भारत के लिए चिंता का विषय बना डेल्टा वैरिएंट अमेरिका में भी तेजी से फैल रहा है। इसके प्रभाव और जीनोम सिक्वेंसिंग पर काम कर रहे अमेरिकी रिसर्चर्स के मुताबिक इस वैरिएंट के फैलने की दर अब तक मिले वैरिएंट में सबसे तेज है। 1 मई को अमेरिका में कुल मामलों में एक फीसदी ही इस वैरिएंट के थे, लेकिन 30 दिन में देश में मिल नए मामलों में इनकी हिस्सेदारी 8-10% तक पहुंच गई है।
अमेरिका 50 में से 46 राज्यों में यह वैरिएंट पहुंच चुका है। अमेरिका में मई में औसतन हर रोज 25 हजार मामले आए। पूरे महीने करीब 7.5 लाख मामले आए हैं। इनमें करीब 75 हजार मामने डेल्टा वैरिएंट के हैं। इस फैक्ट ने हेल्थ एक्सपर्ट्स की चिंता बढ़ा दी है। उनके मुताबिक यदि यह वैरिएंट इसी रफ्तार से फैलता रहा तो आने वाले महीनों में स्थिति को बिगाड़ सकता है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि यदि कुछ राज्यों में वैरिएंट अधिक प्रभावी हो जाता है, तो यह उन इलाकों में टीकाकरण अभियान और तेज करने का दबाव डाल सकता है। एरिजोना कॉलेज ऑफ मेडिसिन में इम्युनोबॉयोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर दीप्त भट्टाचार्य कहते हैं कि ऐसा प्रतीत होता है कि इस वैरिएंट में कुछ खास चीजें हैं जो इसे तेजी से फैलने में मदद करती है।
निश्चित ही सबसे बड़ी चिंता है। भट्टाचार्य ने हाल ही में भारत में रह रहे अपने दो रिश्तेदारों को खोया है। उन्हें उम्मीद है कि वैक्सीन इस वैरिएंट पर भी प्रभावी साबित होगी। टेक्सास के हेल्थ अधिकारी के मुताबिक यहां वैक्सीनेशन की स्पीड राष्ट्रीय औसत से स्लो चल रही थी। डेल्टा वैरिएंट मिलने के बाद हम सतर्क हो गए हैं। हम वैक्सीनेशन की रफ्तार दो गुना बढ़ा रहे हैं।
इसके अलावा जीनोम सीक्वेंसिंग के िलए सैंपल बढ़ा दिया गया है। राष्ट्रीय स्तर पर जीनोम सीक्वेंसिंग 1-2 फीसदी हो रही थी, इसमें 20 फीसदी की वृद्धि की है। इसके अलावा कोरोना टेस्टिंग भी बढ़ा दी गई है।शोध के नतीजे बताते हैं कि अमेरिका में 1300 से अधिक सीक्वेंस में यह डेल्टा वायरस मिला है। यह वैरिएंट ब्रिटेन में मिले एल्फा वैरिएंट (B.1.1.7) की तुलना में 60-70 फीसदी अधिक तेज से फैल सकता है।
इसका मतलब यह हुआ कि इस वायसस से निपटने के िलए उन्नत ट्रैकिंग और विश्लेषण की जरूरत है।सीडीसी से संबद्ध लैब और अन्य लैब में शोध कर रहे वैज्ञानिक यह समझने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं कि भारत में खोजे गए संस्करण बी.1.617 की क्या भूमिका है। एक बड़ी चिंता यह पता लगाने की है कि क्या यह वैरिएंट भविष्य में कोविड-19 के नए विस्फोट में अहम भूमिका निभा सकता है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक यह वैरिएंट अपनी मौजूदा या कम गति से फैलता रहे तो बड़ा खतरा हो सकता है। यह वायरस अब तक 44 देशों में मिल चुका है। इस वैरिएंट पर एंटीबॉडी क्षमता 7 गुना कम प्रभावीइमोरी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा की गई रिसर्च से यह पता चला है कि मूल वायरस के लिए बनी वैक्सीन डेल्टा फैमिली के वैरिएंट पर कम प्रभावी हो सकती है।
वैक्सीन के बाद वायरस को रोकने वाली एंटीबॉडी की क्षमता मूल वायरस की तुलना में इस वैरिएंट में 7 गुना कम प्रभावी है। साउथ अफ्रीका में मिले वैरिएंट में भी यह क्षमता चार गुना कम आंकी गई है। इस कमी के बावजूद रिसचर्स का मानना है कि वैक्सीन इस वैरिएंट पर अच्छी तरीके से काम करेगी।
शोधकर्तायों ने स्टडी में लिखा है कि परीक्षण से यह पता चलता है कि एमआरएनए टीके इस वैरिएंट पर भी प्रभावी हैं।इस वायरस का तेजी से फैलना सबसे बड़ी चिंतासीडीसी के प्रवक्ता जेड फुलशे कहते हैं कि माना जाता है कि यह वैरिएंट फरवरी के अंत से मार्च के बीच अमेरिका में डिटेक्ट हुआ था।
चार मई को सीडीसी ने इस वैरिएंट पर रिसर्च की जरूरत को समझा। अब इस वैरिएंट को बड़ा खतरा मानते हुए इस पर काम किया जा रहा है। फेडरल अधिकारी इस तरह वायरस के संक्रमण पर नजर रख रहे हैं। क्योंकि एक्सपर्ट्स ने चुनौती दी है कि कम टीकाकरण वाले क्षेत्रों में यह वायरस म्यूटेशन कर सकता है।
यानी अपना स्वरूप बदल सकता है और ऐसे इलाके नए हॉटस्पॉट बन सकते हैं। एक्सपर्ट का कहना है कि यह जरूरी नहीं है कि म्युटेशन के बाद वायरस का नया वैरिएंट घातक ही हो, लेकिन तेजी से फेलने की वजह से यह नया खतरा पैदा कर सकते हैं। वे ज्यादा लोगों को बीमार कर सकते हैं, जिससे गंभीर मामले बढ़ सकते हैं और मृत्युदर में भी इजाफा हो सकता है। एेसे में एक्सपर्ट्स के मुताबिक कम टीकाकरण वाले क्षेत्र में कोविड विस्फोट का खतरा सबसे अधिक है। लेकिन जैसे लोग बाहर निकल रहे हैं और सोशल गेदरिंग कर रहे हैं।
इससे इस संक्रमण फैलने की आशंका अधिक हो जाती है।बॉक्सजोड़ और मांसपेशियों के रोगियों पर फाइजर-मॉडर्ना की वैक्सीन कम असरकारी शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में पाया है कि जोड़ और मांसपेशी संबंधी रोगियों पर फाइजर और मॉडर्ना की वैक्सीन कम प्रभावी हो सकती है। हालांकि इस पर और स्टडी की जा रही है।
शोधकर्ताओं को कहना है कि ऐसे रोगियों को यह पता होना चाहिए कि वे वैक्सीन लेने के बाद भी पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं। इसके शुरुआती नतीजे बताते हैं कि कमजोर इम्युन सिस्टम वाले 20 लोगों को वैक्सीन दी गई, लेकिन इनमें एंटबॉडी नहीं बना। रिसर्चर्स ने पाया कि ये रोगी प्रतिरक्षा दमनकारी दवा ले रहे थे।
शोधकर्ताओं के अनुसार, कोविड -19 रोगियों में जो गंभीर रूप से बीमार नहीं होते हैं, ऐसे लोगों का इम्युन सिस्टम मजबूती के साथ वायरस पर हमला करती है। इसका असर यह होता है कि संबंधित व्यक्ति में मामूली लक्षण ही दिखते हैं।