नई दिल्ली: 12 जून 1975 को सुबह 10 बजे जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा इलाहाबाद हाई कोर्ट के कोर्टरूम नंबर 24 में पहुंचे। कोर्टरूम खचाखच भरा हुआ था। उन्होंने एक फैसला सुनाया। यह फैसला तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और भारत के लिए युग परिवर्तनकारी साबित हुआ। जस्टिस सिन्हा ने राज नारायण की याचिका को स्वीकार कर लिया। राज नारायण ने 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी से हारने के बाद प्रधानमंत्री के चुनाव में भ्रष्ट आचरण का आरोप लगाते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया था।
याचिका स्वीकार कर रद्द कर दिया चुनाव
जस्टिस सिन्हा ने कहा कि यह याचिका स्वीकार की जाती है और प्रतिवादी नंबर 1, इंदिरा नेहरू गांधी का लोकसभा के लिए चुनाव रद्द किया जाता है। इंदिरा गांधी को इस आदेश की तारीख से छह साल की अवधि के लिए अयोग्य घोषित किया जाता है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार किसी प्रधानमंत्री का चुनाव रद्द किया गया था। कुछ महीने पहले कोर्टरूम में एक और घटना हुई थी।
जस्टिस सिन्हा ने किए आदेश पर हस्ताक्षर
प्रधानमंत्री से लगातार दो दिनों तक जिरह की गई थी। जस्टिस सिन्हा ने आदेश पर हस्ताक्षर किए। इस आदेश ने घटनाओं का एक ऐसा सिलसिला शुरू कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप इंदिरा गांधी ने संवैधानिक प्रावधानों का इस्तेमाल करते हुए आंतरिक आपातकाल लगा दिया। यह 21 महीने की अवधि थी। इस दौरान मौलिक अधिकारों को अभूतपूर्व रूप से निलंबित कर दिया गया और पूरे देश में असंतोष को दबा दिया गया।










































