अजब है बालाघाट … गजब है बालाघाट हमने देखा एक जिले में दो कलेक्टर

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उमेश बागरेचा


अजब है बालाघाट गजब है बालाघाट यहां कुछ भी होना संभव है , ज्यादा दिन पहले के प्रसंगों में ना जाकर हम कल की ही बात कर लेते हैं ।  कल एक ऐसा नजारा दिखाई दिया जो मैंने तो अपने 22 वर्षो के पत्रकारिता काल में नही देखा, अब इसे बालाघाट  का सौभाग्य कहें या फिर …….? संविधान के अनुसार तो जिले का एक ही कलेक्टर होता है जो  राज्य सरकार का नेतृत्व करते हुए जिले की प्रशासनिक व्यवस्था को संचालित करता है,  किंतु कल बालाघाट कलेक्ट्रेट के सभागार में एक नहीं दो कलेक्टर जिले की प्रशासनिक व्यवस्था को संचालित कर रहे थे ,जिसकी चर्चा आज मीडिया में तो थी ही सत्तापक्ष के गलियारों सहित जिले के बुद्धिजीवियों में भी अच्छी खासी रही । हुआ ये कि कल कलेक्ट्रेट सभागृह में प्रशासनिक अधिकारियों एवम उद्योगपतियों की एक कथित बैठक आहूत हुई ,जिसमें गत माह हुए इन्वेस्टर्स समिट में उद्यमियों द्वारा 4500 करोड़ रुपयों के निवेश के प्रस्तावों की समीक्षा की जाकर उसे गति प्रदान करने विषयक चर्चा की गई । इस बैठक में आयुष राज्य मंत्री रामकिशोर कावरे, निवर्तमान  कलेक्टर दीपक आर्य , वर्तमान कलेक्टर डॉक्टर गिरीश मिश्रा, सीईओ विवेक कुमार, पूर्व विधायक एवं भाजपा जिला अध्यक्ष रमेश भटेरे, भाजपा जिला महामंत्री मौसम हरिनखेड़े, बालाघाट चैंबर ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अभय सेठिया , उद्यमी आशीष त्रिवेदी, हर्ष त्रिवेदी, अतुल वैद्य के अतिरिक्त संबंधित विभागों के अधिकारीगण उपस्थित थे
अब आप कहेंगे भैया इसमें कौन सी नई बात है ये तो एक रूटीन बैठक है , किंतु यह हमारा …नहीं…नहीं हमारे साथ-साथ जिले के बुद्धिजीवियों , राजनीतिज्ञों का भी ये मानना है कि अब जबकि पूर्व कलेक्टर दीपक आर्य यहां से रिलीव होकर सागर जिले में अपनी ज्वाइनिंग कर चुके है तो बालाघाट जिले की प्रशासनिक बैठक में भाग लेकर अधिकारियों को कैसे और किस हैसियत से आदेशित तथा उद्यमियों को आश्वासन दे सकते हैं। जनचर्चा है कि श्री आर्य का यह उपक्रम सिटिंग कलेक्टर के अधिकार क्षेत्र में अनावश्यक हस्तक्षेप है । जो चर्चाएं है उसमे यह भी कहा जा रहा है कि हो सकता है इस तथाकथित समिट में शामिल उद्यमियों में उनके कथित करीबी रिश्तेदार जिनके बारे में आम चर्चा बालाघाट जिले में ठेकेदारी में संलग्न होने का है के हित को साधने का प्रयास हो? इस बैठक में की गई बैठक व्यवस्था पर भी प्रश्नचिन्ह लगा है। मंत्री श्री कावरे के बगल में श्री आर्य बैठे परिलक्षित हो रहे है उसके बाद की कुर्सी में कलेक्टर डॉ. मिश्रा बैठे हैं जबकि जहां श्री आर्य बैठे थे वहां डॉ. मिश्रा को बैठना था?
अरे भैया जब बालाघाट से इतना ही अधिक लगाव था तो सागर नहीं जाना था, आप तो सभी दृष्टि से सक्षम थे,लेकिन शायद यह आपको ज्यादा अच्छा लगा की एक साथ दो – दो जिले?
इस बैठक की अन्य और विषयवस्तु पर चर्चा कर लेते हंै जैसा कि बैठक के बारे में प्रचारित किया गया कि 4500 करोड़ रुपयों का  निवेश करने वाले उद्योगपतियों के साथ बैठक थी ,किंतु हमने देखा है कि बैठक में कुल जमा 3 ही उद्यमी शामिल थे। बालाघाट में दो चैंबर कार्यरत है किंतु दूसरे चैंबर अध्यक्ष को नही बुलाया गया । इसी तरह भाजपा के अध्यक्ष तथा महामंत्री को बुलाया गया। जब इस बैठक को राजनैतिक रूप देना था तो फिर प्रमुख विपक्षी दलों के प्रमुखों को भी बुलाना था। जिले में उद्योग का विकास भाजपा-कांग्रेस से हटकर सामुहिक नेतृत्व के बल पर ही होगा, बल्कि मैं तो ये कहूंगा कि जिन क्षेत्रो की जमीनों पर उद्यमियों की नजरें इनायत है उन क्षेत्रों के विधायको को जरूर बुलाना था। मगर शायद वो भाजपा से नहीं है इसलिए समिट से भी उन्हें दूर रखा गया था। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि कल की बैठक कतिपय चुनिंदा  लोगों के हित को ध्यान में रखकर आहुत थी तथा पूर्व कलेक्टर का बैठक में उपस्थित होना दर्शाता है कि नवपदस्थ कलेक्टर डॉक्टर गिरीश मिश्रा को घेरे में लेना ही बैठक का उद्देश्य मात्र था ।

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