मुस्लिम देश शब्द सुनकर आपके दिमाग में एक ऐसी तस्वीर आती होगी, जिसमें महिलाएं हिजाब पहने हैं और पुरुष दाढ़ी और कुर्ते में घूम रहे हैं। लेकिन एक ऐसा मुस्लिम देश भी है, जहां पर हिजाब पहनना या दाढ़ी रखना पूरी तरह से मना है। इस देश का नाम ताजिकिस्तान है, जो संवैधानिक रूप से धर्मनिरपेक्ष है। लेकिन यहां की 95 फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिम है। धर्म की स्वतंत्रता यहां के संविधान में है। लेकिन यहां अपने धर्म की प्रैक्टिस करना सरकार की ओर से सख्ती से नियंत्रित होता है। इसके अलावा हज पर जाने वालों की संख्या को भी नियंत्रित किया जाता है। ताजिकिस्तान का इतिहास समृद्ध है। यहां लगभग तीन दशकों से राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन का शासन है।
साल 2015 में द डिप्लोमैट में छपी रिपोर्ट कहती है कि 18 साल से कम उम्र की महिला छात्राओं को हिजाब पहनने से रोकने वाले भी नियम हैं। 18 साल से कम उम्र के बच्चे अंत्येष्टि को छोड़कर सार्वजनिक धार्मिक गतिविधियों में भाग नहीं ले सकते। कानून प्राइवेट समारोहों जैसे अंतिम संस्कार और शादियों को भी कंट्रोल करता है। ऐसा नहीं है कि यहां ये सभी चीजें बैन हैं। लेकिन इसे सरकार कंट्रोल करती है, यानी इजाजत लेना और कितने लोग शामिल होंगे ये सरकार की ओर से तय होगा। लेकिन ऐसा नहीं है कि 2024 में स्थितियां बदल गई हैं। आज भी ऐसा ही हाल है।
अभी भी नहीं बदले हालात
अमेरिका की इंटरनेशनल धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट (USCIRF) 2024 कहती है, ‘धार्मिक स्वतंत्रता पर ताजिकिस्तान सरकार पहले से ही निराशाजनक रिकॉर्ड लगातार खराब होता जा रहा है। राष्ट्रपति इमोमाली रहमोन का शासन अपनी दमनकारी नीतियों को बनाए रखता है। यह सभी धर्मों के लोगों की ओर से सार्वजनिक धार्मिकता के प्रदर्शन को दबाता है और अल्पसंख्यक समुदायों पर अत्याचार करता है। शादी और अंत्येष्टि भोज पर प्रतिबंध है, साथ ही दाढ़ी रखने और हिजाब पर भी प्रतिबंध है।’ यानी पुरुषों को शेव करना जरूरी है।
इस्लामी किताबों पर भी रोक
अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में दुशानबे में इस्लामिक किताबों की दुकानों को जबरन बंद कर दिया गया था। सरकार की मंजूरी के बिना धार्मिक सामग्री का आयात भी नहीं किया जा सकता था। हालांकि 2023 में इसे फिर खोल दिया गया। कथित तौर पर फिर खोली गई दुकानों को अब इस्लामी किताबें बेचने की इजाजत नहीं है। ताजिकिस्तान सरकार कट्टरपंथ को रोकने के लिए अपनी नीतियों को आवश्यक बताती है। ताजिकिस्तान की सीमा क्योंकि अफगानिस्तान लगती है, इस कारण वह तालिबान और आईएसआईएस से जुड़े खतरों के निशाने पर रहता है।