मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने किसी की पत्नी को नारी निकेतन भेजने के सरकारी अधिकारी के रवैये को अनुचित करार दिया। इसी के साथ अधारताल, जबलपुर के एसडीएम का पूर्व आदेश निरस्त करते हुए निर्देश दिया गया कि यदि बालिग पत्नी अपने पति के साथ जाना चाहती है तो बिना देर किए यह प्रक्रिया पूरी की जाए।
मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद रफीक व जस्टिस अतुल श्रीधरन की युगलपीठ के समक्ष मामला सुनवाई के लिए लगा। इस दौरान जबलपुर निवासी अमन गुहेरिया की आेर से अधिवक्त मकबूल खान ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाकर्ता अमन गुहेरिया का निवेदिका उर्फ दीपाली के साथ विवाह हुआ था। दोनों अपनी मर्जी से पति-पत्नी बने थे। इस विवाह से युवती के माता-पिता खुश नहीं थे। लिहाजा, उनकी ओर से प्रशासनिक हस्तक्षेप चाहा गया। जिसके तहत एसडीएम अधारताल ने 21 मार्च, 2021 को एक आदेश पारित करते हुए युवती को नारी निकेतन भेजे जाने की व्यवस्था दे दी। जब इसकी जानकारी लगी तो युवक ने हाई कोर्ट की शरण ले ली। उसका मुख्य तर्क यही है कि इस तरह उसकी बालिग पत्नी को पति के रहते हुए नारी निकेतन कैसे भेज दिया गया?
एसडीएम का आदेश मनमाना पाते हुए निरस्त किया: सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से साफ किया गया? कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाकर्ता भले ही खुद को युवती का पति बता रहा हो लेकिन युवती के माता-पिता उसे अपना दामाद नहीं मानते। इसीलिए युवती को नारी निकेतन भेजा गया। हाई कोर्ट ने पूरा मामला समझने के बाद एसडीएम का आदेश मनमाना पाते हुए निरस्त कर दिया। साथ ही युवती को उसकी मर्जी से उसके पति के साथ भेजने का निर्देश दे दिया।