प्योंगयांग: दुनिया का ध्यान जब मध्य पूर्व और यूरोप में युद्धों को लेकर पश्चिम की तरफ केंद्रित है, उस समय भारत ने पूर्व की ओर अपना फोकस किया है। नई दिल्ली ने अपनी एक्ट ईस्ट नीति के तहत कोरियाई प्रायद्वीप में सावधानी के साथ काम शुरू किया है। इसी के तहत साढ़े तीन से साल के बाद भारत ने उत्तर कोरिया में अपनी राजनयिक उपस्थिति को बहाल करने जा रहा है। कोविड महामारी के दौरान जुलाई 2021 में भारतीय दूतावास ने अपने दरवाजे बंद कर दिए थे। अब भारत ने अपनी एक राजनयिक टीम को प्योंगयांग भेजा है, जो मिशन को फिर से चालू करने पर काम कर रही है।
दिलचस्प बात ये है कि भारत के साथ ही उसका प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान भी उत्तर कोरिया में अपना असर बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। उत्तर कोरिया के साथ पाकिस्तान के रक्षा संबंध हैं। पाकिस्तान के मिसाइल कार्यक्रम को मजबूत करने में उत्तर कोरिया ने इस्लामाबाद की मदद की है।
भारत का स्मार्ट कदम
पाकिस्तानी मूल के अमेरिकी एक्सपर्ट साजिद तरार ने उत्तर कोरिया को लेकर भारत के कदम को बहुत ही स्मार्ट मूव बताया है। उन्होंने कहा कि भारत ऐसे समय में उत्तर कोरिया में दूतावास को फिर से चालू करने जा रहा है, जब अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी हो रही है। यहां ये ध्यान रखना जरूरी है कि ट्रंप ने पिछले कार्यकाल के दौरान उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग उन से मुलाकात की थी। ट्रंप ने रूस के साथ भी रिश्ते ठीक करने के संकेत दिए हैं, जो उत्तर कोरिया का बहुत अहम सहयोगी होने के साथ ही भारत का भी दोस्त है।
उत्तर कोरिया में पाकिस्तान की मौजूदगी
उत्तर कोरिया की राजधानी में करीब 24 देशों के दूतावास मौजूद हैं। इन सभी दूतावासों को एक विशेष कैंपस के अंदर स्थापित किया गया है। केवल तीन देश हैं जिनके दूतावास कैंपस के बाहर स्थापित हैं, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है। अन्य दो देश रूस और चीन हैं। खास बात यह है कि प्योंगयांग में रहने वाले दूसरे देशों के राजनयिकों को लोगों से सामान्य रूप से मेल-जोल बढ़ाने की इजाजत नहीं होती है। राजधानी से बाहर जाने के लिए राजनयिकों को अनुमति लेनी पड़ती है।