सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बार फिर ‘बुलडोजर जस्टिस’ पर कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि सरकारी अधिकारियों का ऐसा करना देश के ‘कानून को ध्वस्त करने जैसा’ है। शीर्ष अदालत ने साफ किया कि अपराध में शामिल होना किसी की संपत्ति को ढहाने का आधार नहीं हो सकता। इससे पहले 2 सितंबर को भी सुप्रीम कोर्ट ने इसी तरह की टिप्पणी की थी और मनमाने ढंग से बुलडोजर ऐक्शन रोकने के लिए दिशानिर्देश बनाने की बात कही थी। आरोपियों के खिलाफ बुलडोजर ऐक्शन की शुरुआत सबसे पहले यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने की थी। उसके बाद अब मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात जैसे कुछ बाकी राज्य भी उसी राह पर निकल चुके हैं।
यह मामला गुजरात के एक परिवार का था, जिन्होंने अपने घर पर बुलडोजर कार्रवाई की धमकी के खिलाफ याचिका दायर की थी। जस्टिस ऋषिकेश रॉय, सुधांशु धूलिया और एस वी एन भट्टी की बेंच ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि एक सदस्य द्वारा कथित अपराध के लिए पूरे परिवार को घर गिराकर दंडित नहीं किया जा सकता। बेंच ने कहा, ‘अदालत इस तरह की तोड़फोड़ की धमकियों से बेखबर नहीं रह सकती, देश में ऐसी कल्पना भी नहीं की जा सकती जहां कानून सर्वोपरि है।’
बेंच ने आगे कहा, “ऐसी कार्रवाइयों को ‘देश के कानून पर बुलडोजर चलाने’ जैसा माना जा सकता है।” बेंच ने कहा कि एक ऐसे देश में जहां राज्य के कार्य कानून के नियमों से बंधे हैं, वहां परिवार के एक सदस्य द्वारा अपराध के लिए परिवार के अन्य सदस्यों या उनके कानूनी रूप से बने घर के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा सकती। बेंच ने कहा कि अपराध में कथित संलिप्तता संपत्ति को ध्वस्त करने का आधार नहीं है। इसके अलावा, कथित अपराध साबित होना भी जरूरी है।