समलैंगिक शादी की मान्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने देश में LGBTQIA+ समुदाय को वैवाहिक समानता का अधिकार देने से इनकार कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि समलैंगिकता मानसिक बीमारी नहीं है, लेकिन भारत के कानून के मुताबिक समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती है। इससे पहले मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, “चार फैसले हैं, फैसलों में कुछ हद तक सहमति और कुछ हद तक असहमति होती है।”
सुप्रीम कोर्ट नहीं बना सकता कानून
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालतें कानून नहीं बनाती है, वे याचिकाकर्ताओं को मार्गदर्शन दे सकती है। CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर और अपरिवर्तनीय संस्था है। अगर विशेष विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा। विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, यह संसद को तय करना है। इस न्यायालय को विधायी क्षेत्र में प्रवेश न करने के प्रति सावधान रहना चाहिए।” मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि, “शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए अदालत द्वारा निर्देश जारी करने के रास्ते में नहीं आ सकता। अदालत कानून नहीं बना सकती बल्कि केवल उसकी व्याख्या कर सकती है और उसे प्रभावी बना सकती है।” गौरतलब है कि सर्वोच्च अदालत ने 10 दिनों तक लगातार सुनवाई के बाद 11 मई को इस मुद्दे पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।