जिले में चिन्नौर चावल का रकबा हुआ कम ,वर्ष 2021 की तुलना में 3500 से घटकर रकबा हुआ 1200 हेक्टेयर , किसान नहीं ले रहे

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जिले में चिन्नौर चावल का रकबा हुआ कम ,
वर्ष 2021 की तुलना में 3500 से घटकर रकबा हुआ 1200 हेक्टेयर , किसान नहीं ले रहे चिन्नौर चावल के उत्पादन में इंटरेस्ट,

बीते दिनों बालाघाट जिले में उत्पादित होने वाला सुगंधित चिन्नौर चावल की सुगंध देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक सुगंधित हुआ था । किंतु इन दिनों यदि चिन्नौर चावल की बात करें तो अब चिन्नौर का उत्पादन बीते कुछ वर्षों की तुलना में लगातार कम होते जा रहा है । इस वर्ष विभाग से मिले आंकड़े अनुसार चिन्नौर चावल का रकबा महज 1200 हेक्टेयर तक ही सीमित होकर रह गया है । आंकड़ों की यदि बात करें तो लगातार वर्ष 2021 और अभी तक सतत आकडे गिरते ही जा रहे है । इन दिनों महज जिले के वारासिवनी ,लालबर्रा और परसवाड़ा के क्षेत्र में ही चावल का उत्पादन किया जा रहा है । जबकि वर्ष 2021 में चिन्नौर चावल का उत्पादन क्षेत्र 3500 हैकटेयर में किया जा रहा था, जो आज घटकर महज 1200 हेक्टेयर पर पहुंच चुका है। जबकि चिन्नौर चावल को जी.आई टैग भी मिला हुआ है । बावजूद भी किसान चिन्नौर चावल का उत्पादन करने में उतना इंटरेस्ट नहीं दिखा रहे हैं ।

आपको बता दे की जिले का चिन्नौर चावल प्रदेश ही नहीं दुनिया भर के बाजारों में अपनी सुगंध के लिए जाना जाता हैं। इसे वर्ष 2022-23 में थाईलैंड भी भेजा गया था। हर कोई चिन्नौर चावल की सुगंध के कारण इसे मानता और उपयोग करता हैं । चिन्नौर चावल को जी.आई टैग भी मिला हैं, किंतु यदि वर्तमान समय की बात करें तो चिन्नौर चावल का लगातार वर्ष प्रतिवर्ष रकबा कम होते जा रहा है। जहां चिन्नौर चावल को हर कोई स्वादिष्ट और सुगंधित बता रहा हैं , तो वही किसानों को इसका उचित मूल्य और बाजार नहीं मिलने के कारण किसानों ने चिन्नौर चावल का उत्पादन करना धीरे-धीरे कम कर दिया है। जबकि देखा जाए तो वर्ष 2021 में जिले भर के अलग-अलग क्षेत्र में 3500 हेक्टेयर के क्षेत्र में चिन्नौर चावल का उत्पादन किया जाता था , किंतु यह आंकड़ा धीरे-धीरे घटता ही जा रहा है। जिसमें विभाग से मिले आंकड़ों के अनुसार चिन्नौर चावल के उत्पादन में लगातार कमियां आई है, जबकि वर्ष 2021-22 में चिन्नौर चावल 3500 हेक्टेयर में लगाया गया था, तो वहीं वर्ष 2023-24 में यह रकबा घटकर 1800 हेक्टेयर पर पहुंच गया और इस समय यदि वर्तमान समय की बात करें, तो वर्ष 2025- 26 के लिए मात्र जिले भर के अलग-अलग क्षेत्र में 1200 हेक्टेयर पर ही चिन्नौर चावल का उत्पादन किसानों द्वारा किया जा रहा है। जिसमें वारासिवनी, लालबर्रा परसवाड़ा के क्षेत्र शामिल है जबकि देखा जाए तो एक समय ऐसा भी था जब चिन्नौर चावल को जी.आई टैग मिला था, उसके बाद चिन्नौर चावल को वर्ष 2022-23 में थाईलैंड भी भेजा गया था, किंतु ऐसा माना जा रहा है कि किसानों को चिन्नौर चावल का सही भाव और मार्केट नहीं मिलने के कारण किसानों ने चिन्नौर चावल का रकबा धीरे-धीरे कम करते हुए अन्य धान की ओर अपना रुझान बढ़ा दिया है । चिन्नौर चावल मात्र इन दिनों 1200 हैकटेयर के क्षेत्र में ही पैदा किया जा रहा है । ऐसा माना जा रहा है कि सतत गिर रहे इस रकबे से कहीं ना कहीं एक समय ऐसा आ जाएगा की इसकी दर और कम हो जाएगी और बड़े किसान सिर्फ इससे नाम मात्र के लिए ही उत्पादित करेंगे।

1200 हेक्टेयर में ही धान का उत्पादन किया जा रहा है – राजेश खोबरागड़े

कृषि विभाग के अधिकारी राजेश खोबरागड़े द्वारा चर्चा के दौरान बताया गया कि निश्चित ही बीते कुछ वर्षों में चिन्नौर चावल का रकबा धीरे-धीरे कम हुआ है और इस वर्ष जिले के अलग-अलग क्षेत्र में मात्र 1200 हेक्टेयर में ही चिन्नौर चावल का उत्पादन किया जा रहा है। हालांकि चावल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए वह किसानों के पास फिर से जाएंगे और इसका उत्पादन के लिए किसानों को प्रेरित करेंगे ।

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