पुलिस नक्सली एनकाउंटर में हुई थी झाम सिंह की मौत

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सितंबर 2020 में कान्हा राष्ट्रीय पार्क से लगे हुए छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के सीमावर्ती जंगलों में छत्तीसगढ़ निवासी झामसिंह धुर्वे की मौत के मामले में बालाघाट जिला प्रशासन की मजिस्ट्रियल रिपोर्ट जांच पूरी हो चुकी है। जिसमें इस बात की जानकारी दी गई है कि झामसिंह की मौत पुलिस की गोली से नहीं पुलिस नक्सली मुठभेड़ के दौरान नक्सलियों की गोली से हुई है।

दरअसल इस बात का लिखित उल्लेख प्रशासन द्वारा करवाई गई मजिस्ट्रियल जांच में किया गया है। सर्व आदिवासी समाज संगठन के संयोजक भुवन सिंह कोरार्म ने बताया कि उन्हें रिपोर्ट एक दिन पहले ही मिली है। जिसे पढ़कर वह स्तब्ध है वे बताते हैं कि वे स्वयं घटनास्थल गए थे। जहां पर इस बात पर कोई भी प्रमाण नहीं मिलते कि पुलिस और नक्सलियों के बीच कई राउंड गोलीबारी हुई।

इस दौरान झाम सिंह की मौत हुई बल्कि वे तो आरोप लगा रहे हैं कि झामसिंह की मौत नक्सलियों की गोली से नहीं पुलिस की गोली से हुई है और पुलिस और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ हुई ही नहीं है। बल्कि यह भी आरोप लगा रहे हैं कि पुलिस पार्टी द्वारा जानबूझकर झाम सिंह को मारा गया है।

संयोजक सर्व आदिवासी समाज भवन सिंह कोरार्म आरोप लगाते हैं कि उन्होंने भी घटनास्थल का मुआयना किया था इस दौरान वह कहीं भी ऐसे प्रमाण नहीं मिले कि पुलिस द्वारा 45 राउंड फायरिंग की गई। जिससे वे प्रशासन पर आरोप लगाते हैं कि इस पर मृतक झाम सिंह को स्पष्ट न्याय नहीं मिला। जिस पुलिस पार्टी से गलती हुई थी। उस पुलिस पार्टी को इसकी सजा भी मिलनी चाहिए थी। लेकिन ऐसा नहीं किया गया प्रशासन अपनी गलतियों पर पर्दा डाल रहा है।

चलिए इस खबर को थोड़ा फ्लैशबैक में लेकर चलते हैं। जब यह घटना हुई थी तो बालाघाट पुलिस द्वारा स्वयं प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पहले झामसिंह को 8 लाख का इनामी नक्सली बताया गया था। उसके बाद उसे 4 लाख का इनामी नक्सली बताया गया।

जब छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा इस बात का खुलासा किया गया कि झाम सिंह का कोई अपराधिक रिकार्ड नहीं है, ना ही वह ऐसे किसी नक्सली संगठन, संगम सदस्य इस तरह के किसी भी गतिविधि में शामिल है। तो उसके बाद पुलिस प्रशासन द्वारा उसे ग्रामीण बताते देरी नहीं लगी।

इस घटनाक्रम पर छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश शासन के मध्य राजनीति भी जमकर हुई झाम सिंह के दोनों बेटों को एक-एक प्रदेश शासन द्वारा सरकारी नौकरी दिए जाने का वादा किया।

छत्तीसगढ़ शासन ने तो उसे वनरक्षक की नौकरी तक दी लेकिन एक महीना बेगारी कराने के बाद घर वापस लौटा दिया।

आदिवासी समाज द्वारा दो बार आंदोलन किया गया लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात दिखाई दे रहा है। मजिस्ट्रियल जांच के बाद प्रशासन की रिपोर्ट कहती है कि झामसिंह नक्सलियों की गोली से मारा गया था। इसीलिए आगे यह फाइल यही बंद कर दी जाती है।

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