यूपी किस्सागोई: जानें कौन है वो “लैला”, जिस पर भाजपा से लेकर ओवैसी तक डाल रहे हैं डोरे

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प्रशांत श्रीवास्तव

नई  दिल्ली:   “मैं एक लैला हूं और  मेरे हजारों मजनू हैं” ऑल इंडिया  मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के मुखिया असदुद्दीन ओवैसी का यह बयान उत्तर प्रदेश में इस समय उलटा पड़ता दिखाई दे रहा है। क्योंकि राज्य की राजनीति में उनकी जगह किसी और ने ली है। आलम यह है कि ओवैसी छोड़िए भाजपा, आम आदमी पार्टी भी इस नेता पर डोरे डाल रही हैं। सबकी कोशिश यही है कि वह उनके साथ आ जाए, जिससे 2022 के विधान सभा चुनावों में  उनकी नैया पार हो जाए। हम उत्तर प्रदेश की राजनीति में सबके चहेते बने हुए ओम प्रकाश राजभर की बात कर रहे हैं। ओम प्रकाश राजभर सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख हैं और वह छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर बनाए गए भागीदारी संकल्प मोर्चा का भी नेतृत्व कर रहे हैं।

हाल ही में उनकी उत्तर प्रदेश के भाजपा प्रदेश अध्यक्ष  स्वतंत्र देव सिंह से लखनऊ में हुई मुलाकात ने राज्य की राजनीति में भूचाल मचा दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार साफ है कि चुनावों से पहले भाजपा और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी एक बार फिर से एक-दूसरे का हाथ थामने की संभावना तलाश रहे हैं। लेकिन यह मुलाकात ओवैसी से लेकर आम आदमी पार्टी को अच्छी नहीं लगी । एआईएमआईएम के प्रवक्ता सैयद असीम वकार ने ट्वीट कर कहा, ”हम ऐसे किसी भी मोर्चे का हिस्सा नही बनेंगे जिसमें से बीजेपी की बू आती हैं। अगर राजभर भी बीजेपी के साथ गये तो हम उनको भी हरायेंगे और उनका विरोध भी करेंगे।” वकार के इस ट्वीट को एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने रिट्वीट किया हैं। जाहिर है ओम प्रकाश राजभर की इस मीटिंग से ओवैसी को झटका लगा है। 

कुछ इसी तरह की प्रतिक्रिया उत्तर प्रदेश में पहली बार चुनावी मैदान में उतरने को तैयार, आम आदमी पार्टी के तरफ से आई। पार्टी के राज्य सभा सांसद और प्रदेश के प्रभारी संजय सिंह ने कहा यह बहुत अजीब है कि राजभर एक दिन कुछ कहते हैं और दूसरे दिन कुछ और करते हैं। असल में आम आदमी पार्टी भी राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चा से मिलकर चुनाव में उतरना चाहती है। लेकिन अगर राजभर भाजपा के साथ चले गए, तो आम आदमी पार्टी के लिए पहला चुनाव काफी मुश्किलों भरा हो सकता है।

मात्र 4 सीटें फिर भी बने हैं चहेते 

सवाल उठता है कि 2017 के विधान सभा चुनावों में केवल 4 सीटें जीतने वाले ओम प्रकाश राजभर में ऐसा क्या है कि उन्हें सभी दल अपने साथ मिलाने में लगे हुए हैं। इस बात का जवाब लखनऊ में बाबा साहब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ शशिकांत पांडे देते हैं। वह कहते हैं “पूर्वांचल के करीब 10 जिलों में राजभर जाति का अच्छा खासा वोट है। भाजपा ने इसीलिए प्रदेश में उन्हें मंत्री भी बनाया। लेकिन जिस तरह से उन्होंने वादे पूरे नहीं करने के आरोप लगाकर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उससे राजभार समुदाय में उनका कद बहुत ऊंचा हो गया है। इसके अलावा उनका वोट बैंक काफी अडिग है। इस वजह से वह उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में जहां चतुष्कोणीय मुकाबला होता है। वहां पर 5000-7000 वोट भी विधान सभा चुनावों में मायने रखते हैं। और राजभर इन वोटों को बड़ी आसानी से अपनी तरफ खींचने का दम रखते हैं। यही ताकत उन्हें सबका चहेता बनाई हुई है।” राजभर समुदाय के समर्थन से सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी की गाजीपुर, मऊ, वाराणसी, बलिया, महाराजगंज, श्रावस्ती, अंबेडकर नगर , बहराइच और चंदौली में काफी मजबूत स्थिति में है। पू्र्वांचल में 17-18 फीसदी राजभर मतदाता हैं। और प्रदेश की 150 से ज्यादा सीटें हैं। 


मोल भाव से पड़ सकता है भारी

ओम प्रकाश राजभर शशिकांत पांडे की जिस ताकत की बात कर रहे हैं। वहीं उनके लिए नुकसान देह साबित हो सकती है। शशिकांत कहते हैं ” इसकी वजह यह है कि जिस नैतिकता के आधार पर उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा देकर एनडीए का दामन छोड़ा था। अगर वह वापस भाजपा के साथ जाते हैं तो निश्चित तौर पर उनकी साख को झटका लगेगा।” इसके साथ ही राजभर समाजवादी पार्टी के साथ भी गठबंधन करना चाहते हैं। लेकिन अखिलेश यादव उनसे दूरी बना रहे हैं। इसकी वजह यह है कि अगर राजभर के साथ ओवैसी रहेंगे, तो उसका सीधा नुकसान अखिलेश को होगा क्योंकि राज्य में मुस्लिम मतदाताओं का बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी के साथ रहा है। हालांकि इन मुलाकातों , खास तौर से भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह के साथ मुलाकात पर ओम प्रकाश राजभर ने सफाई देते हुए कहा है ” यह एक व्यक्तिगत मुलाकात थी और मैंने ओवैसी जी को  फोन पर मुलाकात के संबंध में सब-कुछ बता दिया है।” लेकिन भाजपा सूत्रों का साफ तौर पर मानना है कि 2017 में ओम प्रकाश राजभर के साथ गठबंधन ने भाजपा की सत्ता में वापसी में अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में अगर चुनावों से पहले जुड़ते हैं तो भाजपा को निश्चित तौर पर फायदा मिलेगा। और वह इस कोशिश में लगी हुई है।

एक बात को साफ है कि राजभर ने मोल भाव के सारे दरवाजे खोल रखे हैं। इसीलिए उन्होंने 8 राजनीतिक दलों के साथ मिलकर बनाए गए भागीदारी मोर्चे के कुनबे को मजबूत करने की भी कोशिश जारी है। प्रदेश में ओबीसी एक बड़ा वोट बैंक है। जिसमें राजभर समुदाय की करीब 7 फीसदी तक हिस्सेदारी है। 2017 के चुनावों में जिस तरह भारतीय जनता पार्टी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी  और अपना दल को अपने साथ लिया था। उसी का परिणाम था कि एनडीए को 325 सीटें मिल गईं। ऐसें आने वाले कुछ महीने प्रदेश की राजनीति के लिए काफी अहम होने वाले हैं। जिसमें कई चौंकाने वाले गठबंधन भी सामने आ सकते हैं। क्योंकि “राजनीति में न तो कई हमेशा के लिए दोस्त होता और न कोई दुश्मन” और यह उत्तर प्रदेश की जनता से  बेहतर कौन समझ सकता है। 

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