गांधी-गोडसेः एक युद्ध मूवी रिव्यू:चिन्मय मंडलेकर का अभिनय दमदार लेकिन विचारधारा को गहराई से पेश करने में फेल हुए राजकुमार संतोषी

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राजकुमार संतोषी की डायरेक्टोरियल कमबैक फिल्म गांधी गोडसेः एक युद्ध रिलीज हो चुकी है। ये एक पीरियड ड्रामा फिल्म है, जिसे फिक्शनल कहानी के साथ बनाया है। फिल्म का मुकाबला शाहरुख खान की फिल्म पठान से है जो 25 जनवरी को रिलीज हुई है। अगर फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा परफॉर्म करती है तो इसका सीधा असर पठान को पड़ेगा।

दैनिक भास्कर के मूवी रिव्यू में पढ़िए फिल्म गांधी गोडसेः एक युद्ध कैसी है, कहानी से लेकर स्टार्स की एक्टिंग तक क्या-क्या खूबियां या खामियां हैं। 5 पॉइंट्स में पढ़ें पूरा फिल्म रिव्यू…

  • फिल्म – गांधी गोडसेः एक युद्ध
  • समय- 110 मिनट
  • डायरेक्टर- राजकुमार संतोषी
  • कास्ट- दीपक अंतानी, चिन्मय मंडलेकर, तनीशा संतोशी, अनुज साहनी

कैसी है फिल्म की स्टोरी?

इतिहास में 30 जनवरी 1948 को गांधी ने नाथुराम गोडसे के हाथों गोली लगने से दम तोड़ दिया, लेकिन राजकुमार संतोषी की लिखी और डायरेक्ट की गई फिल्म में गांधी को जिंदा रखा गया है। फिल्म में दिखाया गया है कि बंटवारें से नाथुराम गोडसे नाखुश थे। देश बंटा था और कई हिंदुओं का खून बहा था। इन सबका जिम्मेदार उन्होंने गांधी को ठहराया और उनकी हत्या करनी चाही। गांधी बच गए, लेकिन उन्होंने गोडसे को माफ कर दिया। दोनों का आमना-सामना हुआ तो दोनों के बीच कई सवाल-जवाब हुए और विचारों का युद्ध हुआ।

स्टार्स की एक्टिंगः गोडसे बने चिन्मय मंडलेकर ने किया इंप्रेस

मोहनदास करमचंद गांधी के रोल में हैं दीपक अंतानी और गोडसे का रोल निभा रहे हैं चिन्मय मंडलेकर। गांधी के रोल में दीपक का लुक काफी अच्छा तैयार किया गया है, हालांकि वो पूरी तरह से गांधी बनने में मात खा गए हैं। नाथुराम विनायक गोडसे बने चिन्मय मंडलेकर का अभिनय काफी दमदार है। गोडसे के किरदार से न्याय करते हुए उन्होंने अपनी विचारधारा गुस्से में बखूबी पेश की है। बॉडी लेंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी आउटस्टैंडिंग है। यहां सुष्मा के किरदार से डायरेक्टर राजकुमार संतोषी की बेटी तनिषा ने डेब्यू किया है। तनीषा का काम डीसेंट है, हालांकि उनके खाते में ज्यादातर रोने वाले सीन ही आए हैं।

बेहतरीन डायरेक्शन, लेकिन स्टोरी कमजोर

राजकुमार संतोषी ने फिल्म डायरेक्ट की है। इस फिल्म से राजकुमार ने 10 साल बाद डायरेक्टोरियल कमबैक किया है। उनकी आखिरी फिल्म 2013 की फटा पोस्टर निकला हीरो थी, जो खास कमाल नहीं कर सकी थी। डायरेक्शन में तो राजकुमार संतोषी ने कमाल किया है, हालांकि राइटिंग में ये मात खा गए हैं। जी हां, फिल्म की स्टोरी राजकुमार ने ही लिखी है, जो कुछ हिस्सों में बहुत कमजोर है। उदाहरण के तौर पर गांधी-गोडसे की विचारधारा के साथ एक सुष्मा और नरेन की लव स्टोरी दिखाया जाना। फिल्म देखते हुए आप इंटेंस सीन से सीधे लव स्टोरी में स्विच नहीं कर पाएंगे। किरदारों को भी ठीक से लिखा नहीं जा सका है।

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