मध्य प्रदेश के धार जिले का एक गांव, जहां अब कत्लखाने नहीं जाती गाय

0

गोशाला में स्वस्थ गायों के साथ बुजुर्ग व बेसहारा गोवंश को भी पाल कर उनसे अतिरिक्त आय कैसे अर्जित की जाती है, यह देखना हो तो धार जिले की कुक्षी तहसील के गांव नवादपुरा चले आइए। यहां के गोपालक बूढ़ी गायों के गोबर और गोमूत्र से ही खासा लाभ कमा रहे हैं। मां नर्मदा किनारे बसे इस गांव में सफलता, और संवेदनशीलता की ये कहानी वर्ष 2018 में तब शुरू हुई जब 40 वर्षीय कमल पटेल ने गोशाला स्थापित की। उन्होंने दूध देने वाली स्वस्थ गाय के साथ बूढ़ी व बेसहारा गायों को भी रखा। देखते-देखते गोशाला में 130 गाय हो गईं, जिनमें 20 बूढ़ी गायें हैं। इनके सद्कर्म और आर्थिक लाभ को देख गांव के 20 अन्य गोपालक भी अपनी 50 गायों के साथ इनके कार्य में जुड़ गए और गोबर व गोमूत्र से आय अर्जित कर रहे हैं।

किसान कमल पटेल के गोपालन के माडल पर यदि देश-प्रदेश के प्रत्येक गांव में काम हो तो निश्चित ही गोवंश कत्लखाने जाने से बच जाए। – प्रदीप पांडे, पूर्व उपाध्यक्ष, मप्र जन अभियान परिषद, भोपाल

ऐसे ले रहे लाभ

1. गोबर से वर्मी खाद बनाकर बेच रहे।

2. गोमूत्र से जैविक खेती के लिए कीटनाशक गोअमृत बनाया जा रहा है। इससे खेत में कीटनाशक का खर्च बच रहा है। यह सालाना करीब 10 लाख रुपये होता था।

3. जैविक खाद व गोअमृत के उपयोग से फसल की पैदावार बढ़ रही है।

4. दीपावली के पहले गोशाला से प्राप्त गोबर से महिलाएं दीपक, तोरण द्वार व लक्ष्मीजी की मूर्तियां बनाती हैं। इन्हें बेचने से 10 हजार रुपये की आय हुई।

5. घरों में महिलाएं गोबर से धूपबत्ती बना रही हैं, जिसे आसपास के बड़े गांवकस्बों में बेचा जाता है।

6. इस बार गोबर से गणेश जी की मूर्तियां भी बनाई। गांव के युवा बच्चों ने इंटरनेट मीडिया पर जानकारी डाली तो आर्डर मिले और मूर्तियां आनलाइन बेची गईं।

7. अब नवरात्र में मां दुर्गा की मूर्तियां बनाने की है तैयारी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here