अविश्वास प्रस्ताव को डेमोक्रेसी का एटम बम माना जाता है, जब भी यह विधायी सदनों ( विधानसभा या लोकसभा) में विचार के लिए आता है, तो सरकार की सांसें थम सी जाती हैं। फ्लेश बैक में जाएं तो 2011 में शिवराज सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था। इसकी अहमियत का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि उस समय विपक्षी दल के उपनेता चौधरी राकेश सिंह के पाला बदलकर बीजेपी में आने से कांग्रेस के हमले को रणनीतिक तरीके से कमजोर किया गया था।
लेकिन इस बार शिवराज सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर सदन में बहस के दौरान कांग्रेस को ऐसा कोई झटका नहीं लगा। सुना है कि ‘सरकार’ को प्रस्ताव के कमजोर होने की खबर पहले ही लग गई थी। कांग्रेस के आरोप इतने दमदार और तथ्यपरक नहीं थे कि सरकार के सामने कोई संकट आता।
प्रस्ताव में जिस तरह से आरोपों के प्वाइंट लिखे गए थे, उसकी भाषा ही बता रही थी कि उसे किसी गैर राजनीतिक व्यक्ति ने ड्राफ्ट किया था, जबकि कांग्रेस में एक ऐसा जानकार है, जिसको विधानसभा की कार्यवाही से लेकर नियम-कायदों का अच्छा ज्ञान है। वह शिवराज सरकार के खिलाफ पहले अविश्वास प्रस्ताव की पटकथा लिख चुके हैं। सुना है कि इस बार उन्हें इस जिम्मेदारी से दूर रखा गया, जबकि उन्होंने सरकार को घेरने के लिए कई मुद्दों से जुड़े दस्तावेज जुटा लिए थे।
इस पर एक नेता की टिप्पणी– कांग्रेस ने अपने ही जानकार को शोले का ठाकुर बना दिया।
विधानसभा में कांग्रेस और बाहर ‘अपनों’ के निशाने पर ‘महाराज’ के समर्थक मंत्री
शिवराज सरकार में ‘महाराज’ समर्थक मंत्रियों के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं। विधानसभा के शीतकालीन सत्र में कांग्रेस के तेवर ‘सरकार’ पर कम, ‘महाराज’ के समर्थक मंत्रियों पर ज्यादा तीखे नजर आए। वहीं सदन के बाहर भी सिंधिया समर्थक मंत्री कुछ दिनों से ‘अपनों’ के निशाने पर हैं।
मंत्री राजवर्धन सिंह दत्तीगांव पर आरोप लगाती एक महिला का वीडियो वायरल हुआ, हालांकि बाद में वह पलट गई। फिर मंत्री गोविंद सिंह राजपूत पर साले से दान में ली 50 एकड़ जमीन का मामला उछला। राजपूत पर किसी विपक्षी दल के नेता ने नहीं, बल्कि बीजेपी से सांसद के साले ने सार्वजनिक तौर पर यह आरोप लगाए।
इधर, इमरती देवी डबरा पुलिस थाने में धरना देना पड़ा था। वह टीआई को हटाने की मांग पर अड़ गईं थी। एडीजी के सामने ही इमरती देवी ने कह दिया था कि डबरा टीआई लुटेरा है। उन्होंने यह भी कहा था कि इसके ऊपर बड़े मंत्री का हाथ है। वह अपनी ही सरकार की पुलिस की बखिया उधेड़ रही थीं, जबकि उन्हें खुद राज्य मंत्री का दर्जा मिला हुआ है।
इससे पहले ऊर्जा मंत्री प्रद्मुमन सिंह तोमर भी अपनी ही सरकार में बेबस नजर आए। उन्होंने ग्वालियर की सड़कें खराब होने को लेकर जूते-चप्पल का त्याग किया। तोमर ने ऐलान किया कि जब तक सड़कें नहीं बनेंगी, वे नंगे पांव रहेंगे। लेकिन सरकार में उन पर कोई ध्यान नहीं दे रहा। विधानसभा में भी जब उन्हें कांग्रेस ने घेरा तो उनके सपोर्ट में एक भी मंत्री खड़ा नहीं हुआ।
इस हफ्ते की शुरुआत में ‘महाराज’ के करीबी सीनियर IPS अफसर मुकेश जैन की पोस्टिंग स्पेशल डीजी (ट्रेनिंग) के पद पर की गई, जबकि उन्हें ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के पद से हटाया गया था। इतने लंबे इंतजार की वजह बताई जा रही थी कि उन्हें पुलिस का बड़ा पद दिया जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
इतना ही नहीं, हाल ही में ग्वालियर के नामी-गिरामी जीवाजी क्लब पर पुलिस के छापे को राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारे में सियासी कार्रवाई के तौर पर देखा जा रहा है, जबकि क्लब के एक कमरे में जुआ खेल रहे कुछ व्यापारियों को पकड़ा गया था, जिन्हें थाने से जमानत दे दी गई।
सवाल यह घूम रहा है कि पुलिस ने क्लब में घुसने की हिमाकत कैसे और किसके इशारे पर की? चुनाव से पहले ‘महाराज’ और उनके समर्थकों को कमजोर करके किसको फायदा होगा? इस पर बीजेपी के एक नेता की टिप्पणी- राजनीति में साम-दाम-दंड-भेद सब जायज है। यहां कोई किसी का स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता। बस समय पर फेर है।
नेताजी को साधने में लगे मंत्रीजी
एक मंत्री इस समय पार्टी के एक बड़े नेता को साधने में लगे हैं। दरअसल, मंत्रीजी ने नेताजी की दिल्ली में शिकायत कर दी थी। इसके बाद से दोनों के बीच अनबन चल रही थी, लेकिन जब से उन्हें यह पता चला है कि शिकायत के बाद से नेताजी और पावरफुल हो गए हैं तो वे उन्हें मनाने में लग गए हैं।
सुना है कि मंत्रीजी के बेटे ने क्षेत्र में एक टूर्नामेंट का आयोजन किया है। मंत्रीजी चाहते हैं कि नेताजी उसका उद्घाटन करें। इसके लिए उन्होंने नेताजी से बात की तो उन्होंने टालने के लिए कह दिया कि वे उस दिन व्यस्त हैं। सड़क मार्ग से आना-जाना संभव नहीं है। लेकिन मंत्रीजी तो नेताजी से उद्घाटन कराने का मन बना चुके थे। लिहाजा उन्होंने नेताजी के समय का ध्यान रखते हुए हेलीकाप्टर किराए पर ले लिया है। अब देखना है कि नेताजी उद्घाटन करने जाते हैं या नहीं? बता दें कि मंत्रीजी की ‘सरकार’ से बिल्कुल भी पटरी नहीं बैठती। इस बीच उन्होंने नेताजी से भी पंगा ले लिया था।
मंत्री के भतीजे का बनाया नाला बह गया..
चंबल के एक नगर पालिका के सीएमओ को सिर्फ इसलिए हटा दिया गया, क्योंकि उन्होंने एक ठेकेदार का पेमेंट रोक दिया था। सरकार के फरमान पर सीएमओ को तत्काल प्रभाव से कुर्सी छोड़ने कहा गया और उनके स्थान पर एक ऐसे अफसर को बैठा दिया गया, जिस पर पहले से भ्रष्टाचार की जांच चल रही है।
सवाल यह है कि सीएमओ ने ठेकेदार का पेमेंट क्यों रोका? क्या ‘चढ़ोत्री’ वजह है? ऐसा बिल्कुल नहीं है। सच यह है कि इस शहर में एक योजना के तहत करीब तीन करोड़ की लागत से एक नाले का निर्माण कराया गया था, जो पिछली बारिश में बह गया। इस पर सीएमओ ने घटिया निर्माण के चलते ठेकेदार का पेमेंट रोक दिया। स्थानीय मंत्री ने सीएमओ पर दवाब बनाया कि पेमेंट कर दें, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। फिर क्या था, सीएमओ की शिकायतें हुईं और उन्हें हटा दिया गया।
सुना है कि ठेकेदार मंत्री के भतीजे हैं और मंत्रीजी ‘महाराज’ के समर्थक। ऐसे में ‘सरकार’ पर एक्शन लेने का दवाब होना स्वभाविक है। खास बात यह है कि सीएमओ का प्रभार उस अफसर को दिया गया, जिस पर पहले से भ्रष्टाचार के चार मामलों में जांच चल रही है। बता दें कि भ्रष्टाचार करने वाले अफसरों को मुख्यमंत्री मंच से निलंबित करने की घोषणा कर रहे हैं। यहां तो भ्रष्टाचार रोकने वाले को निपटा दिया गया।
उद्घाटन से दूर रहे ‘सरकार’ के मित्र
रीवा-सीधी को जोड़ने वाली टनल के उद्घाटन समारोह को लेकर राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि ‘सरकार’ के मित्र ने आयोजन से दूरियां क्यों बनाई? जबकि इस टनल का निर्माण ‘सरकार’ के इस (गैर राजनीतिक) मित्र ने किया। वैसे भी प्रदेश में चलन है कि विकास कार्यों के शुभारंभ के दौरान होने वाले आयोजन की पूरी व्यवस्था निर्माण करने वाली एजेंसी ही करती है और इसका क्रेडिट भी उसे ही दिया जाता है।
ऐसे में सवाल लाजमी है कि 1 हजार करोड़ से ज्यादा के प्रोजेक्ट को पूरा करने वाली एजेंसी के कर्ताधर्ता उद्घाटन समारोह में मौजूद क्यों नहीं थे? सुना है कि ‘सरकार’ ने अब ऐसे सभी लोगों से दूरियां बना रखी हैं, जो जांच एजेंसियों के रडार पर हैं। उनके मित्र भी ऐसी ही एक एजेंसी की जांच के दायरे में हैं। ऐसे में ‘सरकार’ ही नहीं बल्कि मित्र भी दूरियां बनाकर रखने में अपनी भलाई समझ रहे हैं।