शहीद भवन में ‘काव्‍य गति : नदी’ का मंचन, नृत्य नाटिका में पिरोयी काव्य रचनाएं

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कीर्ति बैले एंड परफॉर्मिंग आर्ट की ओर से कोरियोग्राफर प्रभात गांगुली की याद में आयोजित धरोहर समारोह के तहत गुरुवार देर शाम शहीद भवन में नृत्य नाटिका ‘काव्य गति : नदी’ की प्रस्तुति हुई। हालांकि हॉल में दर्शकों की संख्‍या अपेक्षाकृत कम रही, लेकिन जितने भी लोग सभागार में मौजूद थे, वे इस प्रस्‍तुति को देख मंत्रमुग्‍ध नजर आए। इस प्रस्‍तुति के जरिए लोगों को नदियों के संरक्षण का संदेश भी दिया गया। मंजूमणि हतवलने के निर्देशन में प्रतिभालय आर्ट अकादमी की नृत्यांगनाओं ने सूरदास और आदिशंकराचार्य की काव्य रचनाओं को नृत्‍य नाटिका में पिरोया। ‘पोएट्री इन मोशन’ पर आधारित प्रस्तुति में प्रभुदयाल श्रीवास्तव, राकेश रोहित और मुकेश कुमार आदि कवियों की कविताओं को शामिल किया गया। कविताओं का भरतनाट्यम में संयोजन अपने आप में नया प्रयोग था। कविताएं समाज को बनाती हैं, मानव को संवेदनशील बनाती है, काव्य अपने आप में एक नई ऊर्जा देता है। नाट्य शास्त्र के 37 अध्यायों में से पांच सीधे नृत्य से संबंधित हैं।

जीवनदायिनी नदियों की कहानी

‘काव्य गति : नदी’ में नदियों के स्वरूपों का वर्णन किया गया, जिसमें दर्शाया गया कि नदियां सदैव से ही मानव के लिए जीवनदायिनी रही हैं। इस संस्कृति में हम नदियों को सिर्फ जल के स्रोतों के रूप में नहीं देखते, बल्कि हम उन्हें जीवन देने वाले देवी-देवताओं के रूप में देखते हैं। सदियों से भारत में नदियों की पूजा करने की परंपरा रही है। प्रत्येक नदी से कोई न कोई कथा जुड़ी हुई है। भारत में नदियों के महत्व को इसी तथ्य से जाना जा सकता है कि भारत के सभी प्राचीन और प्रमुख नगर नदियों के किनारे बसे हुए हैं, लेकिन हमने नदियों को इतना प्रदूषित कर दिया है कि भविष्य के लिए हम एक बहुत व्यापक जल समस्या विरासत में देकर जा रहे हैं। इस नृत्य नाटिका में इस गंभीर समस्या की ओर प्रकाश डालने की भी कोशिश की गई।

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