने बने अस्थायी थियेटर में हुआ और दूसरे दिन गोराकुंड पर बने अस्थायी थियेटर में हुआ। इसके बाद शिवाजीराव होलकर ने 1885 में रामराज्य वियोग का मंचन भी कराया, जिसमें गायक के रूप में इंदौर घराने के नाना साहेब और बालू भैया पानसे ने साथ दिया।

दिया 30 हजार रुपये का पुरस्कार

सन् 1899 में शहर में पहला स्वतंत्र नाटक प्रेम दर्शिका हुआ जिसमें राजाश्रय जैसी कोई बात नहीं थी। यह नाटक मोरेश्वर फाटक ने लिखा था। नाटक लेखन का इतिहास भी होलकर राजवंश से जुड़ा है। सरदार मल्हारराव होलकर ने भी मराठी वीर ध्वज लिखा था जो 1918 में मंचित हुआ था। इसका मंचन कोल्हापुर की शाहूनगर वासी नाटक कंपनी ने किया। होलकर शासन काल में नाट्य लेखन स्पर्धा भी होती थी। शहर में जब पहली बार यह स्पर्धा हुई तो गोविंद बल्लार देवल का लिखा नाटक ‘शाप संभ्रम” ने पहला स्थान प्राप्त कर 800 रुपये का पुरस्कार जीता। 1922 में बलवंत संगीत मंडली द्वारा शहर में नाटक का मंचन किया गया। इसमें मुख्य भूमिका दीनानाथ मंगेशकर ने निभाई थी। दीनानाथ मंगेशकर के अभिनय से प्रभावित होकर तुकोजीराव तृतीय ने उन्हें 30 हजार रुपये पुरस्कार स्वरूप प्रदान किए थे।

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