कार्तिक पूर्णिमा का पर्व स्नान सोमवार को रामघाट पर शिप्रा नदी के प्रदूषित जल में हुआ। त्रिवेणी पर नदी में कान्ह का गंदा पानी मिलता रहा और रामघाट के समीप उज्जैन शहर के उफनते नालों का। हजारों लोगों ने नाक-मुंह सिकोड़कर ही सही नदी में डुबकी लगाई और पुण्य की कामना की।
नहीं किया गया यह कार्य
मालूम हो कि देश के सबसे स्वच्छ शहर इंदौर के सीवेज युक्त नालों का गंदा पानी कान्ह नदी के रूप में उज्जैन आकर मोक्षदायिनी शिप्रा नदी में मिल शिप्रा के स्वच्छ जल को भी दूषित कर रहा है। कायदे से शासन-प्रशासन को ये मिलन रोकने के लिए स्थायी बंदोबस्त कर लेना था मगर ऐसा नहीं किया।
वर्षों से शिप्रा में मिल रहा कान्ह नदी का पानी
कान्ह का पानी शिप्रा में कई वर्षों से मिल रहा है। इसे रोकने को घाट से लेकर सड़क, दफ्तर और विधानसभा तक में प्रश्न- प्रदर्शन हो चुके हैं। सात वर्ष पहले कान्ह का रास्ता बदलने को 95 करोड़ रुपये की एक योजना धरातल पर आकार भी ले चुकी है। ये बात अलग है कि ये पूरी तरह सफल न हो सकी। इसके जवाब में पिछले वर्ष बजट पांच गुना बढ़ाकर 598 करोड़ रुपये की फिर ऐसी ही एक योजना बनाई पर उसे धरातल पर न उतारा गया।
भावी सरकार से शिप्रा शुद्धीकरण की उम्मीद
मतदाताओं को नई सरकार से शिप्रा शुद्धीकरण की उम्मीद है। मालूम हो कि इस चुनाव में भी शिप्रा नदी मुद्दा बनाई गई थी। भाजपा ने अपने चुनावी घोषणा पत्र (संकल्प पत्र) में एक बार फिर शिप्रा को शामिल कर इसके उद्धार का संकल्प लिया है। कहा गया था कि शिप्रा को निर्मल (स्वच्छ) एवं अवरिल (प्रवाहमान) बनाने को शिप्रा रिवर बेसिन अथारिटी बनाएंगे। शिप्रा महोत्सव करेंगे। घाटों का नवीनीकरण एवं सुंदरीकरण करेंगे। कुछ ऐसी ही बात कांग्रेस भी कही थी। पिछले दो चुनावों और बीच के सालों में भी कही थी। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड शिप्रा के पानी को डी-ग्रेड का करार दे चुका है। इसका मतलब है पानी आचमन, स्नान लायक नहीं है।